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यस्त्वाम॑ग्ने ह॒विष्प॑तिर्दू॒तं दे॑व सप॒र्यति॑। तस्य॑ स्म प्रावि॒ता भ॑व॥

English Transliteration

yas tvām agne haviṣpatir dūtaṁ deva saparyati | tasya sma prāvitā bhava ||

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Pad Path

यः। त्वाम्। अ॒ग्ने॒। ह॒विःऽप॑तिः। दू॒तम्। दे॒व॒। स॒प॒र्यति॑। तस्य॑। स्म॒। प्र॒ऽअ॒वि॒ता। भ॒व॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:12» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:23» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी अगले मन्त्र में ईश्वर और भौतिक अग्नि का उपदेश किया है-

Word-Meaning: - हे (देव) सब के प्रकाश करनेवाले (अग्ने) विज्ञानस्वरूप जगदीश्वर ! (यः) जो (हविष्पतिः) देने-लेने योग्य वस्तुओं का पालन करनेवाला मनुष्य (दूतम्) ज्ञान देनेवाले आपका (सपर्य्यति) सेवन करता है, (तस्य) उस सेवक मनुष्य के आप (प्राविता) अच्छी प्रकार जाननेवाले (भव) हों॥१॥८॥(यः) जो (हविष्पतिः) देने-लेने योग्य पदार्थों की रक्षा करनेवाला मनुष्य (देव) प्रकाश और दाहगुणवाले (अग्ने) भौतिक अग्नि का (सपर्य्यति) सेवन करता है, (तस्य) उस मनुष्य का वह अग्नि (प्राविता) नाना प्रकार के सुखों से रक्षा करनेवाला (भव) होता है॥२॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। दूत शब्द का अर्थ दो पक्ष में समझना चाहिये अर्थात् एक इस प्रकार से कि सब मनुष्यों में ज्ञान का पहुँचाना ईश्वर पक्ष में, तथा एकदेश से दूसरे देश में पदार्थों का पहुँचाना भौतिक पक्ष में ग्रहण किया गया है। जो आस्तिक अर्थात् परमेश्वर में विश्वास रखनेवाले मनुष्य अपने हृदय में सर्वसाक्षी का ध्यान करते हैं, वे पुरुष ईश्वर से रक्षा को प्राप्त होकर पापों से बचकर धर्मात्मा हुए अत्यन्त सुख को प्राप्त होते हैं, तथा जो युक्ति से विमान आदि रथों में भौतिक अग्नि को संयुक्त करते हैं, वे भी युद्धादिकों में रक्षा को प्राप्त होकर औरों की रक्षा करनेवाले होते हैं॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तावेवोपदिश्येते।

Anvay:

हे देवाग्ने ! यो हविष्पतिर्मनुष्यो दूतं त्वां सपर्य्यति तस्य त्वं प्राविता भव स्मेत्येकोऽन्वयः। यो हविष्पतिर्मनुष्यस्त्वां तं देवं दूतमग्निं सपर्य्यति तस्यायं प्राविता भवति स्म (इति द्वितीयः)॥८॥

Word-Meaning: - (यः) मनुष्यः (त्वाम्) तं वा (अग्ने) विज्ञानस्वरूप ! अग्निर्वा। अत्र सर्वत्रार्थाद्विभक्तेर्विपरिणाम इति परिभाषया साधुत्वं विज्ञेयम्। (हविष्पतिः) हविषां दातुं ग्रहीतुं योग्यानां द्रव्याणां गुणानां वा पतिः पालकः कर्मानुष्ठाता (दूतम्) दवति प्रापयति सुखज्ञाने येन तम् (देव) सर्वप्रकाशकेश्वर ! प्रकाशदाहयुक्तमग्निं वा (सपर्य्यति) सेवते। सपर्य्यतीति परिचरणकर्मसु पठितम्। (निघं०३.५) (तस्य) सेवकस्य (स्म) स्पष्टार्थे (प्राविता) प्रकृष्टतया ज्ञाता सुखप्रापको वा (भव) भवति वा॥८॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। दूतशब्देन ज्ञानप्रापकत्वमीश्वरे देशान्तरे द्रव्ययानप्रापणं च भौतिके मत्वाऽस्य प्रयोगः कृतोऽस्ति। ये मनुष्या आस्तिका भूत्वा हृदये सर्वसाक्षिणं परमेश्वरं ध्यायन्ति त एवेश्वरेण रक्षिताः पापानि त्यक्त्वा धर्मात्मानः सन्तः सुखं प्राप्नुवन्ति। ये युक्त्या यानयन्त्रादिष्वग्निं प्रयुञ्जते तेऽपि युद्धादिषु कार्य्येषु रक्षिता रक्षकाश्च भवन्तीति॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. दूत या शब्दाचा अर्थ दोन प्रकारे जाणला पाहिजे. एक अशाप्रकारे की सर्व माणसांमध्ये ज्ञानप्रापकत्व, हा ईश्वरी पक्ष व एका स्थानाहून दुसऱ्या स्थानी पदार्थ पोहोचविणे हा भौतिक पक्ष, असे दोन पक्ष ग्रहण केलेले आहेत. जी आस्तिक अर्थात परमेश्वरावर विश्वास ठेवणारी माणसे आपल्या हृदयात सर्वसाक्षीचे ध्यान करतात त्या पुरुषांचे ईश्वराकडून रक्षण होते व पापापासून बचाव होतो. तसेच ती धर्मात्मा बनून सुखी होतात व जी माणसे युक्तीने विमान इत्यादी रथांमध्ये भौतिक अग्नीला संयुक्त करतात, त्यांचेही युद्धात वगैरे रक्षण होऊन ती इतरांचेही रक्षण करतात. ॥ ८ ॥