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अ॒स्माक॑मग्ने म॒घव॑त्सु दीदि॒ह्यध॒ श्वसी॑वान्वृष॒भो दमू॑नाः। अ॒वास्या॒ शिशु॑मतीरदीदे॒र्वर्मे॑व यु॒त्सु प॑रि॒जर्भु॑राणः ॥

English Transliteration

asmākam agne maghavatsu dīdihy adha śvasīvān vṛṣabho damūnāḥ | avāsyā śiśumatīr adīder varmeva yutsu parijarbhurāṇaḥ ||

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Pad Path

अ॒स्माक॑म्। अ॒ग्ने॒। म॒घव॑त्ऽसु। दी॒दि॒हि॒। अध॑। श्वसी॑वान्। वृ॒ष॒भः। दमू॑नाः। अ॒व॒ऽअस्य॑। शिशु॑ऽमतीः। अ॒दी॒देः॒। वर्म॑ऽइव। यु॒त्ऽसु। प॒रि॒ऽजर्भु॑राणः ॥ १.१४०.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:140» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:6» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:21» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) पावक के समान वर्त्तमान विद्वान् ! (वृषभः) श्रेष्ठ (दमूनाः) इन्द्रियों का दमन करनेवाले (श्वसीवान्) प्राणवान् और (परिजर्भुराणः) सब ओर से पुष्ट होते हुए आप (अस्माकम्) हमारे (युत्सु) संग्राम और (मघवत्सु) बहुत हैं धन जिनमें उन घरों वा मित्रवर्गों में (वर्मेव) कवच के समान (शिशुमतीः) प्रशंसित बालकोंवाली स्त्री वा प्रजाओं को (दीदिहि) प्रकाशित करो (अध) इसके अनन्तर दुःखों को (अवास्य) विरुद्धता से दूर पहुँचा सुखों को (अदीदेः) प्रकाशित करो ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे विद्वान् ! संग्राम में जैसे कवच से शरीर संरक्षित किया जाता है, वैसे न्याय से प्रजाजनों की रक्षा कीजिये और युद्ध में स्त्रियों को न मारिये, जैसे धनी पुरुषों की स्त्रियाँ नित्य आनन्द भोगती हैं, वैसे ही प्रजाजनों को आनन्दित कीजिये ॥ १० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे अग्ने वृषभो दमूना श्वसीवान् परजर्भुराणस्त्वमस्माकं युत्सु मघवत्सु वर्मेव शिशुमतीर्दीदिहि। अधे दुःखान्यवास्यसुखान्यदीदेः ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (अस्माकम्) (अग्ने) पावक इव वर्त्तमान (मघवत्सु) बहुधनेषु (दीदिहि) प्रकाशय (अध) अनन्तरम् (श्वसीवान्) प्राणवान् (वृषभः) श्रेष्ठः (दमूनाः) दान्तः (अवास्य) विरुद्धतया प्रक्षिप्य। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (शिशुमतीः) प्रशस्ताः शिशवो बालका विद्यन्ते यासां ताः (अदीदेः) प्रकाशयेः (वर्मेव) कवचमिव (युत्सु) संग्रामेषु (परिजर्भुराणः) परितः सर्वतोऽतिशयेन पुष्यन् ॥ १० ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। हे विद्वन् संग्रामे यथा वर्म्मणा शरीरं रक्ष्यते तथा न्यायेन प्रजा रक्षेः संग्रामे स्त्रियो न हन्याः। यथा धनाढ्यानां स्त्रियो नित्यं मोदन्ते तथैव प्रजा मोदयेः ॥ १० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो! लढाईत जसे कवच घालून शरीराचे रक्षण केले जाते तसे न्यायाने प्रजेचे रक्षण करा व युद्धात स्त्रियांना मारू नका. जशा धनवान पुरुषांच्या स्त्रिया नित्य आनंद भोगतात तसेच प्रजाजनांना आनंदित करा. ॥ १० ॥