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अग्ने॑ दे॒वाँ इ॒हा व॑ह सा॒दया॒ योनि॑षु त्रि॒षु। परि॑ भूष॒ पिब॑ ऋ॒तुना॑॥

English Transliteration

agne devām̐ ihā vaha sādayā yoniṣu triṣu | pari bhūṣa piba ṛtunā ||

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Pad Path

अग्ने॑। दे॒वान्। इ॒ह। आ। व॒ह॒। सा॒दय॑। योनि॑षु। त्रि॒षु। परि॑। भू॒ष॒। पिब॑। ऋ॒तुना॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:15» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:28» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अग्नि भी ऋतुओं का संयोजक होता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - यह (अग्ने) प्रसिद्ध वा अप्रसिद्ध भौतिक अग्नि (इह) इस संसार में (ऋतुना) ऋतुओं के साथ (त्रिषु) तीन प्रकार के (योनिषु) जन्म, नाम और स्थानरूपी लोकों में (देवान्) श्रेष्ठगुणों से युक्त पदार्थों को (आ वह) अच्छी प्रकार प्राप्त कराता (सादय) स्थापित करता (परिभूष) सब ओर से भूषित करता और सब पदार्थों के रसों को (पिब) पीता है॥४॥
Connotation: - दाहगुणयुक्त यह अग्नि अपने रूप के प्रकाश से सब ऊपर नीचे वा मध्य में रहनेवाले पदार्थों को अच्छी प्रकार सुशोभित करता, होम और शिल्पविद्या में संयुक्त किया हुआ दिव्य-दिव्य सुखों का प्रकाश करता है॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अग्निरपि ऋतुयोजको भवतीत्युपदिश्यते।

Anvay:

भौतिकोऽयमग्निरिहर्तुना त्रिषु योनिषु देवान् दिव्यान् सर्वान् पदार्थानावह समन्तात् प्रापयति सादय स्थापयति परिभूष सर्वतो भूषत्यलङ्करोति सर्वेभ्यो रसं पिब पिबति॥४॥

Word-Meaning: - (अग्ने) अग्निर्भौतिको विद्युत्प्रसिद्धो वा (देवान्) दिव्यगुणसहितान् पदार्थान् (इह) अस्मिन् संसारे (आ) समन्तात् (वह) वहति प्रापयति (सादय) हन्ति। अत्रोभयत्र व्यत्ययः, अन्येषामपि दृश्यते इति दीर्घश्च। (योनिषु) युवन्ति मिश्रीभवन्ति येषु कार्य्येषु कारणेषु वा तेषु। अत्र वहिश्रिश्रुयु० (उणा०४.५३) अनेन ‘यु’धातोर्निः प्रत्ययो निच्च। (त्रिषु) नामजन्मस्थानेषु त्रिविधेषु लोकेषु (परि) सर्वतोभावे (भूष) भूषत्यलङ्करोति (पिब) पिबति। अत्रापि व्यत्ययः। (ऋतुना) ऋतुभिः सह॥४॥
Connotation: - अयमग्निर्दाहगुणयुक्तो रूपप्रकाशेन सर्वान् पदार्थानुपर्य्यधोमध्यस्थान् शोभितान् करोति। हवने शिल्पविद्यायां च संयोजितः सन् दिव्यानि सुखानि प्रकाशयतीति॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - दाह गुणयुक्त हा अग्नी आपल्या रूपाला प्रकट करून वर, खाली व मध्यभागी राहणाऱ्या सर्व पदार्थांना चांगल्या प्रकारे सुशोभित करतो. होम व शिल्पविद्येत संयुक्त केलेला हा अग्नी दिव्य सुखांना प्रकट करतो. ॥ ४ ॥