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वृष॑न्निन्द्र वृष॒पाणा॑स॒ इन्द॑व इ॒मे सु॒ता अद्रि॑षुतास उ॒द्भिद॒स्तुभ्यं॑ सु॒तास॑ उ॒द्भिद॑:। ते त्वा॑ मदन्तु दा॒वने॑ म॒हे चि॒त्राय॒ राध॑से। गी॒र्भिर्गि॑र्वाह॒: स्तव॑मान॒ आ ग॑हि सुमृळी॒को न॒ आ ग॑हि ॥

English Transliteration

vṛṣann indra vṛṣapāṇāsa indava ime sutā adriṣutāsa udbhidas tubhyaṁ sutāsa udbhidaḥ | te tvā mandantu dāvane mahe citrāya rādhase | gīrbhir girvāhaḥ stavamāna ā gahi sumṛḻīko na ā gahi ||

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Pad Path

वृष॑न्। इ॒न्द्र॒। वृ॒ष॒ऽपाना॑सः। इन्द॑वः। इ॒मे। सु॒ताः। अद्रि॑ऽसुतासः। उ॒त्ऽभिदः॑। तुभ्य॑म्। सु॒तासः॑। उ॒त्ऽभिदः॑। ते। त्वा॒। म॒द॒न्तु॒। दा॒वने॑। म॒हे। चि॒त्राय॑। राध॑से। गीः॒ऽभिः। गि॒र्वा॒हः॒। स्तव॑मानः। आ। ग॒हि॒। सु॒ऽमृ॒ळी॒कः। नः॒। आ। ग॒हि॒ ॥ १.१३९.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:139» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:4» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:20» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (वृषन्) सेचन समर्थ अति बलवान् (इन्द्रः) परमैश्वर्य्ययुक्त जन ! जो (इमे) ये (तुभ्यम्) तुम्हारे लिये (वृषपाणासः) मेघ जिनसे वर्षते वे वर्षाविन्दु जिनके पान ऐसे (अद्रिषुतासः) जो मेघ से उत्पन्न (उद्भिदः) पृथिवी को विदारण करके प्रसिद्ध होते (इन्दवः) और रसवान् वृक्ष (सुताः) उत्पन्न हुए तथा (उद्भिदः) जो विदारण भाव को प्राप्त अर्थात् कूट-पीट बनाये हुए औषध आदि पदार्थ (सुतासः) उत्पन्न हुए हैं (ते) वे (दावने) सुख देनेवाले (महे) बड़े (चित्राय) अद्भुत (राधसे) धन के लिये (त्वा) आपको (मदन्तु) आनन्दित करें। हे (गिर्वाहः) उपदेशरूपी वाणियों की प्राप्ति करानेहारे आप (गीर्भिः) शास्त्रयुक्त वाणियों से (स्तवमानः) गुणों का कीर्त्तन करते हुए (नः) हम लोगों के प्रति (आ, गहि) आओ तथा (सुमृडीकः) उत्तम सुख देनेवाले होते हुए हम लोगों के प्रति (आ, गहि) आओ ॥ ६ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि उन्हीं ओषधि और औषधिरसों का सेवन करें कि जो प्रमाद न उत्पन्न करें, जिससे ऐश्वर्य्य की उन्नति हो ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे वृषन्निन्द्र इमे तुभ्यं वृषपाणासोऽद्रिषुतास उद्भिद इन्दवः सुता उद्भिदः सुतासश्च सन्ति ते दावने महे चित्राय राधसे त्वा मदन्तु हे गिर्वाहस्त्वं गीर्भिः स्तवमानो न आगहि सुमृळीकः सन्नस्मानागहि ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (वृषन्) सेचनसमर्थ वीर्योपेत (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (वृषपाणासः) वर्षन्ति यैस्तानि वृषाणि वृषाणि पानानि येषां ते (इन्दवः) रसवन्तः (इमे) (सुताः) निर्मिताः (अद्रिसुतासः) अद्रिणा मेघेन सुता उत्पन्नाः (उद्भिदः) ये पृथिवीमुद्भिद्य जायन्ते (तुभ्यम्) (सुतासः) निर्मिताः (उद्भिदः) उद्भेदं विदारणं प्राप्ताः (ते) (त्वा) त्वाम् (मदन्तु) आनन्दयन्तु (दावने) सुखं दात्रे (महे) महते (चित्राय) अद्भुताय (राधसे) धनाय (गीर्भिः) शास्त्रयुक्ताभिर्वाग्भिः (गिर्वाहः) उपदेशगिरां प्रापक (स्तवमानः) गुणकीर्त्तनं कुर्वन् (आ) (गहि) (सुमृळीकः) सुष्ठुसुखप्रदः (नः) अस्मान् (आ) (गहि) समन्तात्प्राप्नुहि ॥ ६ ॥
Connotation: - मनुष्यैस्त एव ओषधिरसा ओषधयश्च सेवनीया ये प्रमादं न जनयेयुर्यत ऐश्वर्य्योन्नतिस्स्यादिति ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी त्याच औषध व औषधरसांचे सेवन करावे ज्यामुळे प्रमाद उत्पन्न होणार नाही व ऐश्वर्याची वाढ होईल. ॥ ६ ॥