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यः पू॒र्व्याय॑ वे॒धसे॒ नवी॑यसे सु॒मज्जा॑नये॒ विष्ण॑वे॒ ददा॑शति। यो जा॒तम॑स्य मह॒तो महि॒ ब्रव॒त्सेदु॒ श्रवो॑भि॒र्युज्यं॑ चिद॒भ्य॑सत् ॥

English Transliteration

yaḥ pūrvyāya vedhase navīyase sumajjānaye viṣṇave dadāśati | yo jātam asya mahato mahi bravat sed u śravobhir yujyaṁ cid abhy asat ||

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Pad Path

यः। पू॒र्व्याय॑। वे॒धसे॑। नवी॑यसे। सु॒मत्ऽजा॑नये। विष्ण॑वे। ददा॑शति। यः। जा॒तम्। अ॒स्य॒। म॒ह॒तः। महि॑। ब्रव॑त्। सः। इत्। ऊँ॒ इति॑। श्रवः॑ऽभिः। युज्य॑म्। चि॒त्। अ॒भि। अ॒स॒त् ॥ १.१५६.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:156» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:26» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यः) जो (नवीयसे) अत्यन्त विद्या पढ़ा हुआ नवीन (सुमज्जानये) सुन्दरता से पाई हुई विद्या से प्रसिद्ध (पूर्व्याय) पूर्वज विद्वानों के द्वारा अच्छी सिखावटों से सिखाये हुए (वेधसे) मेधावी अर्थात् धीर (विष्णवे) विद्या में व्याप्त होने का स्वभाव रखनेवाले के लिये विज्ञान (ददाशति) देता है वा (यः) जो (अस्य) इस (महतः) सत्कार करने योग्य जन के (महि) महान् प्रशंसित (जातम्) उत्पन्न हुए विज्ञान को (ब्रवत्) प्रकट कहे (उ) और (श्रवोभिः) श्रवण, मनन और निदिध्यासन अर्थात् अत्यन्त धारण करने-विचारने से अत्यन्त उत्पन्न हुए (युज्यम्) समाधान के योग्य विज्ञान का (अभ्यसत्) अभ्यास करे (सः, चित्) वही विद्वान् हो और (इत्) वही पढ़ाने को योग्य हो ॥ २ ॥
Connotation: - जो निष्कपटता से बुद्धिमान् विद्यार्थियों को पढ़ाते वा उनको उपदेश देते हैं और जो धर्मयुक्त व्यवहार से पढ़ते और अभ्यास करते हैं, वे सब अतीव विद्वान् और धार्मिक होकर बड़े सुख को प्राप्त होते हैं ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यो नवीयसे सुमज्जानये पूर्व्याय वेधसे विष्णवे ददाशति योऽस्य महतो महि जातं ब्रवत् य उ श्रवोभिर्जातं महि युज्यमभ्यसत् स चिद्विद्वान् जायेत स इदेवाऽध्यापयितुं योग्यो भवेत् ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (यः) (पूर्व्याय) पूर्वैर्विद्वद्भिः सुशिक्षया निष्पादिताय (वेधसे) मेधाविने (नवीयसे) अतिशयेनाधीतविद्याय नूतनाय (सुमज्जानये) सुष्ठुप्राप्तविद्याय प्रसिद्धाय (विष्णवे) विद्या व्याप्तुं शीलाय (ददाशति) ददाति। अत्र बहुलं छन्दसीति शपः श्लुः। (यः) (जातम्) उत्पन्नं विज्ञानम् (अस्य) विद्याविषयस्य (महतः) पूजितव्यस्य (महि) महत् पूजितम् (ब्रवत्) ब्रूयात् (सः) (इत्) एव (उ) वितर्के (श्रवोभिः) श्रवणमनननिदिध्यासनैः (युज्यम्) समाधातुमर्हम् (चित्) अपि (अभि) आभिमुख्ये (असत्) अभ्यासं कुर्यात् ॥ २ ॥
Connotation: - ये निष्कपटतया धीमतो विद्यार्थिनोऽध्यापयन्त्युपदिशन्ति ये च धर्म्येणाऽधीयतेऽभ्यस्यन्ति च तेऽतिशयेन विद्वांसो धार्मिका भूत्वा महत्सुखं यान्ति ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे निष्कपटीपणाने बुद्धिमान विद्यार्थ्यांना शिकवितात व त्यांना उपदेश देतात व जे धर्मयुक्त व्यवहाराने शिकवितात व अभ्यास करतात ते सर्व अत्यंत विद्वान व धार्मिक बनून खूप सुख प्राप्त करतात. ॥ २ ॥