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यु॒वं तुग्रा॑य पू॒र्व्येभि॒रेवै॑: पुनर्म॒न्याव॑भवतं युवाना। यु॒वं भु॒ज्युमर्ण॑सो॒ निः स॑मु॒द्राद्विभि॑रूहथुरृ॒ज्रेभि॒रश्वै॑: ॥

English Transliteration

yuvaṁ tugrāya pūrvyebhir evaiḥ punarmanyāv abhavataṁ yuvānā | yuvam bhujyum arṇaso niḥ samudrād vibhir ūhathur ṛjrebhir aśvaiḥ ||

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Pad Path

यु॒वम्। तुग्रा॑य। पू॒र्व्येभिः॑। एवैः॑। पु॒नः॒ऽम॒न्यौ। अ॒भ॒व॒त॒म्। यु॒वा॒ना॒। यु॒वम्। भु॒ज्युम्। अर्ण॑सः। निः। स॒मु॒द्रात्। विऽभिः॑। ऊ॒ह॒थुः॒। ऋ॒ज्रेभिः॑। अश्वैः॑ ॥ १.११७.१४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:117» Mantra:14 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (पुनर्मन्यौ) बार-बार जाननेवाले (युवाना) युवावस्था को प्राप्त विद्या पढ़े हुए स्त्री-पुरुषो ! (युवम्) तुम दोनों (तुग्राय) बल के लिये (पूर्व्येभिः) अगले सज्जनों से किये हुए (एवैः) विज्ञान आदि उत्तम व्यवहारों से सुखी (अभवतम्) होओ, (युवम्) तुम दोनों (विभिः) आकाश में उड़नेवाले पक्षियों के समान (ऋज्रेभिः) जिनसे हाल न लगे उन जोड़े हुए सरल चाल से चलाने और (अश्वैः) शीघ्र जानेवाले बिजुली आदि पदार्थों से बने हुए विमानादि यानों से (अर्णसः) अगाध जल से भरे हुए (समुद्रात्) समुद्र से पार (भुज्युम्) शरीर और आत्मा की पालना करनेवाले पदार्थों को (निरूहथुः) निर्वाहो अर्थात् निरन्तर पहुँचाओ ॥ १४ ॥
Connotation: - स्त्री-पुरुष अगले महात्मा, ऋषि, महर्षियों ने किये जो काम हैं, उनका आचरण कर धर्मयुक्त ब्रह्मचर्य्य से शीघ्र पूर्ण विद्याओं को पाकर क्रिया की कुशलता से विमान आदि यानों को बनाकर भूगोल के सब ओर विहार कर नित्य आनन्दयुक्त हों ॥ १४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे पुनर्मन्यो युवानां कृतविद्यौ स्त्रीपुंसौ युवं युवां तुग्राय पूर्व्येभिरेवैः सुखिनावभवतम्। युवं युवां विभिरिव युक्तैर्ऋज्रेभिरश्वैरर्णसः समुद्राद्भुज्युं निरूहथुः ॥ १४ ॥

Word-Meaning: - (युवम्) युवाम् (तुग्राय) बलाय (पूर्व्येभिः) पूर्वैः कृतैः (एवैः) विज्ञानादिभिः (पुनर्मन्यौ) पुनः पुनर्मन्येते विजानीतस्तौ (अभवतम्) भवेतम् (युवाना) प्राप्तयौवनौ (युवम्) युवाम् (भुज्युम्) शरीरात्मपालकं पदार्थसमूहम् (अर्णसः) प्रचुरजलात् (निः) नितराम् (समुद्रात्) जलद्रावाधारात् (विभिः) वियति गन्तृभिः पक्षिभिरिव (ऊहथुः) वहतम् (ऋज्रेभिः) ऋजुगमकैः (अश्वैः) आशुगामिभिर्विद्युदादिना निर्मितैर्विमानादियानैः ॥ १४ ॥
Connotation: - स्त्रीपुरुषौ पूर्वैराप्तैः कृतानि कर्माण्यनुष्ठाय धर्मयुक्तेन ब्रह्मचर्य्येण पूर्णा विद्या अवाप्य क्रियाकौशलेन विमानादियानानि संपाद्य भूगोलस्याभितो विहृत्य नित्यमानन्देताम् ॥ १४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - स्त्री-पुरुषांनी पूर्वीचे महात्मा ऋषी-महर्षींनी केलेल्या कार्याप्रमाणे आचरण करून धर्मयुक्त ब्रह्मचर्याने पूर्ण विद्या प्राप्त करून क्रियाकौशल्याने विमान इत्यादी यान तयार करून भूगोलात सर्वत्र वावरून सदैव आनंदात राहावे. ॥ १४ ॥