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इन्द्रा॑य॒ हि द्यौरसु॑रो॒ अन॑म्न॒तेन्द्रा॑य म॒ही पृ॑थि॒वी वरी॑मभिर्द्यु॒म्नसा॑ता॒ वरी॑मभिः। इन्द्रं॒ विश्वे॑ स॒जोष॑सो दे॒वासो॑ दधिरे पु॒रः। इन्द्रा॑य॒ विश्वा॒ सव॑नानि॒ मानु॑षा रा॒तानि॑ सन्तु॒ मानु॑षा ॥

English Transliteration

indrāya hi dyaur asuro anamnatendrāya mahī pṛthivī varīmabhir dyumnasātā varīmabhiḥ | indraṁ viśve sajoṣaso devāso dadhire puraḥ | indrāya viśvā savanāni mānuṣā rātāni santu mānuṣā ||

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Pad Path

इन्द्रा॑य। हि। द्यौः। असु॑रः। अन॑म्नत। इन्द्रा॑य। म॒ही। पृ॒थि॒वी। वरी॑मऽभिः। द्यु॒म्नऽसा॑ता। वरी॑मऽभिः। इन्द्र॑म्। विश्वे॑। स॒ऽजोष॑सः। दे॒वासः॑। द॒धि॒रे॒। पु॒रः। इन्द्रा॑य। विश्वा॑। सव॑नानि। मानु॑षा। रा॒तानि॑। स॒न्तु॒। मानु॑षा ॥ १.१३१.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:131» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सात ऋचावाले एक सौ एकतीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में यह किसका राज्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जिस (इन्द्राय) परमैश्वर्ययुक्त ईश्वर के लिये (द्यौः) सूर्य (असुरः) और मेघ वा जिस (इन्द्राय) परमैश्वर्ययुक्त ईश्वर के लिये (मही) बड़ी प्रकृति और (पृथिवी) भूमि (वरीमभिः) स्वीकार करने योग्य व्यवहारों से (द्युम्नसाता) प्रशंसा के विभाग अर्थात् अलग-अलग प्रतीति होने के निमित्त (अनम्नत) नमे नम्रता को धारण करे वा जिसे (इन्द्रम्) सर्व दुःख विनाशनेवाले परमेश्वर को (सजोषसः) एक सी प्रीति करनेहारे (विश्वे) समस्त (देवासः) विद्वान् जन (पुरः) सत्कारपूर्वक (दधिरे) धारण करें, उस (इन्द्राय) परमेश्वर के लिये (हि) ही (मानुषा) मनुष्यों के इन व्यवहारों के समान (वरीमभिः) स्वीकार करने योग्य धर्मों से (विश्वा) समस्त (सवनानि) ऐश्वर्य जो (मानुषा) मनुष्य सम्बन्धी हैं, वे (रातानि) दिये हुए (सन्तु) होवें, इसको जानो ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को जानना चाहिये कि जितना कुछ यहाँ कार्यकारणात्मक जगत् और जितने जीव वर्त्तमान हैं, यह सब परमेश्वर का राज्य है ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेदं कस्य राज्यमस्तीत्याह ।

Anvay:

हे मनुष्या यस्मा इन्द्राय द्यौरसुरः यस्मा इन्द्राय मही पृथिवी वरीमभिर्द्युम्नसातानम्नत यमिन्द्रं सजोषसो विश्वे देवासः पुरो दधिरे तस्मा इन्द्राय हि मानुषेव वरीमभिर्धर्मैर्विश्वा सवनानि मानुषा रातानि सन्त्विति विजानीत ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (हि) किल (द्यौः) सूर्यः (असुरः) मेघः (अनम्नत) (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (मही) प्रकृतिः (पृथिवी) भूमिः (वरीमभिः) वर्त्तुं स्वीकर्त्तुमर्हैः (द्युम्नसाता) द्युम्नस्य प्रशंसाया विभागे (वरीमभिः) वरणीयैः (इन्द्रम्) सर्वदुःखविदारकम् (विश्वे) सर्वे (सजोषसः) समानप्रीतिसेवनाः (देवासः) विद्वांसः (दधिरे) दध्युः (पुरः) सत्कारपुरःसरम् (इन्द्राय) परमेश्वराय (विश्वा) सर्वाणि (सवनानि) ऐश्वर्याणि (मानुषा) मानुषाणामिमानि (रातानि) दत्तानि (सन्तु) भवन्तु (मानुषा) मानुषाणामिमानीव ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यः यावत् किञ्चिदत्र कार्यकारणात्मकं जगत् यावन्तो जीवाश्च वर्त्तन्त एतत् सर्वं परमेश्वरस्य राज्यमस्तीति बोध्यम् ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात श्रेष्ठ व दुष्ट माणसांचे सत्कार व ताडन यांचे वर्णन असून या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी हे जाणले पाहिजे की येथे जितके कार्यकारणात्मक जगत व जीव वर्तमान आहेत तेथे परमेश्वराचे राज्य आहे. ॥ १ ॥