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मध्व॒: सोम॑स्याश्विना॒ मदा॑य प्र॒त्नो होता वि॑वासते वाम्। ब॒र्हिष्म॑ती रा॒तिर्विश्रि॑ता॒ गीरि॒षा या॑तं नास॒त्योप॒ वाजै॑: ॥

English Transliteration

madhvaḥ somasyāśvinā madāya pratno hotā vivāsate vām | barhiṣmatī rātir viśritā gīr iṣā yātaṁ nāsatyopa vājaiḥ ||

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Pad Path

मध्वः॑। सोम॑स्य। अ॒श्वि॒ना॒। मदा॑य। प्र॒त्नः। होता॑। आ। वि॒वा॒स॒ते॒। वा॒म्। ब॒र्हिष्म॑ती। रा॒तिः। विऽश्रि॑ता। गीः। इ॒षा। या॒त॒म्। ना॒स॒त्या॒। उप॑। वाजैः॑ ॥ १.११७.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:117» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:13» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ सत्रहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में राजधर्म का उपदेश किया है ।

Word-Meaning: - हे (अश्विना) विद्या में रमे हुए (नासत्या) झूठ से अलग रहनेवाले सभा सेनाधीशो ! तुम दोनों (इषा) अपनी इच्छा से (प्रत्नः) पुरानी विद्या पढ़नेहारा (होता) सुखदाता जैसे (वाजैः) विज्ञान आदि गुणों के साथ (मदाय) रोग दूर होने के आनन्द के लिये (वाम्) तुम दोनों की (मध्वः) मीठी (सोमस्य) सोमवल्ली आदि औषध की जो (बर्हिष्मती) प्रशंसित बढ़ी हुई (रातिः) दानक्रिया और (विश्रिता) विविध प्रकार के शास्त्रवक्ता विद्वानों ने सेवन की हुई (गीः) वाणी है, उसका जो (आ, विवासते) अच्छे प्रकार सेवन करता है, उसके समान (उप, यातम्) समीप आ रहो अर्थात् उक्त अपनी क्रिया और वाणी का ज्यों का त्यों प्रचार करते रहो ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे सभा और सेना के अधीशो ! तुम उत्तम शास्त्रवेत्ता विद्वानों के गुण और कर्मों की सेवा से विशेष ज्ञान आदि को पाकर शरीर के रोग दूर करने के लिये सोमवल्ली आदि ओषधियों की विद्या और अविद्या अज्ञान के दूर करने को विद्या का सेवन कर चाहे हुए सुख की सिद्धि करो ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजधर्मविषयमाह।

Anvay:

हे अश्विना नासत्या युवामिषा प्रत्नो होता वाजैर्मदाय वां युवयोर्मध्वः सोमस्य या बर्हिष्मती रातिर्विश्रिता गौश्चास्ति तां विवासत इवोपयातम् ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (मध्वः) मधुरस्य (सोमस्य) सोमवल्ल्याद्यौषधस्य। अत्र कर्मणि षष्ठी। (अश्विना) (मदाय) रोगनिवृत्तेरानन्दाय (प्रत्नः) प्राचीनविद्याध्येता (होता) सुखदाता (आ) (विवासते) परिचरति (वाम्) युवयोः (बर्हिष्मती) प्रशस्तवृद्धियुक्ता (रातिः) दत्तिः (विश्रिता) विविधैराप्तैः श्रिता सेविता (गीः) वाग् (इषा) स्वेच्छया (यातम्) प्राप्नुतम् (नासत्या) असत्यात्पृथग्भूतौ (उप) (वाजैः) विज्ञानादिभिर्गुणैः ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे सभासेनेशावाप्तगुणकर्मसेवया विज्ञानादिकमुपगम्य शरीररोगनिवारणाय सोमाद्योषधिविद्याऽविद्यानिवारणाय विद्याश्च संसेव्याभीष्टं सुखं संपादयेतम् ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात राजा, प्रजा व अध्ययन-अध्यापन इत्यादी कामांच्या वर्णनाने पूर्वसूक्तार्थाबरोबर या सूक्ताच्या अर्थाची संगती आहे, हे जाणले पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे सभा व सेनेच्या अधिपतींनो! तुम्ही उत्तम शास्त्रवेत्ते व विद्वान यांच्या गुण कर्माचे सेवन करून विशेष ज्ञान प्राप्त करावे. शरीराचे रोग दूर करण्यासाठी सोमवल्ली इत्यादी औषधी विद्या ग्रहण करावी व अविद्या - अज्ञान दूर करण्यासाठी विद्येचे सेवन करून इच्छित सुख सिद्ध करावे. ॥ १ ॥