इन्द्र॒ सोमं॒ पिब॑ ऋ॒तुना त्वा॑ विश॒न्त्विन्द॑वः। म॒त्स॒रास॒स्तदोक॑सः॥
indra somam piba ṛtunā tvā viśantv indavaḥ | matsarāsas tadokasaḥ ||
इन्द्र॑। सोम॑म्। पिब॑। ऋ॒तुना॑। आ। त्वा॒। वि॒श॒न्तु॒। इन्द॑वः। म॒त्स॒रासः॒। तत्ऽओ॑कसः॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
अब पन्द्रहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में ऋतु-ऋतु में रस की उत्पत्ति और गति का वर्णन किया है-
SWAMI DAYANAND SARSWATI
तत्र प्रत्यृतुं रसोत्पत्तिर्गमनं च भवतीत्युपदिश्यते।
हे मनुष्य ! अयमिन्द्र ऋतुना सोमं पिब पिबति। इमे तदोकसो मत्सरास इन्दवो जलरसा ऋतुना सह त्वा त्वां तं वा प्रतिक्षणमाविशन्त्वाविशन्ति॥१॥
MATA SAVITA JOSHI
जे सर्व देवांचे अनुयोगी वसंत इत्यादी ऋतू आहेत, त्यांचे यथायोग्य गुण प्रतिपादन करून चौदाव्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर या पंधराव्या सूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणली पाहिजे.