Go To Mantra

तां वां॑ धे॒नुं न वा॑स॒रीमं॒शुं दु॑ह॒न्त्यद्रि॑भि॒: सोमं॑ दुह॒न्त्यद्रि॑भिः। अ॒स्म॒त्रा ग॑न्त॒मुप॑ नो॒ऽर्वाञ्चा॒ सोम॑पीतये। अ॒यं वां॑ मित्रावरुणा॒ नृभि॑: सु॒तः सोम॒ आ पी॒तये॑ सु॒तः ॥

English Transliteration

tāṁ vāṁ dhenuṁ na vāsarīm aṁśuṁ duhanty adribhiḥ somaṁ duhanty adribhiḥ | asmatrā gantam upa no rvāñcā somapītaye | ayaṁ vām mitrāvaruṇā nṛbhiḥ sutaḥ soma ā pītaye sutaḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

ताम्। वा॒म्। धे॒नुम्। न। वा॒स॒रीम्। अं॒शुम्। दु॒ह॒न्ति॒। अद्रि॑ऽभिः। सोम॑म्। दु॒ह॒न्ति॒। अद्रि॑ऽभिः। अ॒स्म॒ऽत्रा। ग॒न्त॒म्। उप॑। नः॒। अ॒र्वाञ्चा॑। सोम॑ऽपीतये। अ॒यम्। वा॒म्। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। नृऽभिः॑। सु॒तः। सोमः॑। आ। पी॒तये॑। सु॒तः ॥ १.१३७.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:137» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:1» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:20» Mantra:3


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मित्रावरुणा) प्राण और उदान के समान सर्वमित्र और सर्वोत्तम सज्जनो ! (नः) हमारे (अर्वाञ्चा) अभिमुख होते हुए तुम (वाम्) तुम्हारी जिस (वासरीम्) निवास करानेवाली (धेनुम्) धेनु के (न) समान (अद्रिभिः) पत्थरों से (अंशुम्) बढ़ी हुई सोमवल्ली को (दुहन्ति) दुहते जलादि से पूर्ण करते वा (अद्रिभिः) मेघों से (सोमपीतये) उत्तम ओषधि रस जिसमें पीये जाते उसके लिये (सोमम्) ऐश्वर्य को (दुहन्ति) परिपूर्ण करते (ताम्) उसको (अस्मत्रा) हमारे (उपागन्तम्) समीप पहुँचाओ, जो (अयम्) यह (नृभिः) मनुष्यों ने (सोमः) सोमवल्ली आदि लताओं का रस (सुतः) सिद्ध किया है वह (वाम्) तुम्हारे (आपीतये) अच्छे प्रकार पीने को (सुतः) सिद्ध किया गया है ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे दूध देनेवाली गौयें सुखों को पूरा करती हैं, वैसे युक्ति से सिद्ध किया हुआ सोमवल्ली आदि का रस सब रोगों का नाश करता है ॥ ३ ॥इस सूक्त में सोमलता के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह एकसौ सैंतीसवाँ सूक्त और पहिला वर्ग पूरा हुआ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मित्रावरुणा नोऽर्वाञ्चा सन्तौ युवां वां यां वासरीं धेनुं नेवाऽद्रिभिरंशुं दुहन्त्यद्रिभिः सोमपीतये सोमं दुहन्ति तामस्मत्रोपागन्तं योऽयं नृभिः सोमः सुतः स वामापीतये सुतोऽस्ति ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (ताम्) (वाम्) युवयोः (धेनुम्) (न) इव (वासरीम्) निवासयित्रीम् (अंशुम्) विभक्तां सोमवल्लीम् (दुहन्ति) प्रपिपुरति (अद्रिभिः) मेघैः (सोमम्) ऐश्वर्यम् (दुहन्ति) प्रपूरयन्ति (अद्रिभिः) प्रस्तरैः (अस्मत्रा) अस्मासु (गन्तम्) गमयतम् (उप) (नः) अस्माकम् (अर्वाञ्चा) अर्वागञ्चतौ (सोमपीतये) सोमा ओषधिरसाः पीयन्ते यस्मिँस्तस्मै (अयम्) (वाम्) युवाभ्याम् (मित्रावरुणा) प्राणोदानाविव (नृभिः) नायकैः सह (सुतः) संपादितः (सोमः) सोमलतादिरसः (आ) समन्तात् (पीतये) पानाय (सुतः) निष्पादितः ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा दुग्धदा गावः सुखान्यलङ्कुर्वन्ति तथा युक्त्या निर्मितः सोमलतादिरसः सर्वान् रोगान् निहन्ति ॥ ३ ॥अत्र सोमगुणवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तोक्तार्थेन सह संगतिरस्तीति वेद्यम् ॥इति सप्तत्रिंशदुत्तरं शततमं सूक्तं प्रथमो वर्गश्च समाप्तः ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशा दूध देणाऱ्या गाई सुख देतात तसे युक्तीने सिद्ध केलेला सोमवल्ली इत्यादींचा रस सर्व रोगांचा नाश करतो. ॥ ३ ॥