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सु॒षु॒मा या॑त॒मद्रि॑भि॒र्गोश्री॑ता मत्स॒रा इ॒मे सोमा॑सो मत्स॒रा इ॒मे। आ रा॑जाना दिविस्पृशास्म॒त्रा ग॑न्त॒मुप॑ नः। इ॒मे वां॑ मित्रावरुणा॒ गवा॑शिर॒: सोमा॑: शु॒क्रा गवा॑शिरः ॥

English Transliteration

suṣumā yātam adribhir gośrītā matsarā ime somāso matsarā ime | ā rājānā divispṛśāsmatrā gantam upa naḥ | ime vām mitrāvaruṇā gavāśiraḥ somāḥ śukrā gavāśiraḥ ||

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Pad Path

सु॒षु॒म। आ। या॒त॒म्। अद्रि॑ऽभिः। गोऽश्री॑ताः। म॒त्स॒राः। इ॒मे। सोमा॑सः। मत्स॒राः। इ॒मे। आ। रा॒जा॒ना॒। दि॒वि॒ऽस्पृ॒शा॒। अ॒स्म॒ऽत्रा। ग॒न्त॒म्। उप॑। नः॒। इ॒मे। वा॒म्। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। गोऽआ॑शिरः। सोमाः॑। शु॒क्राः। गोऽआ॑शिरः ॥ १.१३७.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:137» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:1» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:20» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब दूसरे अष्टक में द्वितीय अध्याय का आरम्भ और तीन ऋचावाले एक सौ सैंतीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्य इस संसार में किसके समान वर्त्ते, इस विषय को कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मित्रावरुणा) प्राण और उदान के समान वर्त्तमान (दिविस्पृशा) शुद्ध व्यवहार में स्पर्श करनेवाले (राजाना) प्रकाशमान सभासेनाधीशो ! जो (इमे) ये (अद्रिभिः) मेघों से (गोश्रीताः) किरणों को प्राप्त (मत्सराः) आनन्दप्रापक हम लोग (सुषुम) किसी व्यवहार को सिद्ध करें उसको (वाम्) तुम दोनों (आयातम्) आओ अच्छे प्रकार प्राप्त होओ, जो (इमे) ये (मत्सराः) आनन्द पहुँचानेहारी (सोमासः) सोमवल्ली आदि ओषधि हैं उनको (अस्मत्रा) हम लोगों में अच्छी प्रकार पहुँचाओ, जो (इमे) ये (गवाशिरः) गौएँ वा इन्द्रियों से व्याप्त होते उनके समान (शुक्राः) शुद्ध (सोमाः) ऐश्वर्ययुक्त पदार्थ और (गवाशिरः) गौएँ वा किरणों से व्याप्त होते उनको और (नः) हम लोगों के (उपागन्तम्) समीप पहुँचो ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। इस जगत् में जैसे पृथिवी आदि पदार्थ जीवन के हेतु हैं, वैसे मेघ अतीव जीवन देनेवाले हैं, जैसे ये सब वर्त्त रहे हैं। वैसे मनुष्य वर्त्ते ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मनुष्याः किंवदत्र वर्त्तेरन्नित्याह ।

Anvay:

हे मित्रावरुणा दिविस्पृशा राजाना य इमेऽद्रिभिर्गोश्रीता मत्सरा वयं सुषुम तान्वां युवामायातम्। य इमे मत्सराः सोमासः सन्ति तानस्मत्राऽऽयातं य इमे गवाशिर इव शुक्राः सोमा गवाशिरस्तान्नोऽस्मांश्चोपागन्तम् ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (सुषुम) निष्पादयेम। (आ) (यातम्) समन्तात् प्राप्नुतम् (अद्रिभिः) मेघैः। अद्रिभिरिति मेघना०। निघं० १। १०। (गोश्रीताः) गाः किरणान् श्रीताः प्राप्ताः (मत्सराः) आनन्दप्रापकाः (इमे) (सोमासः) सोमाद्योषधिसमूहाः (मत्सराः) आनन्दयुक्ताः (इमे) (आ) (राजाना) प्रकाशमानौ (दिविस्पृशा) यौ दिवि शुद्धे व्यवहारे स्पृशतस्तौ (अस्मत्रा) अस्मासु मध्ये (गन्तम्) प्राप्नुतम् (उप) (नः) अस्मान् (इमे) (वाम्) युवाम् (मित्रावरुणा) प्राणोदानाविव वर्त्तमानौ (गवाशिरः) ये गोभिरिन्द्रियैर्वाऽश्यन्ते (सोमाः) ऐश्वर्ययुक्ताः पदार्थाः (शुक्राः) शुद्धाः (गवाशिरः) ये गोभिः किरणैरश्यन्ते ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। अस्मिञ्जगति यथा पृथिव्यादयः पदार्था जीवनहेतवः सन्ति तथा मेघा अतीवप्राणप्रदास्सन्ति यथेमे वर्त्तन्ते तथैव मनुष्या वर्त्तेरन् ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सोमलतेच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. या जगात पृथ्वी इत्यादी पदार्थ जीवनाचे हेतू आहेत. तसे मेघ अत्यंत जीवनदायी आहेत. जसे ते सर्व व्यवहार करतात तसे माणसांनी वागावे. ॥ १ ॥