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यम॑श्विना द॒दथु॑: श्वे॒तमश्व॑म॒घाश्वा॑य॒ शश्व॒दित्स्व॒स्ति। तद्वां॑ दा॒त्रं महि॑ की॒र्तेन्यं॑ भूत्पै॒द्वो वा॒जी सद॒मिद्धव्यो॑ अ॒र्यः ॥

English Transliteration

yam aśvinā dadathuḥ śvetam aśvam aghāśvāya śaśvad it svasti | tad vāṁ dātram mahi kīrtenyam bhūt paidvo vājī sadam id dhavyo aryaḥ ||

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Pad Path

यम्। अ॒श्वि॒ना॒। द॒दथुः॑। श्वे॒तम्। अश्व॑म्। अ॒घऽअ॑श्वाय। शश्व॑त्। इत्। स्व॒स्ति। तत्। वा॒म्। दा॒त्रम्। महि॑। की॒र्तेन्य॑म्। भू॒त्। पै॒द्वः। वा॒जी। सद॑म्। इत्। हव्यः॑। अ॒र्यः ॥ १.११६.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:116» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अश्विना) जल और पृथिवी के समान शीघ्र सुख के देनेहारो सभासेनापति ! तुम दोनों (अघाश्वाय) जो मारने के न योग्य और शीघ्र पहुँचानेवाला है उस वैश्य के लिये (यम्) जिस (श्वेतम्) अच्छे बढ़े हुए (अश्वम्) मार्ग में व्याप्त प्रकाशमान बिजुलीरूप अग्नि को (ददथुः) देते हो तथा जिससे (शश्वत्) निरन्तर (स्वस्ति) सुख को पाकर (वाम्) तुम दोनों की (कीर्त्तेन्यम्) कीर्त्ति होने के लिये (महि) बड़े राज्यपद (दात्रम्) और देने योग्य (इत्) ही पदार्थ को ग्रहण कर (पैद्वः) सुख से ले जानेहारा (वाजी) अच्छा ज्ञानवान् पुरुष उस (सदम्) रथ को कि जिसमें बैठते हैं रच के (अर्यः) वणियाँ (हव्यः) पदार्थों के लेने योग्य (भूत्) होता है (तत्, इत्) उसी पूर्वोक्त विमानादि को बनाओ ॥ ६ ॥
Connotation: - जो सभा और सेना के अधिपति वणियों (=वणिकों) की भली-भाँति रक्षा कर रथ आदि यानों में बैठाकर द्वीप-द्वीपान्तर में पहुँचावें, वे बहुत धनयुक्त होकर निरन्तर सुखी होते हैं ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे अश्विना युवामघाश्वाय वैश्याय यं श्वेतमश्वं भास्वरं विद्युदाख्यं ददथुर्दत्तः। येन शश्वत् स्वस्ति प्राप्य वा कीर्त्तेन्यं महि दात्रमिदेव गृहीत्वा पैद्वो वाजी तत् सदं रचयित्वाऽर्यश्च हव्यो भूद् भवति तदिदेवं विधत्ताम् ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (यम्) (अश्विना) जलपृथिव्याविवाशुसुखदातारौ (ददथुः) (श्वेतम्) प्रवृद्धम् (अश्वम्) अध्वव्यापिनमग्निम् (अघाश्वाय) हन्तुमयोग्याय शीघ्रं गमयित्रे (शश्वत्) निरन्तरम् (इत्) एव (स्वस्ति) सुखम् (तत्) कर्म (वाम्) युवयोः (दात्रम्) दातुं योग्यम् (महि) महद्राज्यम् (कीर्त्तेन्यम्) कीर्त्तितुम् (भूत्) भवति (पैद्वः) सुखेन प्रापकः (वाजी) ज्ञानवान् (सदम्) सीदन्ति यस्मिन् याने तत् (इत्) एव (हव्यः) आदातुमर्हः (अर्यः) वणिग्जनः ॥ ६ ॥
Connotation: - यौ सभासेनाध्यक्षौ वणिजः संरक्ष्य यानेषु स्थापयित्वा द्वीपद्वीपान्तरे प्रेषयेतां तौ श्रिया युक्तौ भूत्वा सततं सुखिनौ जायेते ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे सभा, सेनापती व व्यापाऱ्यांचे चांगल्या प्रकारे रक्षण करून त्यांना रथ इत्यादी यानात बसवून द्वीपद्वीपान्तरी पोचवितात. तेव्हा ते अत्यंत धनवान बनून सदैव सुखी होतात. ॥ ६ ॥