Go To Mantra

प्र व॒: पान्तं॑ रघुमन्य॒वोऽन्धो॑ य॒ज्ञं रु॒द्राय॑ मी॒ळ्हुषे॑ भरध्वम्। दि॒वो अ॑स्तो॒ष्यसु॑रस्य वी॒रैरि॑षु॒ध्येव॑ म॒रुतो॒ रोद॑स्योः ॥

English Transliteration

pra vaḥ pāntaṁ raghumanyavo ndho yajñaṁ rudrāya mīḻhuṣe bharadhvam | divo astoṣy asurasya vīrair iṣudhyeva maruto rodasyoḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

प्र। वः॒। पान्त॑म्। र॒घु॒ऽम॒न्य॒वः॒। अन्धः॑। य॒ज्ञम्। रु॒द्राय॑। मी॒ळ्हुषे॑। भ॒र॒ध्व॒म्। दि॒वः। अ॒स्तो॒षि॒। असु॑रस्य। वी॒रैः। इ॒षु॒ध्याऽइ॑व। म॒रुतः॑। रोद॑स्योः ॥ १.१२२.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:122» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:1» Varga:1» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:18» Mantra:1


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब द्वितीय अष्टक के प्रथम अध्याय का आरम्भ है। उसमें एकसौ बाईसवें सूक्त के प्रथम मन्त्र में सभापति के कार्य्य का उपदेश किया जाता है ।

Word-Meaning: - हे (रघुमन्यवः) थोड़े क्रोधवाले मनुष्यो ! (रोदस्योः) भूमि और सूर्य्यमण्डल में जैसे (मरुतः) पवन विद्यमान वैसे (इषुध्येव) जिसमें बाण धरे जाते उस धनुष से जैसे वैसे (वीरैः) वीर मनुष्यों के साथ वर्त्तमान तुम (मीढुषे) सज्जनों के प्रति सुखरूपी वृष्टि करने और (रुद्राय) दुष्टों को रुलानेहारे सभाध्यक्षादि के लिये (वः) तुम लोगों की (पान्तम्) रक्षा करते हुए (यज्ञम्) सङ्गम करने योग्य उत्तम व्यवहार और (अन्धः) अन्न को तथा (दिवः) विद्या प्रकाशों जो कि (असुरस्य) अविद्वान् के सम्बन्ध में वर्त्तमान उपदेश आदि उनको जैसे (प्र, भरध्वम्) धारण वा पुष्ट करो, वैसे मैं इस तुम्हारे व्यवहार की (अस्तोषि) स्तुति करता हूँ ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में पूर्णोपमा और वाचकलुप्तोपमा ये दोनों अलङ्कार हैं। जब मनुष्यों का योग्य पुरुषों के साथ अच्छा यत्न बनता है, तब कठिन भी काम सहज से सिद्ध कर सकते हैं ॥ १ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

तत्रादौ सभापतिकार्यमुपदिश्यते ।

Anvay:

हे रघुमन्यवो रोदस्योर्मरुतइव इषुध्येव वीरैः। सह वर्त्तमाना यूयं मीढुषे रुद्राय वः पान्तं यज्ञमन्धश्च दिवोऽसुरस्य सम्बन्धे वर्त्तमानान् यथा प्रभरध्वं तथाहमेतमस्तोषि ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (प्र) प्रकृष्टे (वः) युष्मान् (पान्तम्) रक्षन्तम् (रघुमन्यवः) लघुक्रोधाः। अत्र वर्णव्यत्ययेन लस्य रः। (अन्धः) अन्नम् (यज्ञम्) सङ्गन्तव्यम् (रुद्राय) दुष्टानां रोदयित्रे (मीढुषे) सज्जनान् प्रति सुखसेचकाय (भरध्वम्) धरध्वम् (दिवः) विद्याप्रकाशान् (अस्तोषि) स्तौमि (असुरस्य) अविदुषः (वीरैः) (इषुध्येव) इषवो धीयन्ते यस्या तयेव (मरुतः) वायवः (रोदस्योः) भूमिसूर्ययोः ॥ १ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। मनुष्यैर्यदा योग्यपुरुषैः सह प्रयत्यते तदा कठिनमपि कृत्यं सहजतया साद्धुं शक्यते ॥ १ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

राजा, प्रजा व साधारण माणसांच्या धर्माच्या वर्णनाने या सूक्तात सांगितलेल्या अर्थाबरोबर मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर साम्य आहे, हे जाणले पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात पूर्णोपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जेव्हा माणसांचा योग्य पुरुषांबरोबर चांगला जम बसतो तेव्हा कठीण कामही सहज सिद्ध होते. ॥ १ ॥