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अ॒न॒श्वो जा॒तो अ॑नभी॒शुरर्वा॒ कनि॑क्रदत्पतयदू॒र्ध्वसा॑नुः। अ॒चित्तं॒ ब्रह्म॑ जुजुषु॒र्युवा॑न॒: प्र मि॒त्रे धाम॒ वरु॑णे गृ॒णन्त॑: ॥

English Transliteration

anaśvo jāto anabhīśur arvā kanikradat patayad ūrdhvasānuḥ | acittam brahma jujuṣur yuvānaḥ pra mitre dhāma varuṇe gṛṇantaḥ ||

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Pad Path

अ॒न॒श्वः। ज॒तः। अ॒न॒भी॒शुः। अर्वा॑। कनि॑क्रदत्। प॒त॒य॒त्। ऊ॒र्ध्वऽसा॑नुः। अ॒चित्त॑म्। ब्रह्म॑। जु॒जु॒षुः॒। युवा॑नः। प्र। मि॒त्रे। धाम॑। वरु॑णे। गृ॒णन्तः॑ ॥ १.१५२.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:152» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:22» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ।

Word-Meaning: - जो (युवानः) युवावस्था को प्राप्त जन (अनभीशुः) नियम करनेवाली किरणों से रहित (अनश्वः) जिसके जल्दी चलनेवाले घोड़े नहीं (कनिक्रदत्) और बार-बार शब्द करता वा (पतयत्) गमन करता हुआ (जातः) प्रसिद्ध हुआ और (ऊर्ध्वसानुः) जिसके ऊपर को शिखा (अर्वा) प्राप्त होनेवाले सूर्य्य के समान (मित्रे) मित्र वा (वरुणे) उत्तम जन के निमित्त (धाम) स्थान की (गृणन्तः) प्रशंसा करते हुए (अचित्तम्) चित्तरहित (ब्रह्म) वृद्धि को प्राप्त धन आदि पदार्थों से युक्त अन्न को (प्र, जुजुषुः) सेवें, वे बलवान् होते हैं ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे घोड़े वा रथ आदि सवारी से रहित आकाश के बीच ऊपर को स्थित सूर्य ईश्वर के अवलम्ब से प्रकाशमान होता है, वैसे विद्वानों की विद्या के आधारभूत मनुष्य बहुत धन और अन्न को पाकर धर्मयुक्त व्यवहार में विराजमान होते हैं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

ये युवानोऽनभीशुरनश्वः कनिक्रदत्पतयज्जातऊर्ध्वसानुरर्वा सूर्य्यइव मित्रे वरुणे धाम गृणन्तः सन्तोऽचित्तं ब्रह्म प्रजुजुषुस्ते बलवन्तो जायन्ते ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (अनश्वः) अविद्यमानतुरङ्गः (जातः) प्रकटः (अनभीशुः) नियामकरश्मिरहितः (अर्वा) प्रापकः (कनिक्रदत्) शब्दयन् (पतयत्) गच्छन् (ऊर्ध्वसानुः) ऊर्ध्वं सानवः शिखरा यस्य सः (अचित्तम्) चेतनतारहितम् (ब्रह्म) धनादियुक्तमन्नम् (जुजुषुः) सेवेरन् (युवानः) युवावस्थां प्राप्ता (प्र) (मित्रे) सख्यौ (धाम) स्थानम् (वरुणे) उत्तमे (गृणन्तः) प्रशंसन्तः ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽश्वयानादिरहित आकाश ऊर्ध्वं स्थितः सूर्य्य ईश्वराधारेण राजते तथा विद्वद्विद्याधारा मनुष्याः पुष्कलं धनमन्नं च प्राप्य धर्म्ये व्यवहारे विराजन्ते ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे अश्व, रथ इत्यादी वाहन नसताना सूर्य आकाशात ईश्वराचा अवलंब करून प्रकाशमान होतो, तसे विद्वानाच्या विद्येचा आधार घेतलेली माणसे पुष्कळ धन व अन्न प्राप्त करून धर्मयुक्त व्यवहारात विराजमान असतात. ॥ ५ ॥