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उ॒भे पु॑नामि॒ रोद॑सी ऋ॒तेन॒ द्रुहो॑ दहामि॒ सं म॒हीर॑नि॒न्द्राः। अ॒भि॒व्लग्य॒ यत्र॑ ह॒ता अ॒मित्रा॑ वैलस्था॒नं परि॑ तृ॒ळ्हा अशे॑रन् ॥

English Transliteration

ubhe punāmi rodasī ṛtena druho dahāmi sam mahīr anindrāḥ | abhivlagya yatra hatā amitrā vailasthānam pari tṛḻhā aśeran ||

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Pad Path

उ॒भे। पु॒ना॒मि॒। रोद॑सी॒ इति॑। ऋ॒तेन॑। द्रुहः॑। द॒हा॒मि॒। सम्। म॒हीः। अ॒नि॒न्द्राः। अ॒भि॒ऽव्लग्य॑। यत्र॑। ह॒ताः। अ॒मित्राः॑। वै॒ल॒ऽस्था॒नम्। परि॑। तृ॒ळ्हाः। अशे॑रन् ॥ १.१३३.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:133» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:22» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सात ऋचावाले एकसौ तैंतीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में कैसे स्थिर राज्य हो, इस विषय का उपदेश किया है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे मैं (अनिन्द्राः) जिनमें अविद्यमान राजजन हैं उन (महीः) पृथिवी भूमियों का (अभिव्लग्य) सब ओर से सङ्ग कर अर्थात् उनको प्राप्त होकर (ऋतेन) सत्य से (उभे) दोनों (रोदसी) प्रकाश और पृथिवी को (पुनामि) पवित्र करता हूँ और (द्रुहः) द्रोह करनेवालों को (सं दहामि) अच्छी प्रकार जलाता हूँ (यत्र) जहाँ (वैलस्थानम्) विलरूप स्थान को प्राप्त (परि, तृढाः) सब ओर से मारे (हताः) मरे हुए (अमित्राः) मित्रभाव रहित शत्रुजन (अशेरन्) सोवें, वहाँ मैं यत्न करता हूँ, वैसा तुम भी आचरण करो ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब मनुष्यों को यह निरन्तर इच्छा करनी चाहिये कि जिस सत्यव्यवहार से राज्य की उन्नति, पवित्रता, शत्रुओं की निवृत्ति और निर्वैर निश्शत्रु राज्य हो ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

कथं स्थिरं राज्यं स्यादित्याह ।

Anvay:

हे मनुष्या यथाहमनिन्द्रा महीरभिव्लग्यर्तेनोभे रोदसी पुनामि। द्रुहः सन्दहामि यत्र वैलस्थानं प्राप्ताः परि तृढा हताः सन्तोऽमित्राअशेरँस्तत्राऽहं प्रयते तथा यूयमप्याचरत ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (उभे) (पुनामि) पवित्रयामि (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (ऋतेन) सत्येन (द्रुहः) हन्तुमिच्छून् (दहामि) भस्मीकरोमि (सम्) सम्यक् (महीः) महीति पृथिवीना०। निघं० १। १। (अनिन्द्राः) अविद्यमाना इन्द्रा राजानो यासु ताः (अभिव्लग्य) अभितः सर्वतो लगित्वा। अत्र पृषोदरादिना वुगागमः। (यत्र) यस्मिन् (हताः) विनाशिताः (अमित्राः) मित्रभाववर्जिताः (वैलस्थानम्) विलानामिदं वैलं तदेव स्थानं वैलस्थानम् (परि) सर्वतः (तृढाः) हिंसिताः (अशेरन्) शयीरन् ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैः सर्वैरिदं सततमेष्टव्यं येन सत्येन व्यवहारेण राज्योन्नतिः पवित्रता शत्रुनिवृत्तिर्निष्कण्टकं राज्यं च स्यादिति ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात श्रेष्ठाचे पालन व दुष्टांचे निवारण आणि राज्याच्या स्थिरतेचे वर्णन केलेले आहे. त्यामुळे या सूक्तात सांगितलेल्या अर्थाची पूर्वीच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व माणसांनी निरंतर ही इच्छा बाळगली पाहिजे की, सत्य व्यवहाराने राज्याची उन्नती, पवित्रता, शत्रूंचा नाश व निर्वैर आणि निष्कंटक राज्य व्हावे. ॥ १ ॥