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अस्तो॑ढ्वं स्तोम्या॒ ब्रह्म॑णा॒ मेऽवी॑वृधध्वमुश॒तीरु॑षासः। यु॒ष्माकं॑ देवी॒रव॑सा सनेम सह॒स्रिणं॑ च श॒तिनं॑ च॒ वाज॑म् ॥

English Transliteration

astoḍhvaṁ stomyā brahmaṇā me vīvṛdhadhvam uśatīr uṣāsaḥ | yuṣmākaṁ devīr avasā sanema sahasriṇaṁ ca śatinaṁ ca vājam ||

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Pad Path

अस्तो॑ढ्वम्। स्तो॒म्याः॒। ब्रह्म॑णा। मे॒। अवी॑वृधध्वम्। उ॒श॒तीः। उ॒ष॒सः॒। यु॒ष्माक॑म्। दे॒वीः॒। अव॑सा। स॒ने॒म॒। स॒ह॒स्रिण॑म्। च॒। श॒तिन॑म्। च॒। वाज॑म् ॥ १.१२४.१३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:124» Mantra:13 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:9» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कैसी स्त्री श्रेष्ठ हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (उषासः) प्रभात वेलाओं के तुल्य (स्तोम्याः) स्तुति करने के योग्य (देवीः) दिव्य विद्यागुणवाली पण्डिताओ ! (ब्रह्मणा) वेद से (उशतीः) कामना और कान्ति को प्राप्त होती हुई तुम (मे) मेरे लिये विद्याओं की (अस्तोढ्वम्) स्तुति प्रशंसा करो और (अवीवृधध्वम्) हम लोगों की उन्नति कराओ तथा (युष्माकम्) तुम्हारी (अवसा) रक्षा आदि से (सहस्रिणम्) जिसमें सहस्रों गुण विद्यमान (च) और जो (शतिनम्) सैकड़ों प्रकार की विद्याओं से युक्त (च) और (वाजम्) अङ्ग, उपाङ्ग, उपनिषदों सहित वेदादि शास्त्रों का बोध उसको दूसरों के लिये हम लोग (सनेम) देवें ॥ १३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्रातर्वेला अच्छे गुण, कर्म और स्वभाववाली है, वैसी स्त्री हों और वैसे उत्तम गुण, कर्मवाले मनुष्य हों जैसे और विद्वान् से अपने प्रयोजन के लिये विद्या लेवें, वैसे ही प्रीति से औरों के लिये भी विद्या देवें ॥ १३ ॥इस सूक्त में प्रभात वेला के दृष्टान्त से स्त्रियों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह १२४ वाँ सूक्त और ९ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः कीदृश्यः स्त्रियो वरा भवेयुरित्याह ।

Anvay:

हे उषास उषोभिस्तुल्या स्तोम्या देवीर्विदुष्यो ब्रह्मणा उशतीर्यूयं मे विद्याः अस्तोढ्वमवीवृधध्वम्। युष्माकमवसा सहस्रिणं च शतिनं च वाजं साङ्गसरहस्यवेदादिशास्त्रबोधं सनेम ॥ १३ ॥

Word-Meaning: - (अस्तोढ्वम्) स्तुवत (स्तोम्याः) स्तोतुमर्हाः (ब्रह्मणा) वेदेन (मे) मह्यम् (अवीवृधध्वम्) वर्द्धयत (उशतीः) कामयमानाः (उषासः) प्रभाताः। अत्रान्येषामपीत्युपधादीर्घः। (युष्माकम्) (देवीः) दिव्यविद्यायुक्ताः (अवसा) रक्षणाद्येन (सनेम) अन्येभ्यो दद्याम (सहस्रिणम्) सहस्रमसंख्याता गुणा विद्यन्ते यस्मिंस्तम् (च) (शतिनम्) शतशो विद्यायुक्तम् (च) (वाजम्) विज्ञानमयं बोधम् ॥ १३ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथोषसः शुभगुणकर्मस्वभावाः सन्ति तद्वत् स्त्रियो भवेयुस्तथाऽत्युत्तमा मनुष्या भवेयुः। यथान्यस्माद्विदुषः स्वप्रयोजनाय विद्या गृह्णीयुस्तथैव प्रीत्यान्येभ्योऽपि दद्युः ॥ १३ ॥अत्रोषसो दृष्टान्तेन स्त्रीणां गुणवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोध्यम् ॥इति चतुर्विंशत्युत्तरशततमं सूक्तं नवमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी उषा शुभ गुण, कर्म, स्वभावयुक्त असते. तशी स्त्री असावी. तशीच माणसेही असावीत. जसे इतर विद्वानांकडून आपल्या प्रयोजनासाठी विद्या घेतो तशी प्रेमाने इतरांनाही ती द्यावी. ॥ १३ ॥