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सु॒षु॒प्वांसं॒ न निर्ॠ॑तेरु॒पस्थे॒ सूर्यं॒ न द॑स्रा॒ तम॑सि क्षि॒यन्त॑म्। शु॒भे रु॒क्मं न द॑र्श॒तं निखा॑त॒मुदू॑पथुरश्विना॒ वन्द॑नाय ॥

English Transliteration

suṣupvāṁsaṁ na nirṛter upasthe sūryaṁ na dasrā tamasi kṣiyantam | śubhe rukmaṁ na darśataṁ nikhātam ud ūpathur aśvinā vandanāya ||

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Pad Path

सु॒षु॒प्वांस॑म्। न। निःऽऋ॑तेः। उ॒पऽस्थे॑। सूर्य॑म्। न। द॒स्रा॒। तम॑सि। क्षि॒यन्त॑म्। शु॒भे। रु॒क्मम्। न। द॒र्श॒तम्। निऽखा॑तम्। उत्। ऊ॒प॒थुः॒। अ॒श्वि॒ना॒। वन्द॑नाय ॥ १.११७.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:117» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:13» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में राजधर्म विषय को कहते हैं ।

Word-Meaning: - हे (दस्रा) दुःख का विनाश करनेवाले (अश्विना) कृषि कर्म को विद्या में परिपूर्ण सभा सेनाधीशो ! तुम दोनों (वन्दनाय) प्रशंसा करने के लिये (निर्ऋतेः) भूमि के (उपस्थे) ऊपर (तमसि) रात्रि में (क्षियन्तम्) निवास करते और (सुषुप्वांसम्) सुख से सोते हुए के (न) समान वा (सूर्य्यम्) सूर्य के (न) समान और (शुभे) शोभा के लिये (रुक्मम्) सुवर्ण के (न) समान (दर्शतम्) देखने योग्य रूप (निखातम्) फारे से जोते हुए खेत को (उदूपथुः) ऊपर से बोओ ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में तीन उपमालङ्कार हैं। जैसे प्रजास्थ जन अच्छे राज्य को पाकर रात्रि में सुख से सोके दिन में चाहे हुए कामों में मन लगाते हैं वा अच्छी शोभा होने के लिये सुवर्ण आदि वस्तुओं को पाते वा खेती आदि कामों को करते हैं, वैसे अच्छी प्रजा को प्राप्त होकर राजपुरुष प्रशंसा पाते हैं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजधर्मविषयमाह ।

Anvay:

हे दस्राश्विना युवां वन्दनाय निर्ऋतेरुपस्थे तमसि क्षियन्तं सुषुप्वांसं न सूर्यं नाशुभे रुक्मं न दर्शतं निखातमुदूपथुः ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (सुषुप्वांसम्) सुखेन शयानम् (न) इव (निर्ऋतेः) भूमेः। निर्ऋतिरिति पृथिवीना०। निघं० १। १। (उपस्थे) उत्सर्गे (सूर्य्यम्) सवितारम् (न) इव (दस्रा) दुःखहिंसकौ (तमसि) रात्रौ। तम इति रात्रिना०। १। ७। (क्षियन्तम्) निवसन्तम् (शुभे) शोभनाय (रुक्मम्) सुवर्णम्। रुक्ममिति हिरण्यना०। निघं० १। २। (न) इव (दर्शतम्) द्रष्टव्यं रूपम् (निखातम्) फालकृष्टं क्षेत्रम् (उत्) उर्ध्वम (ऊपथुः) वपेतम् (अश्विना) कृषिकर्मविद्याव्यापिनौ (वन्दनाय) स्तवनाय ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र तिस्र उपमाः। यथा प्रजास्थाः प्राणिनः सुराज्यं प्राप्य रात्रौ सुखेन सुप्त्वा दिने स्वाभीष्टानि कर्माणि सेवन्ते, सुशोभायै सुवर्णादिकं प्राप्नुवन्ति, कृष्यादिकर्माणि कुर्वन्ति तथा सुप्रजाः प्राप्य राजपुरुषा महीयन्ते ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात तीन उपमालंकार आहेत. जसे सुराज्य असेल तर प्रजा रात्री सुखाने झोपून दिवसा इच्छित कामात मन लावते शोभायमान होण्यासाठी सुवर्ण इत्यादी वस्तू प्राप्त केल्या जातात, शेती इत्यादी काम केले जाते. तसे चांगली प्रजा असेल तर राजपुरुषांची प्रशंसा होते. ॥ ५ ॥