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मि॒त्रं न यं शिम्या॒ गोषु॑ ग॒व्यव॑: स्वा॒ध्यो॑ वि॒दथे॑ अ॒प्सु जीज॑नन्। अरे॑जेतां॒ रोद॑सी॒ पाज॑सा गि॒रा प्रति॑ प्रि॒यं य॑ज॒तं ज॒नुषा॒मव॑: ॥

English Transliteration

mitraṁ na yaṁ śimyā goṣu gavyavaḥ svādhyo vidathe apsu jījanan | arejetāṁ rodasī pājasā girā prati priyaṁ yajataṁ januṣām avaḥ ||

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Pad Path

मि॒त्रम्। न। यम्। शिम्या॑। गोषु॑। ग॒व्यवः॑। सु॒ऽआ॒ध्यः॑। वि॒दथे॑। अ॒प्ऽसु। जीज॑नन्। अरे॑जेताम्। रोद॑सी॒ इति॑। पाज॑सा। गि॒रा। प्रति॑। प्रि॒यम्। य॒ज॒तम्। ज॒नुषा॑म्। अवः॑ ॥ १.१५१.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:151» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब नव ऋचावाले एकसौ इक्कानवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में मित्रावरुण के विशेष लक्षणों को कहते हैं ।

Word-Meaning: - (प्रियम्) जो प्रसन्न करता वा (यजतम्) सङ्ग करने योग्य (यम्) जिस अग्नि को (जनुषाम्) मनुष्यों के (अवः) रक्षा आदि के (प्रति) प्रति वा (स्वाध्यः) जिनकी उत्तम धीरबुद्धि वे (गोषु) गौओं में (गव्यवः) गौओं की इच्छा करनेवाले जन (मित्रं, न) मित्र के समान (विदथे) यज्ञ में (शिम्या) कर्म से (अप्सु) प्राणियों के प्राणों में (जीजनन्) उत्पन्न कराते अर्थात् उस यज्ञ कर्म द्वारा वर्षा और वर्षा से अन्न होते और अन्नों से प्राणियों के जठराग्नि को बढ़ाते हैं, उस अग्नि के (पाजसा) बल (गिरा) रूप उत्तम शिक्षित वाणी से (रोदसी) सूर्यमण्डल और पृथिवीमण्डल (अरेजेताम्) कम्पायमान होते हैं ॥ १ ॥
Connotation: - जो विद्वान् प्रजापालना किया चाहते हैं, वे मित्रता कर समस्त जगत् की अपने आत्मा के समान रक्षा करें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मित्रावरुणयोर्लक्षणविशेषानाह ।

Anvay:

प्रियं यजतं यमग्निं जनुषामवः प्रति स्वाध्यो गोषु गव्यवो मित्रं न विदथे शिम्याऽप्सु जीजनन्तस्याग्नेः पाजसा गिरा रोदसी अरेजेताम् ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (मित्रम्) सखायम् (न) इव (यम्) (शिम्या) कर्मणा। शिमीति कर्मना। निघं० २। १। (गोषु) धेनुषु (गव्यवः) गा इच्छवः (स्वाध्यः) सुष्ठु आधीर्येषान्ते (विदथे) यज्ञे (अप्सु) प्राणेषु (जीजनन्) जनयेयुः। अत्राडभावः। (अरेजेताम्) कम्पेताम् (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (पाजसा) बलेन (गिरा) सुशिक्षितया वाण्या (प्रति) (प्रियम्) यः प्रीणाति तम् (यजतम्) सङ्गन्तव्यम् (जनुषाम्) जनानाम् (अवः) रक्षणम् ॥ १ ॥
Connotation: - ये विद्वांसः प्रजापालनमिच्छवस्ते मित्रभावं कृत्वा सर्वं जगत् स्वात्मवत् रक्षेयुः ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात मित्र वरुणाचे लक्षण मित्र वरुण शब्दाने लक्षित अध्यापक व उपदेशक इत्यादींचे वर्णन केलेले आहे, त्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जे विद्वान प्रजापालन करू इच्छितात त्यांनी मित्रत्वाने संपूर्ण जगाचे रक्षण करावे. ॥ १ ॥