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द्वि॒ता यदीं॑ की॒स्तासो॑ अ॒भिद्य॑वो नम॒स्यन्त॑ उप॒वोच॑न्त॒ भृग॑वो म॒थ्नन्तो॑ दा॒शा भृग॑वः। अ॒ग्निरी॑शे॒ वसू॑नां॒ शुचि॒र्यो ध॒र्णिरे॑षाम्। प्रि॒याँ अ॑पि॒धीँर्व॑निषीष्ट॒ मेधि॑र॒ आ व॑निषीष्ट॒ मेधि॑रः ॥

English Transliteration

dvitā yad īṁ kīstāso abhidyavo namasyanta upavocanta bhṛgavo mathnanto dāśā bhṛgavaḥ | agnir īśe vasūnāṁ śucir yo dharṇir eṣām | priyām̐ apidhīm̐r vaniṣīṣṭa medhira ā vaniṣīṣṭa medhiraḥ ||

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Pad Path

द्वि॒ता। यत्। ई॒म्। की॒स्तासः॑। अ॒भिऽद्य॑वः। न॒म॒स्यन्तः॑। उ॒प॒ऽवोच॑न्त। भृग॑वः। म॒थ्नन्तः॑। दा॒शा। भृग॑वः। अ॒ग्निः। ई॒शे॒। वसू॑नाम्। शुचिः॑। यः। ध॒र्णिः। ए॒षा॒म्। प्रि॒यान्। अ॒पि॒ऽधीन्। व॒नि॒षी॒ष्ट॒। मेधि॑रः। आ। व॒नि॒षी॒ष्ट॒। मेधि॑रः ॥ १.१२७.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:127» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:13» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पढ़ाने-पढ़ने वाले कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यत्) जो (कीस्तासः) उत्तम बुद्धिवाले विद्वान् (अभिद्यवः) जिनके आगे विद्या आदि गुणों के प्रकाश (नमस्यन्तः) जो धर्म का सेवन (भृगवः) तथा अविद्या और अधर्म के नाश करते ज्ञान को (मथ्नन्तः) मथते हुए (भृगवः) और दुःख मिटाते हैं, वे (दाशा) विद्या दान के लिये विद्यार्थियों को (द्विता) जैसे दो का होना हो वैसे अर्थात् एक पर एक (ईम्) सम्मुख प्राप्त हुई विद्या (उपवोचन्त) और गुण का उपदेश करे वा जैसे (एषाम्) इन (वसूनाम्) पृथिवी आदि लोकों के बीच (यः) जो (धर्णिः) शिल्पविद्या विषयक कामों का धारण करनेहारा (शुचिः) पवित्र और दूसरों को युद्ध करनेहारा (अग्निः) अग्नि है वा जैसे (मेधिरः) उत्तम बुद्धिवाला (प्रियान्) प्रसन्नचित्त और (अपिधीन्) श्रेष्ठ गुणों का धारण करने और दुःखों को ढाँपनेवाले विद्वानों को (वनिषीष्ट) याचे अर्थात् उनसे किसी पदार्थ को माँगे वा (मेधिरः) सङ्ग करनेवाला पुरुष देनेवालों को (आ, वनिषीष्ट) अच्छे प्रकार याचे वा विद्या की (ईशे) ईश्वरता प्रकट करे अर्थात् विद्या के अधिकार को प्रकाशित करे, वैसे ही तुम उक्त विद्वान् और अग्नि आदि पदार्थों का सेवन करो ॥ ७ ॥
Connotation: - जो विद्यार्थी विद्वानों से नित्य विद्या माँगे, उनके लिये विद्वान् भी नित्य ही विद्या को अच्छे प्रकार देवें, क्योंकि इस देने-लेने के तुल्य कुछ भी उत्तम काम नहीं है ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाऽध्यापकाऽध्येतारः कथं वर्त्तेरन्नित्याह ।

Anvay:

हे मनुष्या यत् कीस्तासोऽभिद्यवो नमस्यन्तो भृगवो ज्ञानं मथ्नन्तो भृगवश्च दाशा विद्यादानाय विद्यार्थिने द्वितेमुपवोचन्त। यथैषां वसूनां मध्ये यो धर्णिः शुचिरग्निरस्ति यथा मेधिरः प्रियानपिधीन् वनिषीष्ट यथा मेधिरो दातॄनावनिषीष्ट विद्यामीशे तथैव तं तान् सेवध्वम् ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (द्विता) द्वयोर्भावः (यत्) ये (ईम्) अभिगताम् (कीस्तासः) मेधाविनः। कीस्तास इति मेधाविना०। निघं० ३। १५। (अभिद्यवः) अभिगता द्यवो दीप्तयो येषां ते (नमस्यन्तः) धर्मं परिचरन्तः (उपवोचन्त) उपगतमुपदिशन्तु (भृगवः) अविद्याऽधर्मनाशनशीलाः (मथ्नन्तः) मन्थनं कुर्वन्तः (दाशा) दानाय। अत्र सुपां सुलुगित्याकारादेशः। (भृगवः) दुःखभर्जकाः (अग्निः) विद्युत् (ईशे) ईष्टे। अत्र लोपस्त आत्मनेपदेषु। अष्टा० ७। १। ४१। इति तलोपः। (वसूनाम्) पृथिव्यादीनां मध्ये (शुचिः) पवित्रः शुद्धिकरः (यः) (धर्णिः) यो धरति सः (एषाम्) प्रत्यक्षाणाम् (प्रियान्) प्रसन्नान् (अपिधीन्) सद्गुणधारकान् दुःखाच्छादकान् (वनिषीष्ट) याचेत (मेधिरः) मेधावी (आ) समन्तात् (वनिषीष्ट) (मेधिरः) सङ्गमकः ॥ ७ ॥
Connotation: - ये विद्यार्थिनो विद्वद्भ्यो नित्यं विद्या याचेरन् विद्वांसश्च तेभ्यो नित्यमेव विद्यां दद्युर्नैतेन दानेन ग्रहणेन वा तुल्यं किंचिदप्युत्तमं कर्म विद्यते ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो विद्यार्थी विद्वानांकडून नित्य विद्या शिकू इच्छितो त्याला विद्वानांनीही चांगल्या प्रकारे विद्या द्यावी. कारण या देण्याघेण्याखेरीज कोणतेही उत्तम कार्य नाही. ॥ ७ ॥