Go To Mantra

अत्राह॒ तद्व॑हेथे॒ मध्व॒ आहु॑तिं॒ यम॑श्व॒त्थमु॑प॒तिष्ठ॑न्त जा॒यवो॒ऽस्मे ते स॑न्तु जा॒यव॑:। सा॒कं गाव॒: सुव॑ते॒ पच्य॑ते॒ यवो॒ न ते॑ वाय॒ उप॑ दस्यन्ति धे॒नवो॒ नाप॑ दस्यन्ति धे॒नव॑: ॥

English Transliteration

atrāha tad vahethe madhva āhutiṁ yam aśvattham upatiṣṭhanta jāyavo sme te santu jāyavaḥ | sākaṁ gāvaḥ suvate pacyate yavo na te vāya upa dasyanti dhenavo nāpa dasyanti dhenavaḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

अत्र॑। अह॑। तत्। व॒हे॒थे॒ इति॑। मध्वः॑। आऽहु॑तिम्। यम्। अ॒श्व॒त्थम्। उ॒प॒ऽतिष्ठ॑न्त। जा॒यवः॑। अ॒स्मे इति॑। ते। स॒न्तु॒। जा॒यवः॑। सा॒कम्। गावः॑। सुव॑ते। पच्य॑ते। यवः॑। न। ते॒। वा॒यो॒ इति॑। उप॑। द॒स्य॒न्ति॒। धे॒नवः॑। न। अप॑। द॒स्य॒न्ति॒। धे॒नवः॑ ॥ १.१३५.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:135» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:25» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:20» Mantra:8


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (वायो) पवन के समान विद्वान् ! जो पढ़ाने और उपदेश करनेवाले (अत्राह) यहीं निश्चय से (तत्) उस विषय को (वहेथे) प्राप्त कराते वा (अश्वत्थम्) जैसे पीपलवृक्ष को पखेरू वैसे (जायवः) जीतनेहारे (यम्) जिन आपके (उपतिष्ठन्त) समीप स्थित हों और (मध्वः) मधुर विज्ञान के (आहुतिम्) सब प्रकार ग्रहण करने को उपस्थित हों (ते) वे (अस्मे) हम लोगों के बीच (जायवः) जीतनेहारे शूर (सन्त) हों, ऐसे अच्छे प्रकार आचरण करते हुए (ते) आपकी (गावः) गौयें (साकम्) साथ (सुवते) विआती (यवः) मिला वा पृथक्-पृथक् व्यवहार साथ (पच्यते) सिद्ध होता तथा (धेनवः) गौयें जैसे (अप, दस्यन्ति) नष्ट नहीं होतीं (न) वैसे (धेनवः) वाणी (न, उप, दस्यन्ति) नहीं नष्ट होतीं ॥ ८ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो सब मनुष्यों से श्रेष्ठ मनुष्यों के सङ्ग की कामना और आपस में प्रीति की जाय तो उनकी विद्या बल की हानि और भेदबुद्धि न उत्पन्न हो ॥ ८ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ।

Anvay:

हे वायो विद्वन् यावध्यापकोपदेशकावत्राऽह तद्वहेथे अश्वत्थं पक्षिण इव जायवो यं त्वामुपतिष्ठन्त मध्व आहुतिं चोपतिष्ठन्त तेऽस्मे जायवः सन्तु। एवं समाचरतस्ते गावः साकं सुवते यवः साकं पच्यते धेनवो नापदस्यन्ति धेनवो नोपदस्यन्ति ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (अत्र) (अह) किल (तत्) (वहेथे) प्रापयतः (मध्वः) मधुरस्य विज्ञानस्य (आहुतिम्) समन्ताद्ग्रहणम् (यम्) (अश्वत्थम्) पिप्पलमिव (उपतिष्ठन्त) उपतिष्ठन्तु (जायवः) जयशीलाः (अस्मे) अस्माकम् (ते) (सन्तु) (जायवः) जेतारः शूराः (साकम्) सह (गावः) धेनवः (सुवते) गर्भान् विमुञ्चन्ति (पच्यते) परिपक्वो भवति (यवः) मिश्रामिश्रव्यवहारः (न) इव (ते) तव (वायो) वायुवद्बलयुक्त (उप) (दस्यन्ति) क्षयन्ति (धेनवः) (न) निषेधे (अप) (दस्यन्ति) (धेनवः) वाण्यः ॥ ८ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यदि सर्वैर्मनुष्यैः श्रेष्ठमनुष्याणां संगस्थकामना परस्परस्मिन्प्रीतिः क्रियेत तर्हि तेषां विद्याबलह्रासो भेदबुद्धिश्च नोपजायेत ॥ ८ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे सर्व माणसांमध्ये श्रेष्ठ असलेल्या माणसांमध्ये राहण्याची कामना करतात व आपापसात प्रेम करतात. त्यांच्या विद्या व बलाची हानी होत नाही व भेदबुद्धीही उत्पन्न होत नाही. ॥ ८ ॥