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यु॒वं वस्त्रा॑णि पीव॒सा व॑साथे यु॒वोरच्छि॑द्रा॒ मन्त॑वो ह॒ सर्गा॑:। अवा॑तिरत॒मनृ॑तानि॒ विश्व॑ ऋ॒तेन॑ मित्रावरुणा सचेथे ॥

English Transliteration

yuvaṁ vastrāṇi pīvasā vasāthe yuvor acchidrā mantavo ha sargāḥ | avātiratam anṛtāni viśva ṛtena mitrāvaruṇā sacethe ||

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Pad Path

यु॒वम्। वस्त्रा॑णि। पी॒व॒सा। व॒सा॒थे॒ इति॑। यु॒वोः। अच्छि॑द्राः। मन्त॑वः। ह॒। सर्गाः॑। अव॑। अ॒ति॒र॒त॒म्। अनृ॑तानि। विश्वा॑। ऋ॒तेन॑। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। स॒चे॒थे॒ इति॑ ॥ १.१५२.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:152» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:22» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ बावनवें सूक्त का आरम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र में पढ़ाने, पढ़ने और उपदेश करने, उपदेश सुननेवालों के विषय को कहते हैं ।

Word-Meaning: - हे (मित्रावरुणा) प्राण-उदान के समान वर्त्तमान पढ़ाने और उपदेश करनेवाले ! जो (युवम्) तुम लोग (पीवसा) स्थूल (वस्त्राणि) वस्त्रों को (वसाथे) ओढ़ते हो वा जिन (युवोः) तुम्हारे (अच्छिद्राः) छेद-भेद रहित (मन्तवः) जानने योग्य (ह) ही पदार्थ (सर्गाः) रचने योग्य हैं, जो तुम (विश्वा) समस्त (अनृतानि) मिथ्याभाषण आदि कामों को (अवातिरतम्) उल्लङ्घते पार होते और (ऋतेन) सत्य से (सचेथे) सङ्ग करते हो वे तुम हम लोगों को क्यों न सत्कार करने योग्य होते हो ॥ १ ॥
Connotation: - मनुष्यों को सदैव स्थूल छिद्ररहित वस्त्र पहन कर जानने के योग्य दोषरहित वस्त्र आदि पदार्थ निर्माण करने चाहियें और सदैव धारण किये हुए सत्याचरण से असत्याचरणों को छोड़ धर्म्म, अर्थ, काम और मोक्ष अच्छे प्रकार सिद्ध करने चाहियें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाध्यापकाध्याप्योपदेशकोपदेश्यविषयमाह ।

Anvay:

हे मित्रावरुणा यौ युवां पीवसा वस्त्राणि वसाथे ययोर्युवोरच्छिद्रा मन्तवो ह सर्गास्सन्ति यौ युवां विश्वाऽनृतान्यवातिरतमृतेन सचेथे तावस्माभिः कुतो न सत्कर्त्तव्यौ भवथः ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (युवम्) युवाम् (वस्त्राणि) शरीराच्छादकानि (पीवसा) स्थूलानि (वसाथे) आच्छादयथः (युवोः) (अच्छिद्रा) छिद्ररहिताः (मन्तवः) ज्ञातुं योग्याः (ह) खलु (सर्गाः) स्रष्टुं योग्याः (अव) (अतिरतम्) उल्लङ्घयतम् (अनृतानि) मिथ्याभाषणादीनि कर्माणि (विश्वा) सर्वाणि (ऋतेन) सत्येन (मित्रावरुणा) प्राणोदानवत्वर्त्तमानावध्यापकोपदेशकौ (सचेथे) सङ्गच्छेथे ॥ १ ॥
Connotation: - मनुष्यैः सदैव स्थूलान्यच्छिद्राणि वस्त्राणि परिधाय विज्ञातुं योग्या दोषरहिता वस्त्रादयः पदार्था निर्मातव्याः। सदैव धृतेन सत्याचरणेनासत्याचरणानि त्यक्त्वा धर्मार्थकाममोक्षाः संसाधनीयाः ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अध्यापक व उपदेशक तसेच त्यांच्या शिष्यांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - माणसांनी सदैव स्थूल छिद्ररहित वस्त्र नेसावे. दोषरहित वस्त्र इत्यादी निर्माण करण्याची कला जाणावी. सत्याचरण धारण करून असत्याचरणाला सोडून द्यावे व धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चांगल्या प्रकारे सिद्ध करावे. ॥ १ ॥