Go To Mantra

म॒हः स रा॒य एष॑ते॒ पति॒र्दन्नि॒न इ॒नस्य॒ वसु॑नः प॒द आ। उप॒ ध्रज॑न्त॒मद्र॑यो वि॒धन्नित् ॥

English Transliteration

mahaḥ sa rāya eṣate patir dann ina inasya vasunaḥ pada ā | upa dhrajantam adrayo vidhann it ||

Mantra Audio
Pad Path

म॒हः। सः। रा॒यः। आ। ई॒ष॒ते॒। पतिः॑। दन्। इ॒नः। इ॒नस्य॑। वसु॑नः। प॒दे। आ। उप॑। ध्रज॑न्तम्। अद्र॑यः। वि॒धन्। इत् ॥ १.१४९.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:149» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:18» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:1


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ उनचासवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् और अग्न्यादि पदार्थों के गुणों का वर्णन करते हैं ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम जो (इनस्य) महान् ऐश्वर्य के स्वामी का (इनः) ईश्वर (वसुनः) सामान्य धन का और (महः) अत्यन्त (रायः) धन का (दन्) देनेवाला (पतिः) स्वामी (आ ईषते) अच्छे प्रकार का होता है वा जो विद्वान् जन इसकी (पदे) प्राप्ति के निमित्त (ध्रजन्तम्) पहुँचते हुए को (अद्रयः) मेघों के (इत्) समान (उपाविधन्) निकट होकर अच्छे प्रकार विधान करे (सः) वह सबको सत्कार करने योग्य है ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। इस संसार में जैसे सुपात्र को देने से कीर्त्ति होती है, वैसे और उपाय से नहीं। जो पुरुषार्थ का आश्रय कर अच्छा यत्न करता है, वह पूर्ण धन को प्राप्त होता है ॥ १ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ पुनर्विद्वदग्न्यादिगुणानाह ।

Anvay:

हे मनुष्या यूयं य इनस्येनो वसुनो महो रायो दन् पतिरेषते य एतस्य पदे ध्रजन्तमद्रय इदिव उपाविधन् स सर्वैः सत्कर्त्तव्यः स्यात् ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (महः) महतः (सः) (रायः) धनस्य (आ) (ईषते) प्राप्नोति (पतिः) स्वामी (दन्) दाता। अत्र बहुलं छन्दसीति शपो लुक्। (इनः) ईश्वरः (इनस्य) महदैश्वर्यस्य स्वामिनः (वसुनः) धनस्य (पदे) प्रापणे (आ) (उप) (ध्रजन्तम्) गच्छन्तम् (अद्रयः) मेघाः (विधन्) विदधतु (इत्) इव ॥ १ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। इह यथा सुपात्रदानेन कीर्त्तिर्भवति न तथाऽन्योपायेन, यः पुरुषार्थमाश्रित्य प्रयतते सोऽखिलं धनमाप्नोति ॥ १ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वान व अग्नी इत्यादी पदार्थांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. या जगात जसे सुपात्री दान दिल्याने कीर्ती वाढते तशी अन्य उपायाने होत नाही. जो पुरुषार्थाचा आश्रय घेऊन प्रयत्नशील असतो तो पूर्ण धन प्राप्त करतो. ॥ १ ॥