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ऊ॒ती दे॒वानां॑ व॒यमिन्द्र॑वन्तो मंसी॒महि॒ स्वय॑शसो म॒रुद्भि॑:। अ॒ग्निर्मि॒त्रो वरु॑ण॒: शर्म॑ यंस॒न्तद॑श्याम म॒घवा॑नो व॒यं च॑ ॥

English Transliteration

ūtī devānāṁ vayam indravanto maṁsīmahi svayaśaso marudbhiḥ | agnir mitro varuṇaḥ śarma yaṁsan tad aśyāma maghavāno vayaṁ ca ||

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Pad Path

ऊ॒ती। दे॒वाना॑म्। व॒यम्। इन्द्र॑ऽवन्तः। मं॒सी॒महि॑। स्वऽय॑शसः। म॒रुत्ऽभिः॑। अ॒ग्निः। मि॒त्रः। वरु॑णः। शर्म॑। यंस॑न्। तत्। अ॒श्या॒म॒। म॒घऽवा॑नः। व॒यम्। च॒ ॥ १.१३६.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:136» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:26» Mantra:7 | Mandal:1» Anuvak:20» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् जन इस संसार में किसके समान वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जैसे (मरुद्भिः) प्राणों के समान श्रेष्ठ जनों के साथ (अग्निः) बिजुली आदि रूपवाला अग्नि (मित्रः) सूर्य (वरुणः) चन्द्रमा (शर्म) सुख को (यंसन्) देते हैं वैसे (तत्) उस सुख को (इन्द्रवन्तः) बहुत ऐश्वर्ययुक्त (स्वयशसः) जिनके अपना यश विद्यमान वे (वयम्) हम लोग (देवानाम्) सत्य की कामना करनेवाले विद्वानों की (ऊती) रक्षा आदि क्रिया से (मंसीमहि) जानें (च) और इससे (वयम्) हम लोग (मघवानः) परम ऐश्वर्ययुक्त हुए कल्याण को (अश्याम) भोगें ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे इस संसार में पृथिवी आदि पदार्थ सुख और ऐश्वर्य करनेवाले हैं, वैसे ही विद्वानों की सिखावट और उनके सङ्ग हैं, इनसे हम लोग सुख और ऐश्वर्यवाले होकर निरन्तर आनन्दयुक्त हों ॥ ७ ॥ इस सूक्त में वायु और इन्द्र आदि पदार्थों के दृष्टान्तों से मनुष्यों के लिये विद्या और उत्तम शिक्षा का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ एकता है, यह जानना चाहिये ॥इस अध्याय में क्रोध आदि का निवारण, अन्न आदि की रक्षा और परम ऐश्वर्य की प्राप्ति पर्यन्त अर्थ कहे हैं, इससे इस अध्याय में कहे हुए अर्थों की पिछले अध्याय में कहे हुए अर्थों के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह ऋग्वेद में दूसरे अष्टक में पहला अध्याय और छब्बीसवाँ वर्ग तथा प्रथम मण्डल में एकसौ छत्तीसवाँ सूक्त पूरा हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वांसोऽत्र जगति किंवद्वर्त्तेरन्नित्याह ।

Anvay:

यथा मरुद्भिः सहाग्निर्मित्रो वरुणः शर्म यंसँस्तथा तदिन्द्रवन्तः स्वयशसो वयं देवानामूती मंसीमहि। अनेन च वयं मघवानो भद्रमश्याम ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (ऊती) रक्षणाद्यया क्रियया। अत्र सुपां सुलुगिति पूर्वसवर्णः। (देवानाम्) सत्यं कामयमानानां विदुषाम् (वयम्) (इन्द्रवन्तः) बह्वैश्वर्ययुक्ताः (मंसीमहि) जानीयाम (स्वयशसः) स्वकीयं यशो येषान्ते (मरुद्भिः) प्राणैरिव वर्त्तमानैः श्रेष्ठेर्जनैः सह (अग्निः) विद्युदादिस्वरूपः (मित्रः) सूर्यः (वरुणः) चन्द्रः (शर्म्म) सुखम् (यंसन्) प्रयच्छन्ति। अत्र वाच्छन्दसीत्युसभावः। लुङ्यडभावश्च। (तत्) (अश्याम) भुञ्जीमहि (मघवानः) परमपूजितैश्वर्ययुक्ताः (वयम्) (च) ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽत्र जगति पृथिव्यादयः पदार्थाः सुखैश्वर्यकारकाः सन्ति तथैव विदुषां शिक्षासङ्गाः सन्त्येतैर्वयं सुखैश्वर्या भूत्वा सततं मोदेमहीति ॥ ७ ॥ ।अत्र वाय्विन्द्रादिपदार्थदृष्टान्तैर्मनुष्येभ्यो विद्याशिक्षावर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिरस्तीति वेद्यम् ॥अस्मिन्नध्याये क्रोधादिनिवारणाऽन्नादिरक्षणादयः परमैश्वर्यप्राप्त्यन्ताश्चार्था उक्ता अत एतदध्यायोक्तार्थानां पूर्वाऽध्यायोक्तार्थैः सह संगतिरस्तीति वेद्यम् ॥ इत्यृग्वेदे द्वितीयाऽष्टके प्रथमोऽध्यायः षड्विंशो वर्गः प्रथमे मण्डले षट्त्रिंशदुत्तरं शततमं सूक्तं च समाप्तम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. या जगात पृथ्वी इत्यादी पदार्थ सुख व ऐश्वर्य देणारे आहेत तशीच विद्वानांची शिकवण व त्यांची संगती असते. त्यांच्याकडून आम्ही सुख व ऐश्वर्य प्राप्त करून सतत आनंदी राहावे ॥ ७ ॥