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विश्वो॒ विहा॑या अर॒तिर्वसु॑र्दधे॒ हस्ते॒ दक्षि॑णे त॒रणि॒र्न शि॑श्रथच्छ्रव॒स्यया॒ न शि॑श्रथत्। विश्व॑स्मा॒ इदि॑षुध्य॒ते दे॑व॒त्रा ह॒व्यमोहि॑षे। विश्व॑स्मा॒ इत्सु॒कृते॒ वार॑मृण्वत्य॒ग्निर्द्वारा॒ व्यृ॑ण्वति ॥

English Transliteration

viśvo vihāyā aratir vasur dadhe haste dakṣiṇe taraṇir na śiśrathac chravasyayā na śiśrathat | viśvasmā id iṣudhyate devatrā havyam ohiṣe | viśvasmā it sukṛte vāram ṛṇvaty agnir dvārā vy ṛṇvati ||

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Pad Path

विश्वः॑। विऽहा॑याः। अ॒र॒तिः। वसुः॑। द॒धे॒। हस्ते॑। दक्षि॑णे। त॒रणिः॑। न। शि॒श्र॒थ॒त्। श्र॒व॒स्यया॑। न। शि॒श्र॒थ॒त्। विश्व॑स्मै॒। इत्। इ॒षु॒ध्य॒ते। दे॒व॒ऽत्रा। ह॒व्यम्। आ। ऊ॒हि॒षे॒। विश्व॑स्मै। इत्। सु॒ऽकृते॑। वार॑म्। ऋ॒ण्व॒ति॒। अ॒ग्निः। द्वारा॑। वि। ऋ॒ण्व॒ति॒ ॥ १.१२८.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:128» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:15» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (विश्वः) समग्र (विहायाः) विद्या आदि शुभगुणों में व्याप्त (अरतिः) उत्तम व्यवहारों की प्राप्ति कराता और (तरणिः) तारनेहारा (वसुः) प्रथम श्रेणी का ब्रह्मचारी विद्वान् (श्रवस्यया) अपनी उत्तम उपदेश सुनने की इच्छा से जैसे (अग्निः) बिजुली न (शिश्रथत्) शिथिल हो वैसे (न) नहीं (शिश्रथत्) शिथिल हो वा (दक्षिणे) दाहिने (हस्ते) हाथ में जैसे आमलक धरें वैसे (देवत्रा) विद्वानों में मैं विद्या को (दधे) धारण करूँ वा (विश्वस्मै) सब (इषुध्यते) धनुष् के समान आचरण करते हुए जनसमूह के लिये तूँ (हव्यम्) देने योग्य पदार्थ का (आ, ऊहिषे) तर्क-वितर्क करता (इत्) वैसे ही जो (विश्वस्मै) सब (सुकृते) सुकर्म करनेवाले जनसमूह के लिये (द्वारा) उत्तम व्यवहारों के द्वारों को (ऋण्वति) प्राप्त होता वह सुख (इत्) ही के (वारम्) स्वीकार करने को (वि, ऋण्वति) विशेषता से प्राप्त होता है ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सूर्य सब व्यक्त पदार्थों को प्रकाशित कर सबके लिये सब सुखों को उत्पन्न करता, वैसे हिंसा आदि दोषों से रहित विद्वान् जन विद्या का प्रकाश कर सबको आनन्दित करते हैं ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वांसः किं कुर्य्युरित्याह।

Anvay:

विश्वो विहाया अरतिस्तरणिर्वसुः श्रवस्ययाऽग्निर्न शिश्रथदिव न शिश्रथद्दक्षिणे हस्ते आमलकइव देवत्राहं विद्या दधे विश्वस्मा इषुध्यते त्वं हव्यमोहिषे तथेद्यो विश्वस्मै सुकृते द्वारा ऋण्वति स सुखमिद्वारं व्यृण्वति ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (विश्वः) सर्वः (विहायाः) शुभगुणव्याप्तः (अरतिः) प्रापकः (वसुः) प्रथमकल्पब्रह्मचर्यः (दधे) धरामि (हस्ते) (दक्षिणे) (तरणिः) तारकः (न) निषेधे (शिश्रथत्) श्रथयेत् (श्रवस्यया) आत्मनः श्रव इच्छया (न) निषेधे (शिश्रथत्) श्रथयेत्। अत्रोभयत्राऽडभावः। (विश्वस्मै) सर्वस्मै (इत्) एव (इषुध्यते) इषुध इवाचरति तस्मै (देवत्रा) देवेष्विति (हव्यम्) दातुमर्हम् (आ) (ऊहिषे) वितर्कयसि (विश्वस्मै) (इत्) इव (सुकृते) सुष्ठुकर्त्ते (वारम्) पुनः पुनर्वर्त्तुम् (ऋण्वति) प्राप्नोति (अग्निः) विद्युदिव (द्वारा) द्वाराणि (वि) विशेषाऽर्थे (ऋण्वति) प्राप्नोति ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सूर्यः सर्वान् व्यक्तान् पदार्थान् प्रकाश्य सर्वेभ्यः सर्वाणि सुखानि जनयति तथाऽहिंसका विद्वांसो विद्याः प्रकाश्य सर्वानानन्दयन्ति ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे सूर्य सर्व व्यक्त पदार्थांना प्रकाशित करून सर्वांना सुख देतो तसे हिंसा इत्यादी दोषांनी रहित विद्वान विद्येचा प्रकाश करून सर्वांना आनंदित करतात. ॥ ६ ॥