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सू॒नोर्माने॑नाश्विना गृणा॒ना वाजं॒ विप्रा॑य भुरणा॒ रद॑न्ता। अ॒गस्त्ये॒ ब्रह्म॑णा वावृधा॒ना सं वि॒श्पलां॑ नासत्यारिणीतम् ॥

English Transliteration

sūnor mānenāśvinā gṛṇānā vājaṁ viprāya bhuraṇā radantā | agastye brahmaṇā vāvṛdhānā saṁ viśpalāṁ nāsatyāriṇītam ||

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Pad Path

सू॒नोः। माने॑न। अ॒श्वि॒ना॒। गृ॒णा॒ना। वाज॑म्। विप्रा॑य। भु॒र॒णा॒। रद॑न्ता। अ॒गस्त्ये॑। ब्रह्म॑णा। व॒वृ॒धा॒ना। सम्। वि॒श्पला॑म्। ना॒स॒त्या॒। अ॒रि॒णी॒त॒म् ॥ १.११७.११

Rigveda » Mandal:1» Sukta:117» Mantra:11 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:15» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर बिजुली की विद्या का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

Word-Meaning: - हे (रदन्ता) अच्छे लिखनेवाले ! (सूनोः) अपने लड़के के समान (मानेन) सत्कार से (विप्राय) अच्छी सुध रखनेवाले बुद्धिमान् जन के लिये (वाजम्) सच्चे बोध को (गृणाना) उपदेश और (भुरणा) सुख धारण करते हुए (नासत्या) सत्य से भरे-पूरे (वावृधाना) वृद्धि को प्राप्त और (ब्रह्मणा) वेद से (अगस्त्ये) जानने योग्य व्यवहारों में उत्तम काम के निमित्त (विश्पलाम्) प्रजाजनों के पालनेवाली विद्या को (अश्विना) प्राप्त होते हुए सभासेनाधीशो ! तुम दोनों मित्रपने से प्रजा के साथ (समरिणीतम्) मिलो ॥ ११ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में लुप्तोपमालङ्कार है। जैसे माता-पिता संतानों और संतान माता-पिताओं, पढ़ानेवाले पढ़नेवालों और पढ़नेवाले पढ़ानेवालों, पति स्त्रियों और स्त्री पतियों तथा मित्र मित्रों को परस्पर प्रसन्न करते हैं, वैसे ही राजा प्रजाजनों और प्रजा राजजनों को निरन्तर प्रसन्न करें ॥ ११ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्युद्विद्योपदिश्यते ।

Anvay:

हे रदन्ता सूनोरिव मानेन विप्राय वाजं गृणाना भुरणा नासत्या वावृधाना ब्रह्मणाऽगस्त्ये विश्पलां नाश्विना मित्रत्वेन प्रजया सह समरिणीतं सङ्गच्छेथाम् ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (सूनोः) स्वापत्यस्येव (मानेन) सत्कारेण (अश्विना) व्याप्नुवन्तौ (गृणाना) उपदिशन्तौ (वाजम्) सत्यं बोधम् (विप्राय) मेधाविने (भुरणा) सुखं धरन्तौ (रदन्ता) सुष्ठु लिखन्तौ (अगस्त्ये) अगस्तिषु ज्ञातव्येषु व्यवहारेषु साधूनि कर्माणि। अत्रागधातोरौणादिकस्तिः प्रत्ययोऽसुडागमश्च। (ब्रह्मणा) वेदेन (वावृधाना) वर्द्धमानौ। अत्र तुजादित्वादभ्यासदीर्घः। (सम्) (विश्पलाम्) विशां पालिकां विद्याम् (नासत्या) (अरिणीतम्) गच्छतम् ॥ ११ ॥
Connotation: - अत्र लुप्तोपमालङ्कारः। यथा मातापितरावपत्यान्यपत्यानि च मातापितरावध्यापकाः शिष्यान् शिष्या अध्यापकांश्च पतयः स्त्रीः स्त्रियः पतींश्च सुहृदो मित्राणि परस्परं प्रीणन्ति तथैव राजानः प्रजाः प्रजाश्च राज्ञः सततं प्रीणन्तु ॥ ११ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात लुप्तोपमालंकार आहे. जसे माता-पिता संतानांना, संतान मातापित्यांना, अध्यापक अध्येतांना, अध्येता अध्यापकांना पती पत्नींना व पत्नी पतींना आणि मित्र मित्रांना परस्पर प्रसन्न करतात तसेच राजाने प्रजेला व प्रजेने राजाला सदैव प्रसन्न ठेवावे. ॥ ११ ॥