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अमि॑नती॒ दैव्या॑नि व्र॒तानि॑ प्रमिन॒ती म॑नु॒ष्या॑ यु॒गानि॑। ई॒युषी॑णामुप॒मा शश्व॑तीनामायती॒नां प्र॑थ॒मोषा व्य॑द्यौत् ॥

English Transliteration

aminatī daivyāni vratāni praminatī manuṣyā yugāni | īyuṣīṇām upamā śaśvatīnām āyatīnām prathamoṣā vy adyaut ||

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Pad Path

अमि॑नती। दैव्या॑नि। व्र॒तानि॑। प्र॒ऽमि॒न॒ती। म॒नु॒ष्या॑। यु॒गानि॑। ई॒युषी॑णाम्। उ॒प॒ऽमा। शश्व॑तीनाम्। आ॒ऽय॒ती॒नाम्। प्र॒थ॒मा। उ॒षाः। वि। अ॒द्यौ॒त् ॥ १.१२४.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:124» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:7» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब उषा के दृष्टान्त से स्त्री के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे स्त्री ! जैसे (उषाः) प्रातःसमय की वेला (दैव्यानि) दिव्य गुणवाले (व्रतानि) सत्य पदार्थ वा सत्य कर्मों को (अमिनती) न छोड़ती और (मनुष्या) मनुष्यों के सम्बन्धी (युगानि) वर्षों को (प्रमिनती) अच्छे प्रकार व्यतीत करती हुई (शश्वतीनाम्) सनातन प्रभातवेलाओं वा प्रकृतियों और (ईयुषीणाम्) हो गईं प्रभातवेलाओं की (उपमा) उपमा दृष्टान्त और (आयतीनाम्) आनेवाली प्रभातवेलाओं में (प्रथमा) पहिली संसार को (व्यद्यौत्) अनेक प्रकार से प्रकाशित कराती और जागते अर्थात् व्यवहारों को करते हुए मनुष्यों को युक्ति के साथ सदा सेवन करने योग्य है, वैसे तूँ अपना वर्त्ताव रख ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे यह प्रातःसमय की वेला विस्तारयुक्त पृथ्वी और सूर्य के साथ चलनेहारी जितने पूर्व देश को छोड़ती उतने उत्तर देश को ग्रहण करती है तथा वर्त्तमान और व्यतीत हुई प्रातःसमय की वेलाओं की उपमा और आनेवालियों की पहिली हुई कार्यरूप जगत् का और जगत् के कारण का अच्छे प्रकार ज्ञान कराती और सत्य धर्म के आचरण निमित्तक समय का अङ्ग होने से उमर को घटाती हुई वर्त्तमान है, वह सेवन की हुई बुद्धि और आरोग्य आदि अच्छे गुणों को देती है, वैसे पण्डिता स्त्री हों ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथोषर्दृष्टान्तेन स्त्रीविषयमाह ।

Anvay:

हे स्त्रि यथोषा दैव्यानि व्रतान्यमिनती मनुष्या युगानि प्रमिनती शश्वतीनामीयुषीणामुपमाऽऽयतीनां च प्रथमा विश्वं व्यद्यौत्। जागृतैर्मनुष्यैर्युक्त्या सदा सेव्या तथा त्वं वर्त्तस्व ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (अमिनती) अहिंसन्ती (दैव्यानि) दिव्यगुणानि (व्रतानि) वर्त्तमानानि सत्यानि वस्तूनि कर्माणि वा (प्रमिनती) प्रकृष्टतया हिंसन्ती (मनुष्या) मानुषसंबन्धीति (युगानि) वर्षाणि (ईयुषीणाम्) अतीतानाम् (उपमा) दृष्टान्तः (शश्वतीनाम्) सनातनीनामुषसां प्रकृतीनां वा (आयतीनाम्) आगच्छन्तीनाम् (प्रथमा) (उषाः) (वि) (अद्यौत्) विविधतया प्रकाशयति ॥ २ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथेयमुषाः सन्ततेन पृथिवी सूर्यसंयोगेन सह चरिता यावन्तं पूर्वं देशं जहाति तावन्तमुत्तरं देशमादत्ते वर्त्तमानाऽतीतानामुषसामुपमाऽऽगामिनीनामादिमा सती कार्य्यकारणयोर्ज्ञानं प्रज्ञापयन्ती सत्यधर्माचरणनिमित्तकालावयवत्वादायुर्व्ययन्ती वर्त्तते सा सेविता सती बुद्ध्यारोग्यादीन् शुभगुणान् प्रयच्छति तथा विदुष्यः स्त्रियः स्युः ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी ही प्रातःकाळची वेळ विस्तारयुक्त पृथ्वी व सूर्याबरोबर चालणारी असते व पूर्वस्थानाला सोडत उत्तर स्थानाला ग्रहण करते, तशीच वर्तमान व भूतकाळाची उपमा व येणाऱ्या कार्यरूप जगाचे व जगाच्या कारणाचे चांगल्या प्रकारे ज्ञान करविते व सत्यधर्माचरण निमित्तक वेळेचे अंग असल्यामुळे आयू कमी करते. ती ग्रहण केलेली बुद्धी व आरोग्य इत्यादी शुभ गुणांना देते तशी पंडिता स्त्री असावी. ॥ २ ॥