Go To Mantra

स्तु॒षे सा वां॑ वरुण मित्र रा॒तिर्गवां॑ श॒ता पृ॒क्षया॑मेषु प॒ज्रे। श्रु॒तर॑थे प्रि॒यर॑थे॒ दधा॑नाः स॒द्यः पु॒ष्टिं नि॑रुन्धा॒नासो॑ अग्मन् ॥

English Transliteration

stuṣe sā vāṁ varuṇa mitra rātir gavāṁ śatā pṛkṣayāmeṣu pajre | śrutarathe priyarathe dadhānāḥ sadyaḥ puṣṭiṁ nirundhānāso agman ||

Mantra Audio
Pad Path

स्तु॒षे। सा। वा॒म्। व॒रु॒ण॒। मि॒त्र॒। रा॒तिः। गवा॑म्। श॒ता। पृ॒क्षऽया॑मेषु। प॒ज्रे। श्रु॒तऽर॑थे। प्रि॒यऽर॑थे। दधा॑नाः। स॒द्यः। पु॒ष्टिम्। नि॒ऽरु॒न्धा॒नासः॑। अ॒ग्म॒न् ॥ १.१२२.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:122» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:2» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:7


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जैसे विद्वान् जन ! (पज्रे) पदार्थों के पहुँचानेवाले (श्रुतरथे) सुने हुए रमण करने योग्य रथ वा (प्रियरथे) अति मनोहर रथ में (सद्यः) शीघ्र (पुष्टिम्) पुष्टि को (दधानाः) धारण करते और दुःख को (निरुन्धानासः) रोकते हुए (अग्मन्) जावें, वैसे हे (वरुण) गुणों से उत्तमता को प्राप्त और (मित्र) मित्र तुम (पृक्षयामेषु) जो पूँछे जाते उनके यम-नियमों में (गवां, शता) सैकड़ों वचनों को प्राप्त होओ। और जो तुम्हारी (रातिः) दान देनेवाली स्त्री है (सा) वह (वाम्) तुम दोनों की (स्तुषे) स्तुति करती है, वैसे मैं भी स्तुति करूँ ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे इस संसार में विद्वान् जन पुरुषार्थ से अनेकों अद्भुत यानों को बनाते हैं, वैसे औरों को भी बनाने चाहिये ॥ ७ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यथा विद्वांसः पज्रे श्रुतरथे प्रियरथे सद्यः पुष्टिं दधाना दुःखं निरुन्धानासोऽग्मंस्तथा हे वरुण मित्र युवां पृक्षयामेषु गवां शता गच्छतम् या युवयो रातिः स्त्री सा वां युवां यथा स्तुषे तथाऽहमपि स्तौमि ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (स्तुषे) स्तौति। अत्र व्यत्ययेन मध्यमः। (सा) (वाम्) युवाम् (वरुण) गुणोत्कृष्ट (मित्र) सुहृत् (रातिः) या राति ददाति सा (गवाम्) वाणीनाम् (शता) शतानि (पृक्षयामेषु) पृच्छ्यन्ते ये ते पृक्षास्तेषामिमे यामास्तेषु। अत्र पृच्छधातोर्बाहुलकादौणादिकः क्सः प्रत्ययः। (पज्रे) गमके (श्रुतरथे) श्रुते रमणीये रथे (प्रियरथे) कमनीये रथे (दधानाः) धरन्तः (सद्यः) (पुष्टिम्) (निरुन्धानासः) निरोधं कुर्वाणाः (अग्मन्) गच्छेयुः ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथेह विद्वांसः पुरुषार्थेनानेकान्यद्भुतानि यानानि रचयन्ति तथान्यैरपि रचनीयानि ॥ ७ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे या संसारात विद्वान लोक पुरुषार्थाने अनेक अद्भुत याने तयार करतात तशी इतरांनीही तयार करावीत. ॥ ७ ॥