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तन्मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्याभि॒चक्षे॒ सूर्यो॑ रू॒पं कृ॑णुते॒ द्योरु॒पस्थे॑। अ॒न॒न्तम॒न्यद्रुश॑दस्य॒ पाज॑: कृ॒ष्णम॒न्यद्ध॒रित॒: सं भ॑रन्ति ॥

English Transliteration

tan mitrasya varuṇasyābhicakṣe sūryo rūpaṁ kṛṇute dyor upasthe | anantam anyad ruśad asya pājaḥ kṛṣṇam anyad dharitaḥ sam bharanti ||

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Pad Path

तत्। मि॒त्रस्य॑। वरु॑णस्य। अ॒भि॒ऽचक्षे॑। सूर्यः॑। रू॒पम्। कृ॒णु॒ते॒। द्योः। उ॒पऽस्थे॑। अ॒न॒न्तम्। अ॒न्यत्। रुश॑त्। अ॒स्य॒। पाजः॑। कृ॒ष्णम्। अ॒न्यत्। ह॒रितः॑। सम्। भ॒र॒न्ति॒ ॥ १.११५.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:115» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:7» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम लोग जिसके सामर्थ्य से (मित्रस्य) प्राण और (वरुणस्य) उदान का (अभिचक्षे) सम्मुख दर्शन होने के लिये (द्यौः) प्रकाश के (उपस्थे) समीप में ठहरा हुआ (सूर्य्यः) सूर्य्यलोक अनेक प्रकार (रूपम्) प्रत्यक्ष देखने योग्य रूप को (कृणुते) प्रकट करता है। (अस्य) इस सूर्य के (अन्यत्) सबसे अलग (रुशत्) लाल आग के समान जलते हुए (पाजः) बल तथा रात्रि के (अन्यत्) अलग (कृष्णम्) काले-काले अन्धकार रूप को (हरितः) दिशा-विदिशा (सं, भरन्ति) धारण करती हैं (तत्) उस (अनन्तम्) देश, काल और वस्तु के विभाग से शून्य परब्रह्म का सेवन करो ॥ ५ ॥
Connotation: - जिसके सामर्थ्य से रूप, दिन और रात्रि की प्राप्ति का निमित्त सूर्य श्वेत-कृष्ण रूप के विभाग से दिन-रात्रि को उत्पन्न करता है, उस अनन्त परमेश्वर को छोड़कर किसी और की उपासना मनुष्य नहीं करें, यह विद्वानों को निरन्तर उपदेश करना चाहिये ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मनुष्या यूयं यस्य सामर्थ्यान् मित्रस्य वरुणस्याभिचक्षे द्योरुपस्थे स्थितः सन् सूर्योऽनेकविधं रूपं कृणुते। अस्य सूर्य्यस्यान्यद्रुशत्पाजो रात्रेरन्यत्कृष्णं रूपं हरितो दिशः सं भरन्ति तदनन्तं ब्रह्म सततं सेवध्वम् ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (तत्) चेतनं ब्रह्म (मित्रस्य) प्राणस्य (वरुणस्य) उदानस्य (अभिचक्षे) संमुखदर्शनाय (सूर्य्यः) सविता (रूपम्) चक्षुर्ग्राह्यं गुणम् (कृणुते) करोति (द्योः) प्रकाशस्य (उपस्थे) समीपे (अनन्तम्) देशकालवस्तुपरिच्छेदशून्यम् (अन्यत्) सर्वेभ्यो भिन्नं सत् (रुशत्) ज्वलितवर्णम् (अस्य) (पाजः) बलम्। पाज इति बलना०। निघं० २। ९। (कृष्णम्) तिमिराख्यम् (अन्यत्) भिन्नम् (हरितः) दिशः (सम्) (भरन्ति) धरन्ति ॥ ५ ॥
Connotation: - यस्य सामर्थ्येन रूपदिनरात्रिप्राप्तिनिमित्तः सूर्यः श्वेतकृष्णरूपविभाजकत्वेनाहर्निशं जनयति तदनन्तं ब्रह्म विहाय कस्याप्यन्यस्योपासनं मनुष्या नैव कुर्य्युरिति विद्वद्भिः सततमुपदेष्टव्यम् ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्याच्या सामर्थ्याने रूप, दिवस व रात्र यांच्या प्राप्तीचे निमित्त असलेला सूर्य श्वेत-कृष्णरूपी दिवस व रात्र उत्पन्न करतो त्या अनंत परमेश्वराला सोडून कुणा दुसऱ्याची उपासना माणसांनी करू नये हा उपदेश विद्वानांनी सदैव करावा. ॥ ५ ॥