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भि॒नत्पुरो॑ नव॒तिमि॑न्द्र पू॒रवे॒ दिवो॑दासाय॒ महि॑ दा॒शुषे॑ नृतो॒ वज्रे॑ण दा॒शुषे॑ नृतो। अ॒ति॒थि॒ग्वाय॒ शम्ब॑रं गि॒रेरु॒ग्रो अवा॑भरत्। म॒हो धना॑नि॒ दय॑मान॒ ओज॑सा॒ विश्वा॒ धना॒न्योज॑सा ॥

English Transliteration

bhinat puro navatim indra pūrave divodāsāya mahi dāśuṣe nṛto vajreṇa dāśuṣe nṛto | atithigvāya śambaraṁ girer ugro avābharat | maho dhanāni dayamāna ojasā viśvā dhanāny ojasā ||

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Pad Path

भि॒नत्। पुरः॑। न॒व॒तिम्। इ॒न्द्र॒। पू॒रवे॑। दिवः॑ऽदासाय। महि॑। दा॒शुषे॑। नृ॒तो॒ इति॑। वज्रे॑ण। दा॒शुषे॑। नृ॒तो॒ इति॑। अ॒ति॒थि॒ऽग्वाय॑। शम्ब॑रम्। गि॒रेः। उ॒ग्रः। अव॑। अ॒भ॒र॒त्। म॒हः। धना॑नि। दय॑मानः। ओज॑सा। विश्वा॑। धना॒नि। ओज॑सा ॥ १.१३०.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:130» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:19» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

इस संसार में कौन ऐश्वर्य की उन्नति करते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (नृतो) अपने अङ्गों को युद्ध आदि में चलाने वा (नृतो) विद्या की प्राप्ति के लिये अपने शरीर की चेष्टा करने (इन्द्र) और दुष्टों का विनाश करनेवाले ! जो आप (वज्रेण) शस्त्र वा उपदेश से शत्रुओं की (नवतिम्) नब्बे (पुरः) नगरियों को (भिनत्) विदारते नष्ट-भ्रष्ट करते वा (महि) बड़प्पन पाये हुए सत्कारयुक्त (दिवोदासाय) चहीते पदार्थ को अच्छे प्रकार देनेवाले और (दाशुषे) विद्यादान किये हुए (पूरवे) पूरे साधनों से युक्त मनुष्य के लिये सुख को धारण करते तथा (अतिथिग्वाय) अतिथियों को प्राप्त होने और (दाशुषे) दान करनेवाले के लिये (उग्रः) तीक्ष्ण स्वभाव अर्थात् प्रचण्ड प्रतापवान् सूर्य (गिरेः) पर्वत के आगे (शम्बरम्) मेघ को जैसे वैसे (ओजसा) अपने पराक्रम से (महः) बड़े-बड़े (धनानि) धन आदि पदार्थों के (दयमानः) देनेवाले (ओजसा) पराक्रम से (विश्वा) समस्त (धनानि) धनों को (अवाभरत्) धारण करते सो आप किञ्चित् भी दुःख को कैसे प्राप्त होवें ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। इस मन्त्र में “नवतिम्” यह पद बहुतों का बोध कराने के लिये है। जो शत्रुओं को जीतते, अथितियों का सत्कार करते और धार्मिकों को विद्या आदि गुण देते हुए वर्त्तमान हैं, वे सूर्य्य जैसे मेघ को वैसे समस्त ऐश्वर्य्य धारण करते हैं ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

केऽत्रैश्वर्यमुन्नयन्तीत्याह ।

Anvay:

हे नृतो नृतविन्द्र यो भवान् वज्रेण शत्रूणां नवतिं पुरोभिनत् महि दिवोदासाय दाशुषे पूरवे सुखमवाभरत् हे नृतो भवान् अतिथिग्वाय दाशुष उग्रो गिरेः शम्बरमिवोजसा महो धनानि दयमान ओजसा विश्वा धनान्यवाभरत् स किञ्चिदपि दुःखं कथं प्राप्नुयात् ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (भिनत्) विदृणाति (पुरः) पुराणि (नवतिम्) एतत् संख्याकानि (इन्द्र) दुष्टविदारक (पूरवे) अलं साधनाय मनुष्याय। पूरव इति मनुष्यनामसु पठितम्। निघं० २। ३। (दिवोदासाय) कमितस्य प्रदात्रे (महि) महते पूजिताय (दाशुषे) विद्यादत्तवते (नृतो) विद्याप्राप्तयेऽङ्गानां प्रक्षेप्तः (वज्रेण) शस्त्रेणेवोपदेशेन (दाशुषे) दानं कुर्वते (नृतो) स्वगात्राणां विक्षेप्तः (अतिथिग्वाय) अतिथीन् गच्छते (शम्बरम्) मेघम् (गिरेः) शैलस्याग्रे (उग्रः) तीक्ष्णस्वभावः सूर्यः (अव) (अभरत्) बिभर्त्ति (महः) महान्ति (धनानि) (दयमानः) दाता (ओजसा) पराक्रमेण (विश्वा) सर्वाणि (धनानि) (ओजसा) पराक्रमेण ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नवतिमिति पदं बहूपलक्षणार्थम्। ये शत्रून् विजयमाना अतिथीन् सत्कुर्वन्तः धार्मिकान् विद्या ददमाना वर्त्तन्ते ते सूर्यो मेघमिवाऽखिलमैश्वर्यं बिभ्रति ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. या मंत्रात ‘नवतिम्’ हे पद पुष्कळांचा बोध करणारे आहे. जे शत्रूंना जिंकतात, अतिथींचा सत्कार करतात व धार्मिकांना विद्या इत्यादी गुण देतात आणि सूर्य जसा मेघाला धारण करतो तसे संपूर्ण ऐश्वर्य धारण करतात. ॥ ७ ॥