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नमो॑ दि॒वे बृ॑ह॒ते रोद॑सीभ्यां मि॒त्राय॑ वोचं॒ वरु॑णाय मी॒ळ्हुषे॑ सुमृळी॒काय॑ मी॒ळ्हुषे॑। इन्द्र॑म॒ग्निमुप॑ स्तुहि द्यु॒क्षम॑र्य॒मणं॒ भग॑म्। ज्योग्जीव॑न्तः प्र॒जया॑ सचेमहि॒ सोम॑स्यो॒ती स॑चेमहि ॥

English Transliteration

namo dive bṛhate rodasībhyām mitrāya vocaṁ varuṇāya mīḻhuṣe sumṛḻīkāya mīḻhuṣe | indram agnim upa stuhi dyukṣam aryamaṇam bhagam | jyog jīvantaḥ prajayā sacemahi somasyotī sacemahi ||

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Pad Path

नमः॑। दि॒वे। बृ॒ह॒ते। रोद॑सीभ्याम्। मि॒त्राय॑। वोच॑म्। वरु॑णाय। मी॒ळ्हुषे॑। सु॒ऽमृ॒ळी॒काय॑। मी॒ळ्हुषे॑। इन्द्र॑म्। अ॒ग्निम्। उप॑। स्तु॒हि॒। द्यु॒क्षम्। अ॒र्य॒मण॑म्। भग॑म्। ज्योक्। जीव॑न्तः। प्र॒ऽजया॑। स॒चे॒म॒हि॒। सोम॑स्य। ऊ॒ती। स॒चे॒म॒हि॒ ॥ १.१३६.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:136» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:26» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:20» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को किसके समान क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! जैसे मैं (बृहते) बहुत (दिवे) प्रकाश करनेवाले के लिये वा (रोदसीभ्याम्) प्रकाश और पृथिवी से (मित्राय) सबके मित्र (वरुणाय) श्रेष्ठ (मीढुषे) शुभ गुणों से सींचने (सुमृळीकाय) सुख करने और (मीढुषे) अच्छे प्रकार सुख देनेवाले जन के लिये (नमः) सत्कार वचन (वोचम्) कहूँ वैसे आप कहो, वा जैसे मैं (इन्द्राय) परमैश्वर्य्यवाले (अग्निम्) अग्नि के समान वर्त्तमान (द्युक्षम्) प्रकाशयुक्त (अर्य्यमणम्) न्यायाधीश और (भगम्) धर्म सेवनेवाले को कहूँ वैसे आप (उप, स्तुहि) उसके समीप प्रशंसा करो, वा जैसे (जीवन्तः) प्राण धारण किये जीवते हुए हम लोग (प्रजया) अच्छे सन्तान आदि सहित प्रजा के साथ (ज्योक्) निरन्तर (सचेमहि) सम्बद्ध हों और (सोमस्य) ऐश्वर्य की (ऊती) रक्षा आदि क्रिया के साथ (सचेमहि) सम्बद्ध हों, वैसे आप भी सम्बद्ध होओ ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में अनेक वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। मनुष्यों को विद्वानों के समान चाल-चलन कर पदार्थविद्या के लिये प्रवृत्त हो तथा प्रजा और ऐश्वर्य को पाकर निरन्तर आनन्दयुक्त होना चाहिये ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किंवत्किं कुर्युरित्याह ।

Anvay:

हे विद्वन्यथाऽहं बृहते दिवे रोदसीभ्यां मित्राय वरुणाय मीढुषे सुमृळीकाय मीढुषे नमो वोचं तथा त्वं वदेथाः। यथाऽहमिन्द्रमग्निं द्युक्षमर्य्यमणं भगं वोचं तथा त्वमुपस्तुहि। यथा जीवन्तो वयं प्रजया सह ज्योक् सचेमहि सोमस्योती सह सचेमहि तथा त्वमपि सचस्व ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (नमः) सत्करणम् (दिवे) द्योतकाय (बृहते) महते (रोदसीभ्याम्) द्यावापृथिवीभ्याम् (मित्राय) सर्वसुहृदे (वोचम्) उच्याम्। अत्राडभावः। (वरुणाय) वराय (मीढुषे) शुभगुणसेचकाय (सुमृळीकाय) सुखकारकाय (मीढुषे) सुखप्रदाय (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् (अग्निम्) पावकवद्वर्त्तमानम् (उप) (स्तुहि) प्रशंस (द्युक्षम्) द्योतमानम् (अर्यमणम्) न्यायाधीशम् (भगम्) धर्मं सेवमानम् (ज्योक्) निरन्तरम् (जीवन्तः) प्राणान्धरन्तः (प्रजया) सुसन्तानाद्यया सह (सचेमहि) समवयेम (सोमस्य) ऐश्वर्यस्य (ऊती) ऊत्या रक्षणाद्यया क्रियया साकम् (सचेमहि) व्याप्नुयाम ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्विदुषामनुकरणं कृत्वा पदार्थविद्यायै प्रवर्त्य प्रजैश्वर्यं प्राप्य सततं मोदितव्यम् ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात अनेक वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. माणसांनी विद्वानांप्रमाणे वर्तणूक करून पदार्थविद्येत प्रवृत्त होऊन प्रजा व ऐश्वर्य प्राप्त करून निरन्तर आनंदयुक्त असावे ॥ ६ ॥