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यु॒वं पे॒दवे॑ पुरु॒वार॑मश्विना स्पृ॒धां श्वे॒तं त॑रु॒तारं॑ दुवस्यथः। शर्यै॑र॒भिद्युं॒ पृत॑नासु दु॒ष्टरं॑ च॒र्कृत्य॒मिन्द्र॑मिव चर्षणी॒सह॑म् ॥

English Transliteration

yuvam pedave puruvāram aśvinā spṛdhāṁ śvetaṁ tarutāraṁ duvasyathaḥ | śaryair abhidyum pṛtanāsu duṣṭaraṁ carkṛtyam indram iva carṣaṇīsaham ||

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Pad Path

यु॒वम्। पे॒दवे॑। पु॒रु॒ऽवार॑म्। अ॒श्वि॒ना॒। स्पृ॒धाम्। श्वे॒तम्। त॒रु॒तार॑म्। दु॒व॒स्य॒थः॒। शर्यैः॑। अ॒भिऽद्यु॑म्। पृत॑नासु। दु॒स्तर॑म्। च॒र्कृत्य॑म्। इन्द्र॑म्ऽइव। च॒र्ष॒णि॒ऽसह॑म् ॥ १.११९.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:119» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:21» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब बिजुलीरूप अग्नि से जो तारविद्या प्रकट होती है, उसका उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

Word-Meaning: - हे (अश्विना) सब विद्याओं में व्याप्त सभा सेनाधीशो ! (युवम्) तुम दोनों (पेदवे) पहुँचने वा जाने को (स्पृधाम्) शत्रुओं को ईर्ष्या से बुलानेवालों की (पृतनासु) सेनाओं में (चर्कृत्यम्) निरन्तर करने के योग्य (श्वेतम्) अतीव गमन करने को बढ़े हुए (पुरुवारम्) जिससे कि बहुत लेने योग्य काम होते हैं (दुष्टरम्) जो शत्रुओं से दुःख के साथ उलांघा जा सकता (चर्षणीसहम्) जिससे मनुष्य शत्रुओं को सहते जो (शर्य्यैः) तोड़ने-फोड़ने के योग्य पेंचों से बाँधा वा (अभिद्युम्) जिसमें सब ओर बिजुली की आग चमकती, उस (इन्द्रमिव) सूर्य के प्रकाश के समान वर्त्तमान (तरुतारम्) संदेशों को तारने अर्थात् इधर-उधर पहुँचानेवाले तारयन्त्र को (दुवस्यथः) सेवो ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे मनुष्यों से बिजुली से सिद्ध की हुई तारविद्या से चाहे हुए काम सिद्ध किये जाते हैं, वैसे ही संन्यासी के सङ्ग से समस्त विद्याओं को पाकर धर्म आदि काम करने को समर्थ होते हैं। इन्हीं दोनों से व्यवहार और परमार्थसिद्धि करी जा सकती है, इससे यत्न के साथ तडित्-तारविद्या अवश्य सिद्ध करनी चाहिये ॥ १० ॥इस सूक्त में राजा-प्रजा, संन्यासी-महात्माओं की विद्या के विचार का आचरण कहने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति समझनी चाहिये ॥यह २१ इक्कीसवाँ वर्ग और ११९ एकसौ उन्नीसवाँ सूक्त पूरा हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ तडित्तारविद्योपदेशः क्रियते ।

Anvay:

हे अश्विना युवं पेदवे स्पृधां पृतनासु चर्कृत्यं श्वेतं पुरुवारं दुष्टरं चर्षणीसहं शर्य्यैरभिद्युमिन्द्रमिव तरुतारं दुवस्यथः ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (युवम्) युवाम् (पेदवे) प्राप्तुं गन्तुं वा (पुरुवारम्) पुरूणि बहूनि वरितुं योग्यानि कर्माणि यस्मात्तम् (अश्विना) सर्वविद्याव्याप्तिमन्तौ सभासेनेशौ (स्पृधाम्) शत्रुभिः सह स्पर्धमानाम् (श्वेतम्) सततं गन्तुं प्रवृद्धम् (तरुतारम्) शब्दान् संतारकं प्लावकं वा ताराख्यं व्यवहारम् (दुवस्यथः) सेवेथाम् (शर्य्यैः) हिंसितुं ताडितुमर्हैर्यन्त्रैर्युक्तम् (अभिद्युम्) अभितो दिवो विद्युद्योगप्रकाशा यस्मिँस्तम् (पृतनासु) सेनासु (दुष्टरम्) शत्रुभिर्दुःखेनोल्लङ्घयितुं शक्यम् (चर्कृत्यम्) भृशं कर्त्तुं योग्यम् (इन्द्रमिव) सूर्य्यप्रकाशमिव सद्यो गन्तारम् (चर्षणीसहम्) चर्षणयो मनुष्याः शत्रून् सहन्ते येन तम् ॥ १० ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा मनुष्यैस्तडिद्विद्ययाऽभीष्टानि कार्य्याणि संसाध्यन्ते तथैव परिव्राट्सङ्गेन सर्वा विद्याः प्राप्य धर्मादिकार्य्याणि कर्त्तुं प्रभूयन्ते। एताभ्यामेव व्यवहारपरमार्थसिद्धिः कर्त्तुं शक्या तस्मात्प्रयत्नेन तडिद्विद्याऽवश्यं साधनीया ॥ १० ॥ ।अत्र राजप्रजापरिव्राड्विद्याविचारानुष्ठानोक्तत्वादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोध्यम् ॥इति २१ वर्गः ११९ सूक्तं च समाप्तम् ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी माणसे विद्युतने सिद्ध केलेल्या तारविद्येचे अभीष्ट काम सिद्ध करतात. तसेच संन्याशाबरोबर संपूर्ण विद्या प्राप्त करून धर्म इत्यादी काम करण्यास समर्थ होता येते. याच दोन्हींनी व्यवहार व परमार्थसिद्धी केली जाऊ शकते. त्यासाठी प्रयत्नपूर्वक विद्युत तारविद्या अवश्य ग्रहण केली पाहिजे. ॥ १० ॥