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यु॒वं ह्यास्तं॑ म॒हो रन्यु॒वं वा॒ यन्नि॒रत॑तंसतम्। ता नो॑ वसू सुगो॒पा स्या॑तं पा॒तं नो॒ वृका॑दघा॒योः ॥

English Transliteration

yuvaṁ hy āstam maho ran yuvaṁ vā yan niratataṁsatam | tā no vasū sugopā syātam pātaṁ no vṛkād aghāyoḥ ||

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Pad Path

यु॒वम्। हि। आस्त॑म्। म॒हः। रन्। यु॒वम्। वा॒। यत्। निः॒ऽअत॑तंसतम्। ता। नः॒। व॒सू॒ इति॑। सु॒ऽगो॒पा। स्या॒त॒म्। पा॒तम्। नः॒। वृका॑त्। अ॒घ॒ऽयोः ॥ १.१२०.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:120» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:23» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (वसू) निवास करानेहारे अध्यापक-उपदेशको ! (रन्) औरों को सुख देते हुए जो (युवम्) तुम (यत्) जिस पर (आस्तम्) बैठो (वा) अथवा (युवम्) तुम दोनों (नः) हम लोगों के (सुगोपा) भली-भाँति रक्षा करनेहारे (स्यातम्) होओ, वे (महः) बड़ा (अघायोः) जोकि अपने को अन्याय करने से पाप चाहता (वृकात्) उस चोर डाकू से (नः) हम लोगों को (पातम्) पालो और (ता) वे (हि) ही आप दोनों (निरततंसतम्) विद्या आदि उत्तम भूषणों से परिपूर्ण शोभायमान करो ॥ ७ ॥
Connotation: - जैसे सभा सेनाधीश चोर आदि के भय से प्रजाजनों की रक्षा करें वैसे ये भी सब प्रजाजनों के पालना करने योग्य होवें। सब अध्यापक उपदेशक तथा शिक्षक आदि मनुष्य धर्म में स्थिर हुए अधर्म का विनाश करें ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे वसू अश्विनौ रन् यौ युवं यदास्तं वा युवं नोऽस्माकं सुगोपा स्यातं तौ महोऽघायोर्वृकान्नोऽस्मान्पातं ता हि युवां निरततंसतं च ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (युवम्) युवाम् (हि) किल (आस्तम्) आसाथाम्। व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (महः) महतः (रन्) ददमानौ। दन्वदस्य सिद्धिः। (युवम्) युवाम् (वा) पक्षान्तरे (यत्) (निरततंसतम्) नितरां विद्यादिभिर्भूषणैरलंकुरुतम् (ता) तौ (नः) अस्मान् (वसू) वासयितारौ (सुगोपा) सुष्ठुरक्षकौ (स्यातम्) (पातम्) पालयतम् (न) अस्माकम् (वृकात्) स्तेनात् (अघायोः) आत्मनोऽन्यायाचरणेनाघमिच्छतः ॥ ७ ॥
Connotation: - यथा सभासेनेशौ चोरादिभयात्प्रजास्त्रायेतां तथैतौ सर्वैः पालनीयौ स्याताम्। सर्वे धर्मेष्वासीनाः सन्तोऽध्यापकोपदेशकशिक्षका अधर्मं विनाशयेयुः ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे सभा सेनाधीशाने चोर वगैरेच्या भयापासून प्रजेचे रक्षण करावे तसे त्यांनीही प्रजेचे पालन करण्यायोग्य बनावे. सर्व अध्यापक, उपदेशक व शिक्षक इत्यादींनी धर्मात स्थिर होऊन अधर्माचा नाश करावा. ॥ ७ ॥