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अवे॒यम॑श्वैद्युव॒तिः पु॒रस्ता॑द्यु॒ङ्क्ते गवा॑मरु॒णाना॒मनी॑कम्। वि नू॒नमु॑च्छा॒दस॑ति॒ प्र के॒तुर्गृ॒हंगृ॑ह॒मुप॑ तिष्ठाते अ॒ग्निः ॥

English Transliteration

aveyam aśvaid yuvatiḥ purastād yuṅkte gavām aruṇānām anīkam | vi nūnam ucchād asati pra ketur gṛhaṁ-gṛham upa tiṣṭhāte agniḥ ||

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Pad Path

अव॑। इ॒यम्। अ॒श्वै॒त्। यु॒व॒तिः। पु॒रस्ता॑त्। यु॒ङ्क्ते। गवा॑म्। अ॒रु॒णाना॑म्। अनी॑कम्। वि। नू॒नम्। उ॒च्छा॒त्। अस॑ति। प्र। के॒तुः। गृ॒हम्ऽगृ॑हम्। उप॑। ति॒ष्ठा॒ते॒। अ॒ग्निः ॥ १.१२४.११

Rigveda » Mandal:1» Sukta:124» Mantra:11 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जैसे (इयम्) यह प्रभातवेला (अरुणानाम्) लाली लिये हुए (गवाम्) सूर्य की किरणों के (अनीकम्) सेना के समान समूह को (युङ्क्ते) जोड़ती और (पुरस्तादवाश्वैत्) पहिले से बढ़ती है वैसे (युवतिः) पूरी चौबीस वर्ष की ज्वान स्त्री लाल रङ्ग के गौ आदि पशुओं के समूह को जोड़ती पीछे उन्नति को प्राप्त होती इससे (प्र, केतुः) उठी है शिखा जिसकी वह बढ़ती हुई प्रभात वेला (असति) हो और (नूनम्) निश्चय से (व्युच्छात्) सबको प्राप्त हो (अग्निः) तथा सूर्यमण्डल का तरुण ताप उत्कट धाम (गृहंगृहम्) घर-घर (उप, तिष्ठाते) उपस्थित हो युवति भी उत्तम बुद्धिवाली होती, निश्चय से सब पदार्थों को प्राप्त होती और इसका उत्कट प्रताप घर-घर उपस्थित होता अर्थात् सब स्त्री-पुरुष जानते और मानते हैं ॥ ११ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्रभातवेला और दिन सदैव मिले हुए वर्त्तमान हैं, वैसे ही विवाहित स्त्री-पुरुष मेल से अपना वर्त्ताव रक्खें और जिस नियम के जो पदार्थ हों, उस नियम से उनको पावें तब इनका प्रताप बढ़ता है ॥ ११ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यथेयमुषा अरुणानां गवामनीकं युङ्क्ते पुरस्तादवाश्वैच्च तथा युवतिररुणानां गवामनीकं युङ्क्तेऽवाश्वैत्ततः प्रकेतुरुषा असति नूनं व्युच्छात्। अग्निरस्याः प्रतापो गृहंगृहमुपतिष्ठाते युवतिश्च प्रकेतुरसति नूनं व्युच्छात्। अग्निरस्याः प्रतापो गृहंगृहमुपतिष्ठाते ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (अव) (इयम्) (अश्वैत्) वर्द्धते (युवतिः) पूर्णचतुर्विंशतिवार्षिकी (पुरस्तात्) प्रथमतः (युङ्क्ते) समवैति (गवाम्) किरणानां गवादीनां पशूनां वा (अरुणानाम्) रक्तानाम् (अनीकम्) सैन्यमिव समूहम् (वि) (नूनम्) (उच्छात्) प्राप्नुयात् (असति) स्यात् (प्र) (केतुः) उद्गतशिखा प्रज्ञावती वा (गृहंगृहम्) (उप) (तिष्ठाते) तिष्ठेत (अग्निः) अरुणतरुणतापस्तीव्रप्रतापो वा ॥ ११ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथोषर्दिने सदैव समवेते वर्त्तेते तथैव विवाहितौ स्त्रीपुरुषौ वर्तेयातां यथानियतं सर्वान् पदार्थान् प्राप्नुयातां च तदानयोः प्रतापो वर्द्धते ॥ ११ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी उषा व दिवस सदैव संपृक्त असतात. तसे विवाहित स्त्री-पुरुषांनी वागावे. ज्या नियमाचे जे पदार्थ असतात त्यांना त्याच नियमाने प्राप्त करावे तेव्हा त्यांची कीर्ती वाढते. ॥ ११ ॥