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अग्ने॑ शु॒क्रेण॑ शो॒चिषा॒ विश्वा॑भिर्दे॒वहू॑तिभिः। इ॒मं स्तोमं॑ जुषस्व नः॥

English Transliteration

agne śukreṇa śociṣā viśvābhir devahūtibhiḥ | imaṁ stomaṁ juṣasva naḥ ||

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Pad Path

अग्ने॑। शु॒क्रेण॑। शो॒चिषा॑। विश्वा॑भिः। दे॒वहू॑तिऽभिः। इ॒मम्। स्तोम॑म्। जु॒ष॒स्व॒। नः॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:12» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:23» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी अगले मन्त्र में इन्हीं के गुणों का उपदेश किया है-

Word-Meaning: - हे (अग्ने) प्रकाशमय ईश्वर ! आप कृपा करके (शुक्रेण) अनन्तवीर्य के साथ (शोचिषा) शुद्धि करनेवाले प्रकाश तथा (विश्वाभिः) विद्वान् और वेदों की वाणियों से सब प्राणियों के लिये (नः) हमारे (इमम्) इस प्रत्यक्ष (स्तोमम्) स्तुतिसमूह को (जुषस्व) प्रीति के साथ सेवन कीजिये॥१॥यह (अग्ने) भौतिक अग्नि (विश्वाभिः) सब (देवहूतिभिः) विद्वान् तथा वेदों की वाणियों से अच्छी प्रकार सिद्ध किया हुआ (शुक्रेण) अपनी कान्ति वा (शोचिषा) पवित्र करनेवाले प्रकाश से (नः) हमारे (इमम्) इस (स्तोमम्) प्रशंसा करने योग्य कला की कुशलता को (जुषस्व) सेवन करता है॥२॥१२॥यह (अग्ने) भौतिक अग्नि (विश्वाभिः) सब (देवहूतिभिः) विद्वान् तथा वेदों की वाणियों से अच्छी प्रकार सिद्ध किया हुआ (शुक्रेण) अपनी कान्ति वा (शोचिषा) पवित्र करनेवाले प्रकाश से (नः) हमारे (इमम्) इस (स्तोमम्) प्रशंसा करने योग्य कला की कुशलता को (जुषस्व) सेवन करता है॥२॥१२॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। दिव्यविद्याओं के प्रकाश होने से देव शब्द से वेदों का ग्रहण किया है। जब मनुष्य लोग सत्य प्रेम के साथ वेदवाणी से जगदीश्वर की स्तुति करते हैं, तब वह परमेश्वर उन मनुष्यों को विद्यादान से प्रसन्न करता है। वैसे ही यह भौतिक अग्नि भी विद्या से कलाकुशलता में युक्त किया हुआ इन्धन आदि पदार्थों में ठहर कर सब क्रियाकाण्ड का सेवन करता है॥१२॥इस बारहवें सूक्त के अर्थ की अग्निशब्द के अर्थ के योग से ग्यारहवें सूक्त के अर्थ से सङ्गति जाननी चाहिये। यह भी सूक्त सायणाचार्य्य आदि आर्य्यावर्तवासी तथा यूरोपदेशवासी विलसन आदि ने विपरीतता से वर्णन किया है॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरेतद्गुणा उपदिश्यन्ते।

Anvay:

हे अग्ने जगदीश्वर ! त्वं कृपया शुक्रेण शोचिषा विश्वाभिर्देवहूतिभिर्न इमं स्तोमं जुषस्वेत्याद्यः॥अयमग्निविश्वाभिर्देवहूतिभिः सम्यक् साधितः सन् शुक्रेण शोचिषा न इमं स्तोमं जुषत इति द्वितीयः॥१२॥

Word-Meaning: - (अग्ने) प्रकाशमयेश्वर ! भौतिको वा (शुक्रेण) अनन्तवीर्य्येण सह भास्वरेण वा (शोचिषा) शुद्धिकारकेण प्रकाशेन (विश्वाभिः) सर्वाभिः (देवहूतिभिः) विदुषां वेदानां वा वाग्भिराह्वानान्याहूतयस्ताभिः (इमम्) प्रत्यक्षम् (स्तोमम्) स्तुतिसमूहं प्रशंसनीयकलाकौशलं वा (जुषस्व) प्रीत्या सेवस्व, जुषते वा (नः) अस्माकम्॥१२॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। दिव्यानां विद्यानां प्रकाशकत्वाद् देवशब्देन वेदा गृह्यन्ते। यदा मनुष्यैः सत्यभावेन वेदवाण्या जगदीश्वरः स्तूयते तदाऽयं प्रीतः संस्तान् विद्यादानेन प्रीणयति। अयं भौतिकोऽग्निरपि विद्यया कलाकौशलेन सम्प्रयोजित इन्धनादिस्थः सन् सर्व क्रियाकाण्डं सेवते॥१२॥अस्य द्वादशसूक्तार्थस्याग्न्यर्थयोजनेनैकादशसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोध्यम्। इदमपि सूक्तं सायणाचार्य्यादिभिर्यूरोपवासिभिर्विलसनादिभिश्चान्यथैव व्याख्यातम्॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. दिव्य विद्यांचा प्रकाश असल्यामुळे देव शब्द वेदाने ग्राह्य धरलेला आहे. जेव्हा माणसे सत्य भावाने वेदवाणीद्वारे जगदीश्वराची स्तुती करतात तेव्हा तो परमेश्वर त्या माणसांना विद्यादानाने प्रसन्न करतो, तसाच हा भौतिक अग्नीही विद्येने व कलाकौशल्याने संप्रयोजित केलेल्या इंधन इत्यादी पदार्थांमध्ये स्थिर होऊन सर्व क्रियाकांड घडवून आणतो. ॥ १२ ॥
Footnote: याही सूक्ताचे सायणाचार्य इत्यादी आर्यावर्तवासी व युरोपदेशवासी विल्सन इत्यादींनी विपरीत वर्णन केलेले आहे.