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स्वाहा॑कृता॒न्या ग॒ह्युप॑ ह॒व्यानि॑ वी॒तये॑। इन्द्रा ग॑हि श्रु॒धी हवं॒ त्वां ह॑वन्ते अध्व॒रे ॥

English Transliteration

svāhākṛtāny ā gahy upa havyāni vītaye | indrā gahi śrudhī havaṁ tvāṁ havante adhvare ||

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Pad Path

स्वाहा॑ऽकृतानि। आ। ग॒हि॒। उप॑। ह॒व्यानि॑। वी॒तये॑। इन्द्र॑। आ। ग॒हि॒। श्रु॒धि। हव॑म्। त्वाम्। ह॒व॒न्ते॒। अ॒ध्व॒रे ॥ १.१४२.१३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:142» Mantra:13 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:11» Mantra:7 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) परमैश्वर्य को युक्त करनेवाले विद्वान् ! आप (अध्वरे) न नष्ट करने योग्य व्यवहार में (वीतये) विद्या की प्राप्ति के लिये (स्वाहाकृतानि) सत्य क्रिया से (हव्यानि) ग्रहण करने योग्य पदार्थों को (उपागहि) प्राप्त होओ, जिन (त्वाम्) तुम्हारी (हवन्ते) विद्या का ज्ञान चाहते हुए विद्यार्थी जन स्तुति करते हैं सो आप (आ, गहि) आओ और (हवम्) स्तुति को (श्रुधि) सुनो ॥ १३ ॥
Connotation: - अध्यापक जितना शास्त्र विद्यार्थियों को पढ़ावे उसकी प्रतिदिन वा प्रतिमास परीक्षा करे और विद्यार्थियों में जो जिनको विद्या देवें वे उनकी तन, मन, धन से सेवा करें ॥ १३ ॥इस सूक्त में पढ़ने-पढ़ानेवालों के गुणों और विद्या की प्रशंसा होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जानना चाहिये ॥यह एकसौ बयालीसवाँ सूक्त और ग्यारहवाँ वर्ग पूरा हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे इन्द्र विद्वन् अध्वरे वीतये स्वाहाकृतानि हव्यान्युपागहि यं त्वां विद्यां जिज्ञासवो हवन्ते स त्वमागहि हवं श्रुधि ॥ १३ ॥

Word-Meaning: - (स्वाहाकृतानि) सत्यक्रियया निष्पादितानि (आ) (गहि) आगच्छ (उप) सामीप्ये (हव्यानि) आदातुमर्हाणि (वीतये) विद्याव्याप्तये (इन्द्र) परमैश्वर्ययोजक (आ) (गहि) (श्रुधी) शृणु। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (हवम्) स्तवनम् (त्वाम्) (हवन्ते) स्तुवन्ति (अध्वरे) अहिंसनीये व्यवहारे ॥ १३ ॥
Connotation: - अध्यापको यावच्छास्त्रमध्यापयेत् तावत्प्रत्यहं प्रतिमासं वा परीक्षेत। विद्यार्थिषु ये येभ्यो विद्याः प्रदद्युस्ते तेषां शरीरेण मनसा धनेन सेवां कुर्य्युः ॥ १३ ॥अत्राध्यापकाऽध्येतृविद्यागुणप्रशंसनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिरस्तीति बोध्यम् ॥इति द्विचत्वारिशदुत्तरं शततमं सूक्तमेकादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - अध्यापक जितके शास्त्र विद्यार्थ्यांना शिकवितो त्याची प्रत्येक दिवशी किंवा प्रत्येक महिन्याला परीक्षा घ्यावी व विद्यार्थ्यांनी त्यांची तन, मन, धनाने सेवा करावी. ॥ १३ ॥