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पृ॒क्षो वपु॑: पितु॒मान्नित्य॒ आ श॑ये द्वि॒तीय॒मा स॒प्तशि॑वासु मा॒तृषु॑। तृ॒तीय॑मस्य वृष॒भस्य॑ दो॒हसे॒ दश॑प्रमतिं जनयन्त॒ योष॑णः ॥

English Transliteration

pṛkṣo vapuḥ pitumān nitya ā śaye dvitīyam ā saptaśivāsu mātṛṣu | tṛtīyam asya vṛṣabhasya dohase daśapramatiṁ janayanta yoṣaṇaḥ ||

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Pad Path

पृ॒क्षः। वपुः॑। पि॒तु॒ऽमान्। नित्यः॑। आ। श॒ये॒। द्वि॒तीय॑म्। आ। स॒प्तऽशि॑वासु। मा॒तृषु॑। तृ॒तीय॑म्। अ॒स्य॒। वृ॒ष॒भस्य॑। दो॒हसे॑। दश॑ऽप्रमतिम्। ज॒न॒य॒न्त॒। योष॑णः ॥ १.१४१.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:141» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:8» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (नित्यः) नित्य (पितुमान्) प्रशंसित अन्नयुक्त मैं पहिले (पृक्षः) पूँछने कहने योग्य (वपुः) सुन्दररूप का (आशये) आशय लेता अर्थात् आश्रित होता हूँ (अस्य) इस (वृषभस्य) यज्ञादि कर्म द्वारा जल वर्षानेवाले का मेरा (द्वितीयम्) दूसरा सुन्दर रूप (सप्तशिवासु) सात प्रकार की कल्याण करने (मातृषु) और मान्य करनेवाले माताओं के समीप (आ) अच्छे प्रकार वर्त्तमान और (तृतीयम्) तीसरा (दशप्रमतिम्) दश प्रकार की उत्तम मति जिसमें होती उस सुन्दर रूप को (दोहसे) कामों की परिपूरणता के लिये (योषणः) प्रत्येक व्यवहारों को मिलानेवाली स्त्री (जनयन्त) प्रकट करती हैं ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य इस जगत् में सात प्रकार के लोकों में ब्रह्मचर्य से प्रथम, गृहाश्रम से दूसरे और वानप्रस्थ वा संन्यास से तीसरे कर्म और उपासना के विज्ञान को प्राप्त होते, वे दश इन्द्रियों, दश प्राणों के विषयक मन बुद्धि चित्त अहङ्कार और जीव के ज्ञान को प्राप्त होते हैं ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

नित्यः पितुमान् अहं प्रथमं पृक्षो वपुराशयेऽस्य वृषभस्य मम द्वितीयं सप्तशिवासु मातृष्वावर्त्तते तृतीयं दशप्रमतिं वपुर्दोहसे योषणो जनयन्त ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (पृक्षः) प्रष्टव्यम् (वपुः) सुन्दरं रूपम् (पितुमान्) प्रशस्तान्नयुक्तः (नित्यः) नित्यस्वरूपः (आ) (शये) (द्वितीयम्) (आ) (सप्तशिवासु) सप्तविधासु कल्याणकारिणीषु (मातृषु) मान्यकारिकासु (तृतीयम्) (अस्य) (वृषभस्य) यज्ञादिकर्मद्वारा वृष्टिकरस्य (दोहसे) कामानां प्रपूर्णाय (दशप्रमतिम्) दशधा प्रकृष्टा मतिर्यस्मिँस्तम् (जनयन्त) प्रकटयन्ति (योषणः) मिश्रणशीला युवतयः ॥ २ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या अत्र सप्तविधेषु लोकेषु ब्रह्मचर्य्येणादिमं गृहाश्रमेण द्वितीयं वानप्रस्थसंन्यासाभ्यां तृतीयं कर्मोपासनविज्ञानं लभन्ते ते दशानामिन्द्रियाणां प्राणानां च विषयमनोबुद्धिचित्ताऽहङ्कारजीवानां च ज्ञानं प्राप्नुवन्ति ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे या जगात सात प्रकारच्या लोकात ब्रह्मचर्याने प्रथम, गृहस्थाश्रमाने दुसरे व वानप्रस्थ संन्यासाने तिसरे कर्म व उपासना विज्ञान प्राप्त करतात, ती दहा इंद्रिये, दहा प्राणविषयक मन, बुद्धी, चित्त, अहंकार व जीवाचे ज्ञान प्राप्त करतात. ॥ २ ॥