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आ॒थ॒र्व॒णाया॑श्विना दधी॒चेऽश्व्यं॒ शिर॒: प्रत्यै॑रयतम्। स वां॒ मधु॒ प्र वो॑चदृता॒यन्त्वा॒ष्ट्रं यद्द॑स्रावपिक॒क्ष्यं॑ वाम् ॥

English Transliteration

ātharvaṇāyāśvinā dadhīce śvyaṁ śiraḥ praty airayatam | sa vām madhu pra vocad ṛtāyan tvāṣṭraṁ yad dasrāv apikakṣyaṁ vām ||

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Pad Path

आ॒थ॒र्व॑णाय। अ॒श्वि॒ना॒। द॒धी॒चे। अश्व्य॑म्। शिरः॑। प्रति॑। ऐ॒र॒य॒त॒म्। सः। वा॒म्। मधु॑। प्र। वो॒च॒त्। ऋ॒त॒ऽयन्। त्वा॒ष्ट्रम्। यत्। द॒स्रौ॒। अ॒पि॒ऽक॒क्ष्य॑म्। वा॒म् ॥ १.११७.२२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:117» Mantra:22 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:17» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:22


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (दस्रौ) दुःख की निवृत्ति करने और (अश्विना) अच्छे कामों में प्रवृत्त करानेहारे सभासेनाधीशो ! (वाम्) तुम दोनों (यत्) जिस (आथर्वणाय) जिसके संशय कट गए उसके पुत्र के लिये तथा (दधीचे) विद्या और धर्मों को धारण किये हुए मनुष्यों की प्रशंसा करनेवाले के लिये (अश्व्यम्) घोड़ों में हुए (शिरः) उत्तम अङ्ग को (प्रत्यैरयतम्) प्राप्त करो (सः) वह (ऋतायन्) अपने को सत्य व्यवहार चाहता हुआ (वाम्) तुम दोनों के लिये (अपिकक्ष्यम्) विद्या की कक्षाओं में हुए बोधों के प्रति जो वर्त्तमान उस (त्वाष्ट्रम्) शीघ्र समस्त विद्याओं में व्याप्त होनेवाले विद्वान् के (मधु) मधुर विज्ञान का (प्र, वोचत्) उपदेश करे ॥ २२ ॥
Connotation: - सभासेनाधीश आदि राजजन विद्वानों में श्रद्धा करें और अच्छे कामों में प्रेरणा दें और वे तुम लोगों के लिये सत्य का उपदेश देकर प्रमाद और अधर्म से निवृत्त करें ॥ २२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे दस्रावश्विना वां युवां यदाथर्वणाय दधीचेऽश्व्यं शिरः प्रत्यैरयतम्। स ऋतायन् सन् वामपिकक्ष्यं त्वाष्ट्रं मधु प्रवोचत् ॥ २२ ॥

Word-Meaning: - (आथर्वणाय) छिन्नसंशयस्य पुत्राय (अश्विना) सत्कर्मसु प्रेरकौ (दधीचे) दधीन् विद्याधर्मधरानञ्चति पूजयति तस्मै (अश्व्यम्) अश्वेषु भवम् (शिरः) उत्तमं स्वाङ्गम् (प्रति) (ऐरयतम्) प्रापयतम् (सः) (वाम्) युवाभ्याम् (मधु) मधुरम्। मन धातोरयं प्रयोगः। (प्र) (वोचत्) उपदिशेत् (ऋतायन्) ऋतं सत्यमात्मन इच्छन् (त्वाष्ट्रम्) तूर्णं यः सकला विद्या अश्नुते तस्येदं विज्ञानम्। त्वष्टा तूर्णमश्नुत इत नैरुक्ताः। निरु० ८। १३। (यत्) यस्मै (दस्रौ) दुःखनिवर्त्तकौ (अपिकक्ष्यम्) कक्षासु विद्याप्रदेशेषु भवा बोधाः कक्ष्यास्तान् प्रति वर्त्तते तत् (वाम्) युवम् ॥ २२ ॥
Connotation: - सभासेनेशादयो राजपुरुषा विद्वत्सु श्रद्दधीरन् सत्कर्मसु प्रेरयन्तु ते च युष्मभ्यं सत्यमुपदिश्य प्रमादादधर्माच्च निवर्त्तयेयुः ॥ २२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सभासेनाधीश इत्यादी राजजनांनी विद्वानांवर श्रद्धा ठेवावी. चांगल्या कामात प्रेरणा द्यावी. त्यांनी तुमच्यासाठी सत्याचा उपदेश करून प्रमाद व अधर्म यांच्यापासून दूर करावे. ॥ २२ ॥