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अ॒ग्निं होता॑रं मन्ये॒ दास्व॑न्तं॒ वसुं॑ सू॒नुं सह॑सो जा॒तवे॑दसं॒ विप्रं॒ न जा॒तवे॑दसम्। य ऊ॒र्ध्वया॑ स्वध्व॒रो दे॒वो दे॒वाच्या॑ कृ॒पा। घृ॒तस्य॒ विभ्रा॑ष्टि॒मनु॑ वष्टि शो॒चिषा॒जुह्वा॑नस्य स॒र्पिष॑: ॥

English Transliteration

agniṁ hotāram manye dāsvantaṁ vasuṁ sūnuṁ sahaso jātavedasaṁ vipraṁ na jātavedasam | ya ūrdhvayā svadhvaro devo devācyā kṛpā | ghṛtasya vibhrāṣṭim anu vaṣṭi śociṣājuhvānasya sarpiṣaḥ ||

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Pad Path

अ॒ग्निम्। होता॑रम्। म॒न्ये॒। दास्व॑न्तम्। वसु॑म्। सू॒नुम्। सह॑सः। जा॒तऽवे॑दसम्। विप्र॑म्। न। जा॒तऽवे॑दसम्। यः। ऊ॒र्ध्वया॑। सु॒ऽअ॒ध्व॒रः। दे॒वः। दे॒वाच्या॑। कृ॒पा। घृ॒तस्य॑। विऽभ्रा॑ष्टिम्। अनु॑। व॒ष्टि॒। शो॒चिषा॑। आ॒ऽजुह्वा॑नस्य। स॒र्पिषः॑ ॥ १.१२७.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:127» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:12» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:19» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ग्यारह ऋचावाले एकसौ सत्ताईसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में कैसे स्त्री-पुरुषों का विवाह होना चाहिये, इस विषय का वर्णन किया है ।

Word-Meaning: - हे कन्या ! जैसे मैं (यः) जो (ऊर्ध्वया) उत्तम विद्या से (स्वध्वरः) सुन्दर यज्ञ का अनुष्ठान अर्थात् आरम्भ करनेवाली वह (देवाच्या) जो कि विद्वानों को प्राप्त होती और जिससे व्यवहार को समर्थ करते उस (कृपा) कृपा से (देवः) जो मनोहर अतिसुन्दर है उस जन को (आजुह्वानस्य) अच्छे प्रकार होमने और (सर्पिषः) प्राप्त होने योग्य (घृतस्य) घी के (शोचिषा) प्रकाश के साथ (विभ्राष्टिम्) जिससे अनेक प्रकार पदार्थ को पकाते उस अग्नि के समान (अनुवष्टि) अनुकूलता से चाहता है वा जिस (अग्निम्) अग्नि के समान (होतारम्) ग्रहण करने (दास्वन्तम्) देनेवाले (वसुम्) तथा ब्रह्मचर्य से विद्या के बीच में निवास किये हुए (सहसः) बलवान् पुरुष के (सूनुम्) पुत्र को (जातवेदसम्) जिसकी प्रसिद्ध वेदविद्या उस (विप्रम्) मेधावी के (न) समान (जातवेदसम्) प्रकट विद्यावाले विद्वान् को पति (मन्ये) मानती हूँ, वैसे ऐसे पति को तू भी स्वीकार कर ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिसकी उत्तम गुणवाले में बहुत प्रशंसा जिसका अति उत्तम शरीर और आत्मा का बल हो, उस पुरुष को स्त्री पतिपने के लिये स्वीकार करे, ऐसा पुरुष भी इसी प्रकार की स्त्री को भार्यापन के लिये स्वीकार करे ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ कीदृशयोः स्त्रीपुरुषयोर्विवाहो भवितुं योग्य इत्याह ।

Anvay:

हे कन्ये यथाऽहं य ऊर्ध्वया स्वध्वरो देवाच्या कृपादेवोऽस्ति तमाजुह्वानस्य सर्पिषो घृतस्य शोचिषा सह विभ्राष्टिं जनमनुवष्टि। यमग्निमिव होतारं दास्वन्तं वसुं सहसस्सूनुं जातवेदसं विप्रन्न जातवेदसं पतिं मन्ये तथेदृशं पतिं त्वमपि स्वीकुरु ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (अग्निम्) अग्निवद्वर्त्तमानम् (होतारम्) ग्रहीतारम् (मन्ये) जानीयाम् (दास्वन्तम्) दातारम् (वसुम्) ब्रह्मचर्येण कृतविद्यानिवासम् (सूनुम्) पुत्रम् (सहसः) बलवतः (जातवेदसम्) प्रसिद्धविद्यम् (विप्रम्) मेधाविनम् (न) इव (जातवेदसम्) प्रकटविद्यम् (यः) (ऊर्ध्वया) उत्कृष्टया विद्यया (स्वध्वरः) सुष्ठु यज्ञस्याऽनुष्ठाता (देवः) कमनीयः (देवाच्या) या देवानञ्चति तया (कृपा) कल्पते समर्थयति यया तया (घृतस्य) आज्यस्य (विभ्राष्टिम्) विविधतया भृज्जन्ति परिपचन्ति येन तम् (अनु) (वष्टि) कामयेत (शोचिषा) प्रकाशेन (आजुह्वानस्य) समन्ताद्धूयमानस्य (सर्पिषः) गन्तुं प्राप्तुमर्हस्य ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यस्य शुभगुणशीलेषु महती प्रशंसा यस्योत्कृष्टं शरीरात्मबलं भवेत् तं पुरुषं स्त्री पतित्वाय वृणुयात् एवं पुरुषोऽपीदृशीं स्त्रियं भार्यत्वाय स्वीकुर्यात् ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वान व राजधर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाचे मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर साम्य आहे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्याची उत्तम गुणवान लोकात प्रशंसा होते, ज्याचे शरीर व आत्मा यांचे बल उत्तम आहे त्या पुरुषाला स्त्रीने पती म्हणून निवडावे. अशा पुरुषाने तशाच स्त्रीला भार्या म्हणून स्वीकारावे. ॥ १ ॥