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मन्द॑न्तु त्वा म॒न्दिनो॑ वाय॒विन्द॑वो॒ऽस्मत्क्रा॒णास॒: सुकृ॑ता अ॒भिद्य॑वो॒ गोभि॑: क्रा॒णा अ॒भिद्य॑वः। यद्ध॑ क्रा॒णा इ॒रध्यै॒ दक्षं॒ सच॑न्त ऊ॒तय॑:। स॒ध्री॒ची॒ना नि॒युतो॑ दा॒वने॒ धिय॒ उप॑ ब्रुवत ईं॒ धिय॑: ॥

English Transliteration

mandantu tvā mandino vāyav indavo smat krāṇāsaḥ sukṛtā abhidyavo gobhiḥ krāṇā abhidyavaḥ | yad dha krāṇā iradhyai dakṣaṁ sacanta ūtayaḥ | sadhrīcīnā niyuto dāvane dhiya upa bruvata īṁ dhiyaḥ ||

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Pad Path

मन्द॑न्तु। त्वा॒। म॒न्दिनः॑। वायो॒ इति॑। इन्द॑वः। अ॒स्मत्। क्रा॒णासः॑। सुऽकृ॑ताः। अ॒भिऽद्य॑वः। गोऽभिः॑। क्रा॒णाः। अ॒भिऽद्य॑वः। यत्। ह॒। क्रा॒णाः। इ॒रध्यै॑। दक्ष॑म्। सच॑न्ते। ऊ॒तयः॑। स॒ध्री॒ची॒नाः। नि॒ऽयुतः॑। दा॒वने॑। धियः॑। उप॑। ब्रु॒व॒ते॒। ई॒म्। धियः॑ ॥ १.१३४.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:134» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:23» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:20» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को किसका सेवन कर क्या प्राप्त करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (वायो) पवन के समान मनोहर विद्वान् ! (यत्) जो (अस्मत्) हम लोगों से (क्राणासः) उत्तम कर्म करते हुए (अभिद्यवः) जिनके चारों ओर से प्रकाश विद्यमान (सुकृताः) जो सुन्दर उत्तम कर्मवाले (अभिद्यवः) और सब ओर से सूर्य की किरणों के समान अत्यन्त प्रकाशमान (इन्दवः) आर्द्रचित्त (क्राणाः) पुरुषार्थ करते हुए सज्जनों के समान (मन्दिनः) और सुख की कामना करते हुए (त्वा) आपको (मन्दन्तु) चाहें, वे (ह) ही (ऊतयः) रक्षा आदि क्रियावान् (क्राणाः) कर्म करनेवाले (दक्षम्) बल को (गोभिः) भूमियों के साथ (इरध्यै) प्राप्त होने को (सचन्त) युक्त होते अर्थात् सम्बन्ध करते हैं। जो (दावने) दान के लिये (सध्रीचीनाः) साथ सत्कार पाने वा जाने आनेवाले (नियुतः) नियुक्त की अर्थात् किसी विषय में लगाई ही (धियः) बुद्धियों का (उप, ब्रुवते) उपदेश करते हैं, वे (ईम्) सब ओर से (धियः) कर्मों को प्राप्त होते हैं ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य विद्वानों का सेवन करते और सत्य का उपदेश करते हैं, वे शरीर और आत्मा के बल को कैसे न प्राप्त हों ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं संसेव्य किं प्राप्तव्यमित्याह ।

Anvay:

हे वायो विद्वन्यद्येऽस्मत् क्राणासोऽभिद्यवः सुकृता अभिद्यव इवेन्दवः क्राणा इव मन्दिनस्त्वा मन्दन्तु ते ह ऊतयः क्राणा दक्षं गोभिरिरध्यै सचन्ते ये दावने सध्रीचीना नियुतो धिय उप ब्रुवते त ईं धियः प्राप्नुवन्ति ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (मन्दन्तु) कामयन्तु (त्वा) त्वाम् (मन्दिनः) सुखं कायमानाः (वायो) वायुरिव कमनीय (इन्दवः) आर्द्रीभूताः (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (क्राणासः) उत्तमानि कर्माणि कुर्वन्तः (सुकृताः) सुष्ठु कर्म येषां ते (अभिद्यवः) अभितो द्यवो विद्याप्रकाशा येषान्ते (गोभिः) पृथिवीभिस्सह (क्राणाः) पुरुषार्थं कुर्वाणाः (अभिद्यवः) अभितो द्यवः सूर्यकिरणा इव देदीप्यमानाः (यत्) ये (ह) (क्राणाः) कर्त्तुं शीलाः (इरध्यै) ईरितुं प्राप्तुम्। अत्र वर्णव्यत्ययेन ईकारस्थान इः। (दक्षम्) बलम् (सचन्ते) समवयन्ति (ऊतयः) रक्षादिक्रियावन्तः (सध्रीचीनाः) सहाञ्चन्तः (नियुतः) नियुक्ताः (दावने) दानाय (धियः) प्रज्ञाः (उप) (ब्रुवते) उपदिशन्ति (ईम्) सर्वतः (धियः) कर्माणि ॥ २ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या विदुषः सेवन्ते सत्यमुपदिशन्ति च ते शरीरात्मबलं कथन्नाप्नुयुः ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे विद्वानांचा अंगीकार करून सत्याचा उपदेश करतात त्यांना शरीर व आत्म्याचे बल कसे प्राप्त होणार नाही? ॥ २ ॥