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उ॒षा उ॒च्छन्ती॑ समिधा॒ने अ॒ग्ना उ॒द्यन्त्सूर्य॑ उर्वि॒या ज्योति॑रश्रेत्। दे॒वो नो॒ अत्र॑ सवि॒ता न्वर्थं॒ प्रासा॑वीद्द्वि॒पत्प्र चतु॑ष्पदि॒त्यै ॥

English Transliteration

uṣā ucchantī samidhāne agnā udyan sūrya urviyā jyotir aśret | devo no atra savitā nv artham prāsāvīd dvipat pra catuṣpad ityai ||

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Pad Path

उ॒षाः। उ॒च्छन्ती॑। स॒म्ऽइधा॒ने। अ॒ग्नौ। उ॒त्ऽयन्। सूर्यः॑। उ॒र्वि॒या। ज्योतिः॑। अ॒श्रे॒त्। दे॒वः। नः॒। अत्र॑। स॒वि॒ता। नु। अर्थ॑म्। प्र। अ॒सा॒वी॒त्। द्वि॒ऽपत्। प्र। चतुः॑ऽपत्। इ॒त्यै ॥ १.१२४.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:124» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:7» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब तेरह ऋचावाले एकसौ चौबीसवें १२४ सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में सूर्यलोक के विषय का वर्णन किया है ।

Word-Meaning: - जब (समिधाने) जलते हुए (अग्नौ) अग्नि का निमित्त (सूर्यः) सूर्यमण्डल (उद्यत्) उदय होता हुआ (उर्विया) पृथिवी के साथ (ज्योतिः) प्रकाश को (अश्रेत्) मिलाता तब (उच्छन्ती) अन्धकार को निकालती हुई (उषाः) प्रातःकाल की वेला उत्पन्न होती है। ऐसे (अत्र) इस संसार में (सविता) कामों में प्रेरणा देनेवाला (देवः) उत्तम प्रकाशयुक्त उक्त सूर्यमण्डल (नः) हम लोगों को (अर्थम्) प्रयोजन को (इत्यै) प्राप्त कराने के लिये (प्रासावीत्) सारांश को उत्पन्न करता तथा (द्विपत्) दो पगवाले मनुष्य आदि वा (चतुष्पत्) चार पगवाले चौपाये पशु आदि प्राणियों को (नु) शीघ्र (प्र) उत्तमता से उत्पन्न करता है ॥ १ ॥
Connotation: - पृथिवी का सूर्य की किरणों के साथ संयोग होता है, वही संयोग तिरछा जाता हुआ प्रभात समय के होने का कारण होता है, जो सूर्य न हो तो अनेक प्रकार के पदार्थ अलग-अलग देखे नहीं जा सकते हैं ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्यलोकविषयमाह ।

Anvay:

यदा समिधानेऽग्नौ सूर्य्य उद्यन्सन्नुर्विया सह ज्योतिरश्रेत्तदोच्छन्त्युषा जायते। एवमत्र सविता देवो नोऽर्थमित्यै प्रासावीत् द्विपच्चतुष्पच्च नु प्रासावीत् ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (उषाः) (उच्छन्ती) अन्धकारं निस्सारयन्ती (समिधाने) प्रदीप्ते (अग्नौ) पावके (उद्यन्) उदयं प्राप्नुवत् (सूर्य्यः) सविता (उर्विया) पृथिव्या। उर्वीति पृथिवीना०। निघं० १। १। (ज्योतिः) प्रकाशः (अश्रेत्) श्रयति (देवः) दिव्यप्रकाशः (नः) अस्माकम् (अत्र) जगति (सविता) कर्म्मसु प्रेरकः (नु) शीघ्रम् (अर्थम्) प्रयोजनम् (प्र) (असावीत्) सुनोति (द्विपत्) द्वौ पादौ यस्य तत् (प्र) (चतुष्पत्) (इत्यै) प्रापयितुम् ॥ १ ॥
Connotation: - पृथिव्या सूर्य्यकिरणैः सह संयोगो जायते स एव तिर्य्यग्गतः सन्नुषसः कारणं भवति यदि सूर्य्यो न स्यात्तर्हि विविधरूपाणि द्रव्याणि पृथक् पृथक् द्रष्टुमशक्यानि स्युः ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात उषेच्या दृष्टान्ताद्वारे स्त्रियांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - पृथ्वीचा सूर्याच्या किरणांबरोबर संयोग होतो. तोच संयोग वक्र होत प्रभात वेळ होण्याचे कारण असते. जर सूर्य नसता तर अनेक प्रकारचे पदार्थ वेगवेगळे पाहता आले नसते. ॥ १ ॥