Go To Mantra

घृ॒तप्र॑तीकं व ऋ॒तस्य॑ धू॒र्षद॑म॒ग्निं मि॒त्रं न स॑मिधा॒न ऋ॑ञ्जते। इन्धा॑नो अ॒क्रो वि॒दथे॑षु॒ दीद्य॑च्छु॒क्रव॑र्णा॒मुदु॑ नो यंसते॒ धिय॑म् ॥

English Transliteration

ghṛtapratīkaṁ va ṛtasya dhūrṣadam agnim mitraṁ na samidhāna ṛñjate | indhāno akro vidatheṣu dīdyac chukravarṇām ud u no yaṁsate dhiyam ||

Mantra Audio
Pad Path

घृ॒तऽप्र॑तीकम्। वः॒। ऋ॒तस्य॑। धूः॒ऽसद॑म्। अ॒ग्निम्। मि॒त्रम्। न। स॒म्ऽइ॒धा॒नः। ऋ॒ञ्ज॒ते॒। इन्धा॑नः। अ॒क्रः। वि॒दथे॑षु। दीद्य॑त्। शु॒क्रऽव॑र्णाम्। उत्। ऊँ॒ इति॑। नः॒। यं॒स॒ते॒। धिय॑म् ॥ १.१४३.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:143» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:12» Mantra:7 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:7


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (समिधानः) अच्छे प्रकार प्रकाशमान विद्वान् (वः) तुम्हारे लिये (धूर्षदम्) हिंसकों में स्थिर होते हुए (घृतप्रतीकम्) जो घृत को प्राप्त होता उस (अग्निम्) आग को (ऋतस्य) सत्य व्यवहार के वर्त्तनेवाले (मित्रम्) मित्र के (न) समान (ऋञ्जते) प्रसिद्ध करता है (उ) और जो (इन्धानः) प्रकाशमान होता हुआ वा (अक्रः) औरों ने जिसको न दबा पाया वह (विदथेषु) संग्रामों में (दीद्यत्) निरन्तर प्रकाशित होता हुआ (नः) हम लोगों की (शुक्रवर्णाम्) शुद्धस्वरूप (धियम्) प्रज्ञा को (उद्यंसते) उत्तम रखता है उसको तुम हम पिता के समान सेवें ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो बिजुली के समान समस्त शुभ गुणों की खान, मित्र के समान सुख का देने, संग्रामों में वीर के तुल्य शत्रुओं को जीतने और दुःख का विनाश करनेवाला है, उस विद्वान् का आश्रय कर सब मनुष्य विद्याओं को प्राप्त होवें ॥ ७ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मनुष्या यस्समिधानो वो युष्मभ्यं धूर्षदं घृतप्रतीकमग्निमृतस्य मित्रन्नेव ऋञ्जते य उ इन्धानोऽक्रो विदथेषु दिद्यत्सन् नः शुक्रवर्णां धियमुद्यंसते तं यूयं वयं च पितृवत्सेवेमहि ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (घृतप्रतीकम्) यो घृतमाज्यं प्रत्येति तम् (वः) युष्मभ्यम् (ऋतस्य) सत्यस्य (धूर्षदम्) यो धूर्षु हिंसकेषु सीदति तम् (अग्निम्) पावकम् (मित्रम्) सखायम् (न) इव (समिधानः) सम्यक् प्रकाशमानः (ऋञ्जते) प्रसाध्नोति (इन्धानः) प्रदीप्तस्सन् (अक्रः) अन्यैरक्रान्तः। अत्र पृषोदरादिनेष्टसिद्धिः। (विदथेषु) संग्रामेषु (दीद्यत्) देदीप्यमानः (शुक्रवर्णाम्) शुद्धस्वरूपाम् (उत्) (उ) इति वितर्के (नः) अस्माकम् (यंसते) रक्षति (धियम्) प्रज्ञाम् ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यो विद्युद्वत्सर्वशुभगुणाकरो मित्रवत्सुखप्रदाता संग्रामेषु वीर इव शत्रुजेता दुःखप्रध्वंसको वर्त्तते तं विद्वांसमाश्रित्य सर्वे मनुष्या विद्याः प्राप्नुयुः ॥ ७ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो विद्युतप्रमाणे संपूर्ण गुणांची खाण, मित्राप्रमाणे सुख देणारा, संग्रामामध्ये वीराप्रमाणे जिंकणारा व दुःखांचा नाश करणारा असेल त्या विद्वानांचा आश्रय घेऊन सर्व माणसांनी विद्या प्राप्त करावी. ॥ ७ ॥