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मा पृ॒णन्तो॒ दुरि॑त॒मेन॒ आर॒न्मा जा॑रिषुः सू॒रय॑: सुव्र॒तास॑:। अ॒न्यस्तेषां॑ परि॒धिर॑स्तु॒ कश्चि॒दपृ॑णन्तम॒भि सं य॑न्तु॒ शोका॑: ॥

English Transliteration

mā pṛṇanto duritam ena āran mā jāriṣuḥ sūrayaḥ suvratāsaḥ | anyas teṣām paridhir astu kaś cid apṛṇantam abhi saṁ yantu śokāḥ ||

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Pad Path

मा। पृ॒ण॒न्तः॒। दुःऽइ॑तम्। एनः॑। आ। अ॒र॒न्। मा। जा॒रि॒षुः॒। सू॒रयः॑। सु॒ऽव्र॒तासः॑। अ॒न्यः। तेषा॑म्। प॒रि॒ऽधिः। अ॒स्तु॒। कः। चि॒त्। अपृ॑णन्तम्। अ॒भि। सम्। य॒न्तु॒। शोकाः॑ ॥ १.१२५.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:125» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:10» Mantra:7 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

इस संसार में कै प्रकार के पुरुष होते हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! आपलोग (पृणन्तः) स्वयं वा अपने सन्तान आदि को पुष्ट करते हुए (दुरितम्) दुःख के लिये जो प्राप्त होता अर्थात् (एनः) पापः का आचरण (मा, आ, अरन्) मत करो और दुःख के लिये प्राप्त होनेवाला पापाचरण जैसे हो वैसे (मा, जारिषुः) खोटे कामों को मत करो किन्तु (सुव्रतासः) उत्तम सत्य आचरणवाले (सुरयः) विद्वान् होते हुए धर्म ही का आचरण करो और जो तुम्हारे अध्यापक हों (तेषाम्) उन धार्मिक विद्वानों तथा तुम लोगों के बीच (कश्चित्) कोई (अन्यः) भिन्न (परिधिः) मर्य्यादा अर्थात् तुम सभों को ढाँपने, गुप्त राखने, मूर्खपन से बचानेवाला प्रकार (अस्तु) हो और (अपृणन्तम्) धर्म से न पुष्ट होने न दूसरों को पुष्ट करनेवाले किन्तु अधर्म से पुष्ट होने तथा अधर्म ही से औरों को पुष्ट करनेवाले मनुष्य को (शोकाः) शोक विलाप (अभि, सम्, यन्तु) सब ओर से प्राप्त हों ॥ ७ ॥
Connotation: - इस संसार में दो प्रकार के मनुष्य होते हैं, एक धार्मिक और दूसरे पापी। ये दोनों अच्छे प्रकार अलग-अलग स्थान और आचरणवाले हैं अर्थात् जो धार्मिक हैं, वे धर्मात्माओं के अनुकरण ही से धर्ममार्ग में चलते और जो दुष्ट आचरण करनेवाले पापी हैं, वे अधर्मी दुष्ट जनों के आचरण ही से अधर्म में चलते हैं। कभी किन्हीं धर्मात्माओं को अधर्मी दुष्ट जनों के मार्ग में नहीं चलना चाहिये और अधर्मी दुष्टों को अपनी दुष्टता छोड़ धार्मिकों के मार्ग में चलना योग्य है। इस प्रकार प्रत्येक जाति के पीछे धार्मिक और अधार्मिकों के दो मार्ग हैं, उनमें धर्म करनेवालों को सुख और अधर्मी दुष्टों को दुःख सदा प्राप्त होते हैं ॥ ७ ॥इस सूक्त में धर्म के अनुकूल आचरण का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह एकसौ पच्चसीवाँ सूक्त और दशवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

इह संसारे कतिविधाः पुरुषा भवन्तीत्याह ।

Anvay:

हे मनुष्या भवन्तः पृणन्तः सन्तो दुरितमेनो माऽरन् दुरितमेनो मा जारिषुः किन्तु सुव्रतासः सूरयः सन्तो धर्ममेवाचरन्तु ये च युष्मदध्यापकास्तेषां युष्माकं च कश्चिदन्यः परिधिरस्तु। अपृणन्तं जनं शोका अभिसंयन्तु ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (मा) निषेधे (पृणन्तः) स्वं स्वकीयांश्च पुष्यन्तः (दुरितम्) दुःखायेतं प्राप्तम् (एनः) पापाचरणम् (आ) समन्तात् (अरन्) आचरन्तु (मा) (जारिषुः) जारकर्माणि कुर्वन्तु (सूरयः) विद्वांसः (सुव्रतासः) शोभनानि व्रतानि सत्याचरणानि येषान्ते (अन्यः) भिन्नः (तेषाम्) धार्मिकाणां विदुषामधार्मिकाणां मूर्खाणां च (परिधिः) आवरणं मर्य्यादा (अस्तु) (कः) (चित्) अपि (अपृणन्तम्) धर्मेणापुष्यन्तमन्यानपोषयन्तम् (अभि) सर्वतः (सम्) सम्यक् (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (शोकाः) विलापाः ॥ ७ ॥
Connotation: - अस्मिन् जगति द्विविधा जनाः सन्ति। एके धार्मिका अपरे पापाश्च, ते प्रभिन्नप्रस्थानास्सन्ति। ये धार्मिकास्ते धार्मिकस्याऽनुकरणेनैव धर्ममार्गे चलन्ति। ये च दुष्टास्ते त्वधार्मिकानुकरणेनैवाधर्मे चलन्ति। नैव कदाचिद् धार्मिकैरधार्मिकमार्गे गन्तव्यमधार्मिकैस्तु धार्मिकमार्गे गन्तुं योग्यमेवं प्रत्येकजातौ धार्मिकाधार्मिकयोर्द्वौ मार्गौ स्तः, तत्र धार्मिकान् सुखान्यधार्मिकान् दुःखानि च सदाप्नुवन्ति ॥ ७ ॥अस्मिन् सूक्ते धर्म्याचरणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ इति पञ्चविंशोत्तरं शततमं सूक्तं दशमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या जगात दोन प्रकारची माणसे असतात. एक धार्मिक व दुसरे पापी. हे दोन्ही वेगवेगळे स्थान व आचरण असणारे असतात. अर्थात, जे धार्मिक असतात ते धर्मात्म्यांच्या मार्गाचे अनुसरण करतात व दुष्ट आचरण करणारे पापी अधार्मिक दुष्ट लोकांच्या आचरणानुसार अधर्माच्या मार्गाने चालतात. धर्मात्म्यांनी अधार्मिक दुष्ट मार्गावर कधीही चालू नये. या प्रकारे धार्मिक व अधार्मिकाचे दोन मार्ग आहेत. त्यापैकी धर्माचे पालन करणाऱ्यांना सुख मिळते व अधर्म करणाऱ्या दुष्टांना दुःख प्राप्त होते. ॥ ७ ॥