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तम॑स्य॒ राजा॒ वरु॑ण॒स्तम॒श्विना॒ क्रतुं॑ सचन्त॒ मारु॑तस्य वे॒धस॑:। दा॒धार॒ दक्ष॑मुत्त॒मम॑ह॒र्विदं॑ व्र॒जं च॒ विष्णु॒: सखि॑वाँ अपोर्णु॒ते ॥

English Transliteration

tam asya rājā varuṇas tam aśvinā kratuṁ sacanta mārutasya vedhasaḥ | dādhāra dakṣam uttamam aharvidaṁ vrajaṁ ca viṣṇuḥ sakhivām̐ aporṇute ||

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Pad Path

तम्। अ॒स्य॒। राजा॑। वरु॑णः। तम्। अ॒श्विना॑। क्रतु॑म्। स॒च॒न्त॒। मारु॑तस्य। वे॒धसः॑। दा॒धार॑। दक्ष॑म्। उ॒त्ऽत॒मम्। अ॒हः॒ऽविद॑म्। व्र॒जम्। च॒। विष्णुः॑। सखि॑ऽवान्। अ॒प॒ऽऊ॒र्णु॒ते ॥ १.१५६.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:156» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:26» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (सखिवान्) बहुत पवनरूप मित्रोंवाला (विष्णुः) अपनी दीप्ति से व्यापक सूर्यमण्डल (उत्तमम्) प्रशंसित (दक्षम्) बल को (दाधार) धारण करे और (अहर्विदम्) जो दिनों को प्राप्त होता अर्थात् जहाँ दिन होता उस (व्रजं, च) प्राप्त हुए देश को (अपोर्णुते) प्रकाशित करता उस (अस्य) इस (मरुतस्य) पवनरूप सखायोंवाले (वेधसः) विधाता सूर्यमण्डल के (तम्) उस (क्रतुम्) कर्म को (वरुणः) श्रेष्ठ (राजा) प्रकाशमान सज्जन और (तम्) उस कर्म को (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक लोग (सचन्त) प्राप्त होवें ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे और सज्जन आप्त विद्वान् से विद्या ग्रहण कर उत्तम बुद्धि की उन्नति कर पूरे बल को प्राप्त होते हैं वा जैसे जहाँ-जहाँ सविता अन्धकार को निवृत्त करता है, वैसे वहाँ-वहाँ उस सवितृमण्डल के महत्त्व को देखके समस्त लटे-मोटे, धनी-निर्धनी जन पूर्ण विद्यावाले से विद्या और शिक्षाओं को पाकर अविद्यारूपी अन्धकार को निवृत्त करें ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यः सखिवान् विष्णुरुत्तमं दक्षं दाधाराहर्विदं व्रजं चापोर्णुत तस्यास्य मारुतस्य वेधसस्तं क्रतुं वरुणो राजा तमश्विना च सचन्त ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (तम्) (अस्य) (राजा) प्रकाशमानः (वरुणः) वरः (तम्) (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (क्रतुम्) कर्म (सचन्त) प्राप्नुत (मारुतस्य) मरुतामयं तस्य (वेधसः) विधातुः (दाधार) धरतु (दक्षम्) बलम् (उत्तमम्) प्रशस्तम् (अहर्विदम्) योऽहानि विन्दति तम् (व्रजम्) प्राप्तं देशम् (च) (विष्णुः) स्वदीप्त्या व्यापकः सूर्य्यः (सखिवान्) बहवो मरुतः सखायो विद्यन्ते यस्य सः (अपोर्णुते) उद्घाटयति प्रकाशयति। आच्छादकमन्धकारं निवारयति ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽन्ये सज्जना आप्ताद्विदुषो विद्या गृहीत्वा प्रज्ञामुन्नीय पूर्णं बलं प्राप्नुवन्ति। यथा यत्र यत्र सविताऽन्धकारं निवर्त्तयति तथा तत्र तत्र तन्महत्त्वं दृष्ट्वा सर्वे मनुष्याः पूर्णविद्यात् विद्याशिक्षाः प्राप्याऽविद्यान्धकारं निवर्त्तयेयुः ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सज्जन आप्त विद्वान विद्या ग्रहण करून उत्तम प्रज्ञेची वाढ करतात व पूर्ण बल प्राप्त करतात जसा सविता अंधकार निवृत्त करतो तसे त्याचे महत्त्व जाणून सर्व माणसांनी पूर्ण विद्या व शिक्षण प्राप्त केलेल्या लोकांकडून अविद्यारूपी अंधकार नष्ट करावा. ॥ ४ ॥