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अप्र॑युच्छ॒न्नप्र॑युच्छद्भिरग्ने शि॒वेभि॑र्नः पा॒युभि॑: पाहि श॒ग्मैः। अद॑ब्धेभि॒रदृ॑पितेभिरि॒ष्टेऽनि॑मिषद्भि॒: परि॑ पाहि नो॒ जाः ॥

English Transliteration

aprayucchann aprayucchadbhir agne śivebhir naḥ pāyubhiḥ pāhi śagmaiḥ | adabdhebhir adṛpitebhir iṣṭe nimiṣadbhiḥ pari pāhi no jāḥ ||

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Pad Path

अप्र॑ऽयुच्छन्। अप्र॑युच्छत्ऽभिः। अ॒ग्ने॒। शि॒वेभिः॑। नः॒। पा॒युऽभिः॑। पा॒हि॒। श॒ग्मैः। अद॑ब्धेभिः। अदृ॑पितेभिः। इ॒ष्टे॒। अनि॑मिषत्ऽभिः। परि॑। पा॒हि॒। नः॒। जाः ॥ १.१४३.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:143» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:12» Mantra:8 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (इष्टे) सत्कार करने योग्य तथा (अग्ने) विद्या विज्ञान के प्रकाश से युक्त अग्नि के समान विद्वान् ! आप (अप्रयुच्छन्) प्रमाद को न करते हुए (अप्रयुच्छद्भिः) प्रमादरहित विद्वानों के साथ वा (शिवेभिः) कल्याण करनेवाले (पायुभिः) रक्षक (शग्मैः) सुखप्रापक विद्वानों के साथ (नः) हम लोगों की (पाहि) रक्षा करो तथा (जाः) सुखों की उत्पत्ति करानेवाले आप (अनिमिषद्भिः) निरन्तर आलस्यरहित (अदब्धेभिः) हिंसा और (अदृपितेभिः) मोहादि दोषरहित विद्वानों के साथ (नः) हम लोगों की (परि, पाहि) सब ओर से रक्षा करो ॥ ८ ॥
Connotation: - मनुष्यों को निरन्तर यह चाहना और ऐसा प्रयत्न करना चाहिये कि धार्मिक विद्वानों के साथ धार्मिक विद्वान् हमारी निरन्तर रक्षा करें ॥ ८ ॥इस सूक्त में विद्वान् और ईश्वर के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ की साथ सङ्गति जानना चाहिये ॥यह एकसौ तेंतालीसवाँ सूक्त और बारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ।

Anvay:

हे इष्टेऽग्ने अग्निवद् विद्वन् त्वमप्रयुच्छन्सन्नप्रयुच्छद्भिः शिवेभिः पायुभिः शग्मैर्विद्वद्भिस्सह नः पाहि यास्त्वमनिमिषद्भिरदब्धेभिरदृपितेभिराप्तैस्सह नः परिपाहि ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (अप्रयुच्छन्) प्रमादमकुर्वन् (अप्रयुच्छद्भिः) प्रमादरहितैर्विद्वद्भिस्सह (अग्ने) विद्याविज्ञानप्रकाशयुक्त (शिवेभिः) कल्याणकारिभिः (नः) अस्मान् (पायुभिः) रक्षकैः (पाहि) रक्ष (शग्मैः) सुखप्रापकैः (अदब्धेभिः) अहिंसकैः (अदृपितेभिः) मोहादिदोषरहितैः (इष्टे) पूजितुं योग्य। अत्र संज्ञायां क्तिच्। (अनिमिषद्भिः) नैरन्तर्येणालस्यरहितैः (परि) सर्वतः (पाहि) (नः) अस्मान् (जाः) यो जनयति सुखानि सः ॥ ८ ॥
Connotation: - मनुष्यैस्सततमिदमेष्टव्यं प्रयतितव्यं च धार्मिकैर्विद्वद्भिस्सह धार्मिका विद्वांसोऽस्मान् सततं रक्षेयुरिति ॥ ८ ॥अत्र विद्वदीश्वरगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिरस्तीति वेद्यम् ॥इति त्रिचत्वारिंशदुत्तरं शततमं सूक्तं द्वादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी सतत ही इच्छा बाळगावी व असा प्रयत्न करावा की धार्मिक विद्वानांनी धार्मिक विद्वानासह सतत आमचे रक्षण करावे. ॥ ८ ॥