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सुस॑मिद्धो न॒ आव॑ह दे॒वाँ अ॑ग्ने ह॒विष्म॑ते। होतः॑ पावक॒ यक्षि॑ च॥

English Transliteration

susamiddho na ā vaha devām̐ agne haviṣmate | hotaḥ pāvaka yakṣi ca ||

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Pad Path

सुऽस॑मिद्धः। नः॒। आ। व॒ह॒। दे॒वान्। अ॒ग्ने॒। ह॒विष्म॑ते। होत॒रिति॑। पा॒व॒क॒। यक्षि॑। च॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:13» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:24» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब तेरहवें सूक्त के अर्थ का आरम्भ करते हैं। इसके प्रथम मन्त्र में परमेश्वर और भौतिक अग्नि के गुणों का उपदेश किया है-

Word-Meaning: - हे (होतः) पदार्थों को देने और (पावक) शुद्ध करनेवाले (अग्ने) विश्व के ईश्वर ! जिस हेतु से (सुसमिद्धः) अच्छी प्रकार प्रकाशवान् आप कृपा करके (नः) हमारे (च) तथा (हविष्मते) जिसके बहुत हवि अर्थात् पदार्थ विद्यमान हैं, उस विद्वान् के लिये (देवान्) दिव्यपदार्थों को (आवह) अच्छी प्रकार प्राप्त कराते हैं, इससे मैं आपका निरन्तर (यक्षि) सत्कार करता हूँ॥१॥१॥जिससे यह (पावक) पवित्रता का हेतु (होतः) पदार्थों का ग्रहण करने तथा (सुसमिद्धः) अच्छी प्रकार प्रकाशवाला (अग्ने) भौतिक अग्नि (नः) हमारे (च) तथा (हविष्मते) उक्त पदार्थवाले विद्वान् के लिये (देवान्) दिव्यपदार्थों को (आवह) अच्छी प्रकार प्राप्त कराता है, इससे मैं उक्त अग्नि को (यक्षि) कार्य्यसिद्धि के लिये अपने समीपवर्त्ती करता हूँ॥२॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जो मनुष्य बहुत प्रकार की सामग्री को ग्रहण करके विमान आदि यानों में सब पदार्थों के प्राप्त करानेवाले अग्नि की अच्छी प्रकार योजना करता है, उस मनुष्य के लिये वह अग्नि नाना प्रकार के सुखों को सिद्धि करानेवाला होता है॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

तत्र तावत्परमेश्वरभौतिकाग्न्योर्गुणा उपदिश्यन्ते।

Anvay:

हे होतः पावकाग्ने विश्वेश्वर ! यतः सुसमिद्धस्त्वं कृपया नोऽस्मभ्यं हविष्मते च देवानावहसि प्रापयस्यतोऽहं भवन्तं नित्यं यक्षि यजामीत्येकः। यतोऽयं पावको होता सुसमिद्धोऽग्निर्नोऽस्मभ्यं हविष्मते च देवानावहति समन्तात् प्रापयति तस्मादेतमहं नित्यं यक्षि यजामि सङ्गतं करोमीति द्वितीयः॥१॥

Word-Meaning: - (सुसमिद्धः) सम्यक् प्रदीपितः (नः) अस्मभ्यम् (आ) समन्तात् (वह) वहसि प्रापयसि वहति प्रापयति वा। अत्र पक्षान्तरे पुरुषव्यत्ययः। (देवान्) दिव्यपदार्थान् (अग्ने) विश्वेश्वर भौतिको वा (हविष्मते) बहूनि हवींषि विद्यन्ते यस्य तस्मै विदुषे। अत्र भूम्न्यर्थे मतुप्। (होतः) दातरादाता वा (पावक) पवित्रकारक पवित्रताहेतुर्वा (यक्षि) यजामि। अत्राडभावो लुङ आत्मनेपद उत्तमपुरुषस्यैकवचने प्रयोगो लडर्थे लुङ् च। (च) समुच्चये॥१॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। यो मनुष्यो बहुविधां सामग्रीं सङ्गृह्य यानादीनां वोढारमग्निं प्रयुङ्क्ते तस्मै स विविधसुखसम्पादनहेतुर्भवतीति॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या तेराव्या सूक्ताच्या अर्थाची, अग्नी इत्यादी दिव्य पदार्थांचा उपयोग करून घेण्याच्या विधानामुळे बाराव्या सूक्ताच्या अभिप्रायाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जो माणूस सर्व पदार्थ प्राप्त करून देणाऱ्या अग्नीला अनेक प्रकारच्या साहित्यांनी युक्त विमान इत्यादी यानात प्रयुक्त करतो. त्या माणसाला अग्नी विविध प्रकारचे सुख देतो. ॥ १ ॥