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हि॒मेना॒ग्निं घ्रं॒सम॑वारयेथां पितु॒मती॒मूर्ज॑मस्मा अधत्तम्। ऋ॒बीसे॒ अत्रि॑मश्वि॒नाव॑नीत॒मुन्नि॑न्यथु॒: सर्व॑गणं स्व॒स्ति ॥

English Transliteration

himenāgniṁ ghraṁsam avārayethām pitumatīm ūrjam asmā adhattam | ṛbīse atrim aśvināvanītam un ninyathuḥ sarvagaṇaṁ svasti ||

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Pad Path

हि॒मेन॑। अ॒ग्निम्। घ्रं॒सम्। अ॒वा॒र॒ये॒था॒म्। पि॒तु॒ऽमती॒म्। ऊर्ज॑म्। अ॒स्मै॒। अ॒ध॒त्त॒म्। ऋ॒बीसे॑। अत्रि॑म्। अ॒श्वि॒ना॒। अव॑ऽनीतम्। उत्। नि॒न्य॒थुः॒। सर्व॑ऽगणम्। स्व॒स्ति ॥ १.११६.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:116» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:9» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अश्विना) यज्ञानुष्ठान करनेवाले पुरुषो ! तुम दोनों (हिमेन) शीतल जल से (अग्निम्) आग और (घ्रंसम्) रात्रि के साथ दिन को (अवारयेथाम्) निर्वारो अर्थात् बिताओ। (अस्मै) इसके लिये (पितुमतीम्) प्रशंसित अन्नयुक्त (ऊर्जम्) बलरूपी नीति को (अधत्तम्) पुष्ट करो और (ऋबीसे) दुःख से जिसकी आभा जाती रही उस व्यवहार में (अत्रिम्) भोगनेहारे (अवनीतम्) पीछे प्राप्त कराये हुए (सर्वगणम्) जिसमें समस्त उत्तम पदार्थों का समूह है, उस (स्वस्ति) सुख को (उन्निन्यथुः) उन्नति देओ ॥ ८ ॥
Connotation: - विद्वानों को चाहिये कि इस संसार के सुख के लिये यज्ञ से शोधे हुए जल से और वनों के रखने से अति उष्णता (खुश्की) दूर करें। अच्छे बनाए हुए अन्न से बल उत्पन्न करें और यज्ञ के आचरण से तीन प्रकार के दुःख को निवार के सुख को उन्नति देवें ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे अश्विना युवां हिमेनोदकेनाग्निं घ्रंसं चावारयेथामस्मै पितुमतीमूर्जमधत्तमृबीसेऽत्रिमवनीतं सर्वगणं स्वस्ति चोन्निन्यथुरूर्धं नयतम् ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (हिमेन) शीतेनाग्निम् (घ्रंसम्) रात्र्या दिनम्। घ्रंस इत्यहर्ना०। निघं० १। ९। (अवारयेथाम्) निवारयेतम् (पितुमतीम्) प्रशस्तान्नयुक्ताम् (ऊर्जम्) पराक्रमाख्यां नीतिम् (अस्मै) (अधत्तम्) पोषयतम् (ऋबीसे) दुर्गतभासे व्यवहारे (अत्रिम्) अत्तारम्। अदेस्त्रिनिश्च। उ० ४। ६९। अत्र चकारात् त्रिवनुवर्त्तते। तेनादधातोस्त्रिप्। (अश्विना) यज्ञानुष्ठानशीलौ (अवनीतम्) अर्वाक् प्रापितम् (उत्) (निन्यथुः) नयतम् (सर्वगणम्) सर्वे गणा यस्मिंस्तत् (स्वस्ति) सुखम् ॥ ८ ॥यास्कमुनिरिमं मन्त्रमेवं व्याचष्टे−ऋबीसमपगतभासमपहृतभासमन्तर्हितभासं गतभासं वा। हिमेनोदकेन ग्रीष्मान्तेऽग्निं घ्रंसमहरवारयेथामन्नवतीं चास्मा ऊर्जमधत्तमग्नये योऽयमृद्बीसे पृथिव्यामग्निरन्तरौषधिवनस्पतिष्वप्सु तमुन्निन्यथुः सर्वगणं सर्वनामानम्। गणो गणनाद् गुणश्च यद्वृष्ट ओषधय उद्यन्ति प्राणिनश्च पृथिव्यां तदश्विनो रूपं तेनैनौ स्तौति । निरु० ६। ३५। ३६।
Connotation: - विद्वद्भिरेतत्संसारसुखाय यज्ञेन शोधितेन जलेन वनरक्षणेन च परितापो निवारणीयः, संस्कृतेनान्नेन बलं प्रजननीयम्। यज्ञानुष्ठानेन त्रिविधदुःखं निवार्य सुखमुन्नेयम् ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्वानांनी संसारातील सुखासाठी व वनाचे रक्षण करण्यासाठी यज्ञाने संस्कारित केलेल्या जलाने अति उष्णता (रुक्षता) दूर करावी. चांगल्या प्रकारे तयार केलेल्या अन्नाने बल उत्पन्न करावे व यज्ञाच्या अनुष्ठानाने तीन प्रकारचे दुःख निवारण करून सुख वाढवावे. ॥ ८ ॥