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नास॑त्याभ्यां ब॒र्हिरि॑व॒ प्र वृ॑ञ्जे॒ स्तोमाँ॑ इयर्म्य॒भ्रिये॑व॒ वात॑:। यावर्भ॑गाय विम॒दाय॑ जा॒यां से॑ना॒जुवा॑ न्यू॒हतू॒ रथे॑न ॥

English Transliteration

nāsatyābhyām barhir iva pra vṛñje stomām̐ iyarmy abhriyeva vātaḥ | yāv arbhagāya vimadāya jāyāṁ senājuvā nyūhatū rathena ||

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Pad Path

नास॑त्याभ्याम्। ब॒र्हिःऽइ॑व। प्र। वृ॒ञ्जे॒। स्तोमा॑न्। इ॒य॒र्मि॒। अ॒भ्रिया॑ऽइव। वातः॑। यौ। अर्भ॑गाय। वि॒ऽम॒दाय॑। जा॒याम्। से॒ना॒ऽजुवा॑। नि॒ऽऊ॒हतुः॑। रथे॑न ॥ १.११६.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:116» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:8» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:17» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब २५ पच्चीस ऋचावाले एकसौ सोलहवें सूक्त का आरम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र से शिल्पविद्या के विषय का वर्णन किया है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (नासत्याभ्याम्) सच्चे पुण्यात्मा शिल्पी अर्थात् कारीगरों ने जोड़े हुए (रथेन) विमानादि रथ से (यौ) जो (सेनाजुवा) वेग के साथ सेना का चलानेहारे दो सेनापति (अर्भगाय) छोटे बालक वा (विमदाय) विशेष जिससे आनन्द होवे उस ज्वान के लिये (जायाम्) स्त्री के समान पदार्थों को (न्यूहतुः) निरन्तर एक देश से दूसरे देश को पहुँचाते हैं, वैसे अच्छा यत्न करता हुआ मैं (स्तोमान्) मार्ग के सूधे होने के लिये बड़े-बड़े पृथिवी, पर्वत आदि को (बर्हिरिव) बढ़े हुए जल को जैसे वैसे (प्र, वृञ्जे) छिन्न-भिन्न करता तथा (वातः) पवन जैसे (अभ्रियेव) बद्दलों को प्राप्त हो वैसे एक देश को (इयर्मि) जाता हूँ ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। रथ आदि यानों में उपकारी किए पृथिवी विकार, जल और अग्नि आदि पदार्थ क्या-क्या अद्भुत कार्यों को सिद्ध नहीं करते हैं ? ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ शिल्पविषयमाह ।

Anvay:

हे मनुष्या यथा नासत्याभ्यां शिल्पिभ्यां योजितेन रथेन यौ सेनाजुवाऽर्भगाय विमदाय जायामिव संभारान् न्यूहतुस्तथा प्रयत्नवानहं स्तोमान् बर्हिरिव प्रवृञ्जे वातोऽभ्रियेव सद्य इयर्मि ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (नासत्याभ्याम्) अविद्यमानासत्याभ्यां पुण्यात्मभ्यां शिल्पिभ्याम् (बर्हिरिव) परिबृंहकं छेदकमुदकमिव। बर्हिरित्युदकना०। निघं० १। १२। (प्र) (वृञ्जे) छिनद्मि (स्तोमान्) मार्गाय समूढान् पृथिवीपर्वतादीन् (इयर्मि) गच्छामि (अभ्रियेव) यथाऽभ्रेषु भवान्युदकानि (वातः) पवनः (यौ) (अर्भगाय) ह्रस्वाय बालकाय। अत्र वर्णव्यत्ययेन कस्य गः। (विमदाय) विशिष्टो मदो हर्षो यस्मात्तस्मै (जायाम्) पत्नीम् (सेनाजुवा) वेगेन सेनां गमयितारौ (न्यूहतुः) नितरां देशान्तरं प्रापयतः (रथेन) विमानादियाने ॥ १ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यानेषूपकृताः पृथिवीविकारजलाग्न्यादयः किं किमद्भुतं कार्य्यं न साध्नुवन्ति ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात पृथ्वी इत्यादी पदार्थांच्या गुणांचे दृष्टांत व अनुकूलतेने सभा सेनापती इत्यादींच्या गुणांच्या वर्णनाने या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्तात सांगितलेल्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. रथ व यानात उपकार करणाऱ्या पृथ्वीपासून रूपांतरित जल व अग्नी इत्यादी पदार्थ कोणकोणते अद्भुत कार्य सिद्ध करू शकत नाहीत बरे? ॥ १ ॥