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त्वे॒षं व॒यं रु॒द्रं य॑ज्ञ॒साधं॑ व॒ङ्कुं क॒विमव॑से॒ नि ह्व॑यामहे। आ॒रे अ॒स्मद्दैव्यं॒ हेळो॑ अस्यतु सुम॒तिमिद्व॒यम॒स्या वृ॑णीमहे ॥

English Transliteration

tveṣaṁ vayaṁ rudraṁ yajñasādhaṁ vaṅkuṁ kavim avase ni hvayāmahe | āre asmad daivyaṁ heḻo asyatu sumatim id vayam asyā vṛṇīmahe ||

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Pad Path

त्वे॒षम्। व॒यम्। रु॒द्रम्। य॒ज्ञ॒ऽसाध॑म्। व॒ङ्कुम्। क॒विम्। अव॑से। नि। ह्व॒या॒म॒हे॒। आ॒रे। अ॒स्मत्। दैव्य॑म्। हेळः॑। अ॒स्य॒तु॒। सु॒ऽम॒तिम्। इत्। व॒यम्। अ॒स्य॒। आ। वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥ १.११४.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:114» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:5» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (वयम्) हम लोग (अवसे) रक्षा आदि के लिये जिस (त्वेषम्) विद्या न्याय प्रकाशवान् (वङ्कुम्) दुष्ट शत्रुओं के प्रति कुटिल (कविम्) समस्त शास्त्रों को क्रम-क्रम से देखने और (यज्ञसाधम्) प्रजापालनरूप यज्ञ को सिद्ध करनेहारे (दैव्यम्) विद्वानों में कुशल (रुद्रम्) शत्रुओं के रोकनेहारे को (नि, ह्वयामहे) अपना सुख-दुःख का निवेदन करें तथा (वयम्) हम लोग जिस (अस्य) इस रुद्र की (सुमतिम्) धर्मानुकूल उत्तम प्रज्ञा को (आ, वृणीमहे) सब ओर से स्वीकार करें (इत्) वही सभाध्यक्ष (हेडः) धार्मिक जनों का अनादर करनेहारे अधार्मिक जनों को (अस्मत्) हमसे (आरे) दूर (अस्यतु) निकाल देवें ॥ ४ ॥
Connotation: - जैसे प्रजाजन राजा की आज्ञा को स्वीकार करते हैं, वैसे राजपुरुष भी प्रजा की आज्ञा को माना करें ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

वयमवसे यं त्वेषं वङ्कुं कविं यज्ञसाधं दैव्यं रुद्रं विह्वयामहे तथा वयं यस्यास्य सुमतिमावृणीमहे स इदेव सभाध्यक्षो हेडोऽस्मदारे अस्यतु ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (त्वेषम्) विद्यान्यायदीप्तिमन्तम् (वयम्) (रुद्रम्) शत्रुरोद्धारम् (यज्ञसाधनम्) यो यज्ञं प्रजापालनं साध्नोति तम् (वङ्कुम्) दुष्टशत्रून् प्रति कुटिलम् (कविम्) सर्वेषां शास्त्राणां क्रान्तदर्शिनम् (अवसे) रक्षणाद्याय (नि) (ह्वयामहे) स्वसुखदुःखनिवेदनं कुर्महे (आरे) दूरे (अस्मत्) (दैव्यम्) देवेषु विद्वत्सु कुशलम् (हेडः) धार्मिकाणामनादरकर्तॄनधार्मिकाञ्जनान् (अस्यतु) प्रक्षिपतु (सुमतिम्) धर्म्यां प्रज्ञाम् (इत्) एव (वयम्) (अस्य) (आ) समन्तात् (वृणीमहे) स्वीकुर्महे ॥ ४ ॥
Connotation: - यथा प्रजास्था जना राजाज्ञां स्वीकुर्वन्ति तथा राजपुरुषा अपि प्रज्ञाज्ञां मन्येरन् ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जशी प्रजा राजाचा स्वीकार करते तशी राजपुरुषांनीही प्रजेची आज्ञा मानावी. ॥ ४ ॥