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तमु॑ स्तोतारः पू॒र्व्यं यथा॑ वि॒द ऋ॒तस्य॒ गर्भं॑ ज॒नुषा॑ पिपर्तन। आस्य॑ जा॒नन्तो॒ नाम॑ चिद्विवक्तन म॒हस्ते॑ विष्णो सुम॒तिं भ॑जामहे ॥

English Transliteration

tam u stotāraḥ pūrvyaṁ yathā vida ṛtasya garbhaṁ januṣā pipartana | āsya jānanto nāma cid vivaktana mahas te viṣṇo sumatim bhajāmahe ||

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Pad Path

तम्। ऊँ॒ इति॑। स्तो॒ता॒रः॒। पू॒र्व्यम्। यथा॑। वि॒द। ऋ॒तस्य॑। गर्भ॑म्। ज॒नुषा॑। पि॒प॒र्त॒न॒। आ अ॒स्य॒। जा॒नन्तः॑। नाम॑। चि॒त्। वि॒व॒क्त॒न॒। म॒हः। ते॒। वि॒ष्णो॒ इति॑। सु॒ऽम॒तिम्। भ॒जा॒म॒हे॒ ॥ १.१५६.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:156» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:26» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (स्तोतारः) समस्त विद्याओं की स्तुति करनेवाले सज्जनो ! (यथा) जैसे तुम (जनुषा) विद्या जन्म से (पूर्व्यम्) पूर्व विद्वानों ने किये हुए (तम्) उस आप्त अध्यापक विद्वान् को (विद) जानो और (ऋतस्य) सत्य व्यवहार के (गर्भम्) विद्यासम्बन्धी बोध को (उ) तर्क-वितर्क से (पिपर्त्तन) पालो वा विद्याओं से और सेवा से पूरा करो। तथा (अस्य) इसका (चित्) भी (नाम) नाम (आ, जानन्तः) अच्छे प्रकार जानते हुए (विवक्तन) कहो, उपदेश करो वैसे हम लोग भी जानें, पालें और पूरा करें। हे (विष्णो) सकल विद्याओं में व्याप्त विद्वान् ! हम जिन (ते) आपसे (महः) महती (सुमतिम्) सुन्दर बुद्धि को (भजामहे) भजते सेवते हैं सो आप हम लोगों को उत्तम शिक्षा देवें ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्य विद्या की वृद्धि के लिये शास्त्रवक्ता अध्यापक को पाकर और उसकी उत्तम सेवा कर सत्यविद्याओं को अच्छे यत्न से ग्रहण करके पूरे विद्वान् हों ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे स्तोतारो यथा यूयं जनुषा पूर्व्यं तं विद। ऋतस्य गर्भमु पिपर्त्तन। अस्य चिन्नामाजानन्तो विवक्तन तथा वयमपि विजानीमः पिपृम च। हे विष्णो वयं यस्य ते महस्सुमतिं भजामहे स भवान् नोऽस्मान् सुशिक्षस्व ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (तम्) तमाप्तमध्यापकं विद्वांसम् (उ) वितर्के (स्तोतारः) सर्वविद्यास्तावकाः (पूर्व्यम्) पूर्वैः कृतम् (यथा) (विद) विजानीत (ऋतस्य) सत्यस्य (गर्भम्) विद्याजं बोधम् (जनुषा) विद्याजन्मना (पिपर्त्तन) पिपृत विद्याभिः सेवया वा पूर्णं कुरुत (आ) (अस्य) (जानन्तः) (नाम) प्रसिद्धिम् (चित्) अपि (विवक्तन) वदतोपदिशत (महः) महतीम् (ते) तव (विष्णो) सकलविद्याव्याप्त (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (भजामहे) सेवामहे ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्या विद्यावृद्धयेऽनूचानमध्यापकं प्राप्य सुसेव्य सत्या विद्याः प्रयत्नेन गृहीत्वा पूर्णा विद्वांसः स्युः ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी विद्यावृद्धीसाठी शास्त्रवेत्त्या अध्यापकाची उत्तम सेवा करून सत्यविद्या प्रयत्नपूर्वक ग्रहण कराव्यात व पूर्ण विद्वान बनावे. ॥ ३ ॥