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वि॒दुष्टे॑ अ॒स्य वी॒र्य॑स्य पू॒रव॒: पुरो॒ यदि॑न्द्र॒ शार॑दीर॒वाति॑रः सासहा॒नो अ॒वाति॑रः। शास॒स्तमि॑न्द्र॒ मर्त्य॒मय॑ज्युं शवसस्पते। म॒हीम॑मुष्णाः पृथि॒वीमि॒मा अ॒पो म॑न्दसा॒न इ॒मा अ॒पः ॥

English Transliteration

viduṣ ṭe asya vīryasya pūravaḥ puro yad indra śāradīr avātiraḥ sāsahāno avātiraḥ | śāsas tam indra martyam ayajyuṁ śavasas pate | mahīm amuṣṇāḥ pṛthivīm imā apo mandasāna imā apaḥ ||

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Pad Path

वि॒दुः। ते॒। अ॒स्य। वी॒र्य॑स्य। पू॒रवः॑। पुरः॑। यत्। इ॒न्द्र॒। शार॑दीः। अ॒व॒ऽअति॑रः। स॒स॒हा॒नः। अ॒व॒ऽअति॑रः। शासः॑। तम्। इ॒न्द्र॒। मर्त्य॑म्। अय॑ज्युम्। श॒व॒सः॒। प॒ते॒। म॒हीम्। अ॒मु॒ष्णाः॒। पृ॒थि॒वीम्। इ॒माः। अ॒पः। म॒न्द॒सा॒नः। इ॒माः। अ॒पः ॥ १.१३१.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:131» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन क्या करके क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) सबके धारण करनेहारे ! जैसे (पूरवः) मनुष्य (ते) आपके (अस्य) इस (वीर्य्यस्य) पराक्रम के (पुरः) प्रथम प्रभाव को (विदुः) जानें वैसे और भी जानें और (यत्) जो (सासहानः) सहन करता हुआ जन (इमाः) इन प्रजा और (शारदीः) शरद ऋतुसम्बन्धी (अपः) जलों को (अवातिरः) प्रकट करे वैसे आप भी जानो और (अवातिरः) प्रकट करो, हे (शवसः) बल के (पते) स्वामी (इन्द्र) सबकी रक्षा करनेहारे ! जैसे आप जिस (अयज्युम्) यज्ञ (न) करनेहारे (मर्त्यम्) मनुष्य को (शासः) सिखाओ वा जो (मन्दसानः) कामना करता हुआ (महीम्) बड़ी (पृथिवीम्) पृथिवी को पाकर (इमाः) इन (अपः) प्राणों के समान वर्त्तमान प्रजाजनों को पीड़ा देवे (तम्) उसको आप (अमुष्णाः) चुराओ, छिपाओ और हम भी सिखावें ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो धर्मात्मा सज्जनों के प्रभाव को जानकर धर्माचरण करते हैं, वे दुष्टों को सिखला सकते हैं अर्थात् उनकी दुष्टता दूर होने को अच्छी शिक्षा दे सकते हैं ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के किं कृत्वा किं कुर्युरित्याह ।

Anvay:

हे इन्द्र यथा पूरवस्ते तवाऽस्य वीर्यस्य पुरः प्रभावं विदुस्तथाऽन्येऽपि जानन्तु। यद्यः सासहानो जन इमाः शारदीरपोऽवातिरस्तथा त्वमपि जानीह्यवातिरश्च। हे शवसस्पत इन्द्र यथा त्वं यमयज्युं मर्त्यं शासः। यो मन्दसानो महीं पृथिवीं प्राप्य इमा अपः प्राणिनः पीडयेत्तं त्वममुष्णा वयमपि च शिष्याम ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (विदुः) जानीयुः (ते) तव (अस्य) (वीर्यस्य) पराक्रमस्य (पूरवः) मनुष्याः (पुरः) पूर्वम् (यत्) यः (इन्द्र) सर्वेषां धर्त्ता (शारदीः) शरदः इमाः (अवातिरः) अवतरेत् (सासहानः) सहमानः (अवातिरः) अवतरेत् (शासः) शिष्याः (तम्) (इन्द्र) सर्वाभिरक्षक (मर्त्यम्) मनुष्यम् (अयज्युम्) अयजमानम् (शवसः) बलस्य (पते) स्वामिन् (महीम्) महतीम् (अमुष्णाः) मुष्णीयाः (पृथिवीम्) (इमाः) प्रजाः (अपः) जलानि (मन्दसानः) कामयमानः (इमाः) प्रजाः (अपः) प्राणा इव वर्त्तमानाः ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। य आप्तानां प्रभावं विदित्वा धर्ममाचरन्ति ते दुष्टान् शासितुं शक्नुवन्ति ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे धर्मात्म्याचा प्रभाव जाणून धर्माचरण करतात ते दुष्टांना शिकवू शकतात. अर्थात, त्यांची दुष्टता नाहीशी होण्यासाठी चांगले शिक्षण देऊ शकतात. ॥ ४ ॥